Karwa Chauth Issue: हर पीड़ादायक, परेशान करने वाला संस्कार केवल स्त्री पर ही क्यों ? पति पर क्यों नहीं

Karwa Chauth Issue: हर पीड़ादायक, परेशान करने वाला संस्कार केवल स्त्री पर ही क्यों थोपा जाए ? पति क्या केवल ऐशो आराम के खातिर जन्मा है ? इस कसौटी पर हाईकोर्ट जजों का निर्णय काबिले-तारीफ है। स्वागत योग्य है।;

Written By :  K Vikram Rao
Update:2025-01-28 21:00 IST

Women News (Photo Social Media)

Karwa Chauth Issue: एक बड़ा रोचक कानूनी निर्णय आया है चंडीगढ़ से। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने गतसप्ताह एक जनहित याचिका खारिज कर दी। इसमें मांग की गई थी कि सभी महिलाओं पर करवा चौथ व्रत का पालन अनिवार्य कर दिया जाए। इस याचिकाकर्ता नरेंद्र कुमार मल्होत्रा की मांग थी कि विधवा, तलाकशुदा, सहवासिनी मिलाकर सभी नारियों पर यह उपवास लागू हो। प्रस्तुत याचिका के पूर्व भी सिंदूर लगाने और मंगलसूत्र गले में डालने की अनिवार्यता के पक्ष में ऐसी ही अदालती याचिकायें दायर की जा चुकी हैं। हालांकि सभी निरस्त की गईं थीं। जगजाहिर है कि चंडीगढ़ की इस घटना से एक ज्वलंत विवाद ताजा हो उठता है। हर पीड़ादायक, परेशान करने वाला संस्कार केवल स्त्री पर ही क्यों थोपा जाए ? पति क्या केवल ऐशो आराम के खातिर जन्मा है ? इस कसौटी पर हाईकोर्ट जजों का निर्णय काबिले-तारीफ है। स्वागत योग्य है।

करवा चौथ त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी (करक चतुर्थी) को मनाया जाता है। इस पर्व पर विवाहित स्त्रियाँ पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य एवं अपने सौभाग्य हेतु निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं और उदय उपरांत चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर भोजन करती हैं। उपवास सहित एक समूह में बैठ महिलाएं चौथ पूजा के दौरान, गीत गाते हुए थालियों की फेरी करती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रातः स्नान उपरांत सुंदर वस्त्र धारण कर, हाथों में मेंहंदी लगा, अपने पति की लंबी आयु, आरोग्य व सौभाग्य के लिए स्त्रियाँ चंद्रोदय तक निराहार रहकर भगवान शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रदेव का पूजन करती हैं। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त सभी देवों को स्थापित किया जाता है।

गौर करें अन्य मिलते-जुलते प्रथाओं पर भी। आंध्र प्रदेश में वरलक्ष्मी व्रत है। तेलुगुभाषी युवतियों पर इसे थोपा जाता है। मैंने अपनी पत्नी डॉ. सुधा राव को इसे मनाने से छूट दे दी है। मगर वह हर साल करवा चौथ मनाती है। शायद इसीलिए कि वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर में जन्मी है जहां मेरे श्वसुर प्रो. सीजी विश्वनाथन प्रोफेसर और लाइब्रेरी विज्ञान के विभागाध्यक्ष थे। कुलपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के संबंधी थे। यूं मेरी तरफ से चौथ मनाने की तनिक भी जोर जबरदस्ती नहीं रही।

इस करवा चौथ की भांति ही कड़ी प्रथा है छठ की उत्तर भारत में और वरलक्ष्मी व्रत दक्षिण भारत में। इसी संदर्भ में मेरा ऐतराज है कि पुरुष (पति) के लिए ऐसी कष्टदायिनी रिवाज क्यों नहीं ? शायद इसीलिए कि अर्धांगिनी ही सारी यातना और यंत्रणा भोगती है ? ऐसे असमान और एकतरफा रिवाजों को तोड़ना होगा। समानता का युग है। तकाजा भी।

इसी सिलसिले में एक सियासी प्रकरण याद आया। एकदा लखनऊ के सहकारिता भवन सभागार में सांसद अटल बिहारी वाजपेयी आए थे। श्रोताओं में महिलाएं बहुत थीं। अटलजी ने कहा भी : "आज करवा चौथ के दिन आप सब उपवास पर हैं। ऐसे श्रद्धालु श्रोताओं का आना द्रवित कर देता है।" अटलजी भावुक हो गए थे। उन्हीं का एक मिलता जुलता प्रसंग और भी है। एकदा एक महिला रिपोर्टर ने इस भाजपायी नेता से पूछा : "आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की।" जवाब दिया अटलजी ने : "पत्रकार महोदया ! आपका यह प्रश्न है अथवा प्रस्ताव ?"

K Vikram Rao

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