Congress Chunav Chinah : अगर इंदिरा ने नहीं चुना होता 'पंजा', तो सपा-बसपा कैसे करते साइकिल-हाथी की सवारी
Congress Chunav Chinah : पहले कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह 'दो बैलों की जोड़ी' था। इंदिरा गांधी इस चुनाव चिन्ह से जीती थी।
Congress Chunav Chinah : कांग्रेस को देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी (Congress Party) होने का गौरव हासिल है। इसकी स्थापना दिसंबर 1885 में ए.ओ. ह्यूम (A O Hume) ने की थी। आजादी के बाद पहली बार 1951-52 में कांग्रेस पार्टी ने पहला लोकसभा चुनाव (Loksabha Chunav) लड़ा था। क्या आपको पता है, कि तब जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की अगुवाई में लड़े गए इस चुनाव में कांग्रेस चुनाव चिन्ह क्या था? हाथ का निशान? बिलकुल नहीं। बल्कि 'दो बैलों की जोड़ी' थी। खा गए न चक्कर। जी हां, कांग्रेस ने तब यह चुनाव चिन्ह किसानों और ग्रामीण जनता को ध्यान में रखकर लिया था। मकसद, बैलों के जरिए मतदाताओं से खुद को जोड़ना था।
कांग्रेस ने दो बैलों की जोड़ी वाले निशान पर 1952 में भारी बहुमत से चुनावी जीत दर्ज की। इसके बाद इसी चिन्ह पर लगातार 1957 और 1962 के चुनावों में भी सफलता पाई। पहले पंडित नेहरू का निधन और उसके बाद लालबहादुर शास्त्री की ताशकंद में रहस्यमयी मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। 1967 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस को पहली बार कड़ी चुनौती मिली। और पार्टी ने 520 में से 283 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी का यह सबसे खराब प्रदर्शन था। हालांकि, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री तो बनी रहीं। लेकिन कांग्रेस में अंतर्कलह तेज हो गया। नतीजतन, 1969 में कांग्रेस पार्टी टूट गई।
कांग्रेस टूटी, 'बैलों की जोड़ी' पर दोनों का दावा
तब मूल कांग्रेस की अगुवाई के. कामराज और मोरारजी देसाई कर रहे थे। मूल कांग्रेस को कांग्रेस (ओ) के नाम से जाना जाता था। जबकि, इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) नाम से नई पार्टी बनाई। हालांकि, ज्यादातर सांसदों का समर्थन इंदिरा के ही साथ था। पार्टी टूट गई, तो अब उसके सिंबल पर कब्जे को लेकर लड़ाई तेज हो गई। कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) दोनों ने दो बैलों की जोड़ी चुनाव चिन्ह पर अपना दावा ठोकने लगे। मामला भारतीय चुनाव आयोग के पास पहुंचा। आयोग ने बैलों की जोड़ी का सिंबल कांग्रेस (ओ) को दिया। ऐसे में इंदिरा गांधी ने अपनी कांग्रेस के लिए 'गाय-बछड़ा' चुनाव चिन्ह लिया।
'गाय-बछड़ा' चुनाव चिन्ह से जीती इंदिरा
साल 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा के नेतृत्व वाली कांग्रेस (आर) गाय-बछड़ा चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में उतरीं। उन्हें कुल 352 सीटें हासिल हुईं।कांग्रेस के दूसरे गुट को इस चुनाव में मात्र 16 सीटें ही मिलीं। इस जीत के साथ इंदिरा गांधी की कांग्रेस ने पार्टी का पुराना रुतबा हासिल कर लिया। 1971-1977 के चुनावों तक कांग्रेस ने इसी चिन्ह से चुनाव लड़े। लेकिन आपातकाल के दौरान हालात ऐसे पैदा हुए कि कांग्रेस फिर टूट के कगार पर आ गई। 1977 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। पार्टी में इंदिरा को लेकर असंतोष बढ़ने लगा।
आपातकाल और गाय-बछड़ा चुनाव चिन्ह
फलस्वरूप, जनवरी 1978 में इंदिरा के नेतृत्व में कांग्रेस फिर एक बार टूटी। इंदिरा ने नई पार्टी का नाम कांग्रेस (आई) दिया। इसका टूट का असर व्यापक रहा। पार्टी राष्ट्रीय स्तर से लेकर राज्यों तक दो हिस्सों में टूट गई। अब एक बार फिर इंदिरा गांधी चुनाव आयोग के दरवाजे पर थीं। उन्होंने आयोग से नए चुनाव चिन्ह की मांग की। तब तक गाय-बछड़े का चुनाव चिन्ह कांग्रेस के लिए नकारात्मक भाव पैदा करने वाले के रूप में जाना जाने लगा था। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी और संजय गांधी को लेकर देश में नकारात्मकता का ऐसा भाव था कि मां-बेटे की तुलना गाय-बछड़े वाले चुनाव चिन्ह से की जाने लगी। ऐसा माना जाने लगा था कि इंदिरा अब खुद इस चुनाव चिन्ह से छुटकारा चाहती थीं।
'हाथ का पंजा' ऐसे बना सिंबल
कांग्रेस की मौजूदा 'हाथ के पंजे' वाले निशान को नया चुनाव चिन्ह बनाने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। तब इंदिरा गांधी, पी.वी. नरसिंह राव के साथ आंध्रप्रदेश के दौरे पर थीं। नए चुनाव चिन्ह के लिए बूटा सिंह चुनाव आयोग के दफ्तर गए थे। चुनाव आयोग ने उन्हें हाथी, साइकिल और हाथ का पंजा में से किसी एक चिन्ह को लेने को कहा। बूटा सिंह क्या करें, क्या न करें वाली हालत में थे। चुनाव आयोग ने फैसले के लिए 24 घंटे का समय दिया था। उन्होंने इंदिरा गांधी को फोन किया। कांग्रेस पार्टी में मंथन का दौर चला। आखिरकार इंदिरा गांधी ने हाथ का पंजा पर सहमति जताई। इस तरह कांग्रेस पार्टी को 1952 के पहले आम चुनाव के बाद तीसरी बार नया चुनाव चिन्ह मिला।
'हाथी' और 'साइकिल' को तब नहीं चुनी थीं इंदिरा
हाथ का पंजा चुनाव चिन्ह के साथ 1980 में इंदिरा गांधी चुनावी मैदान में उतरीं। कांग्रेस (आई) के लिए यह चिन्ह लकी साबित हुआ। इंदिरा भारी बहुमत से चुनाव जीतकर फिर सत्ता में लौटीं। गौरतलब है, कि इंदिरा गांधी ने तब जिन दो चुनाव चिन्ह को नाकारा जैसे हाथी जो आज बसपा का सिंबल है और साइकिल जो समाजवादी पार्टी का, दोनों ही पार्टियां चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन करती रही है।