Delhi News: भाजपा की बिल्ली 'भाजपा' को ही म्याऊं का अंजाम
Arvind Kejriwal Political Future: अरविंद केजरीवाल समेत आप के बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल गए। फिर इनके भ्रष्टाचार को जनता के मन में दाखिल करने की जी-तोड़ मेहनत कर भाजपा ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आप को चारों खाने चित कर दिया।;
Delhi Election Results Looser Party AAP Arvind Kejriwal Political Future Analysis
Arvind Kejriwal Political Future: पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी क्या टूट जाएगी ? क्या आप की पंजाब सरकार की स्थिरता भी खतरे में आ जाएगी ? केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और जमानत पर जेल से बाहर हुए पार्टी केअन्य नेता क्या फिर जेल जाएंगे ?
कुछ भी हो सकता है। दिल्ली की जनता ने ना सिर्फ आप को बल्कि अरविंद केजरीवाल को भी उनकी सीट से हरा कर यह रुख जाहिर किया है कि जनता उन्हें अब भ्रष्टाचार विरोधी नायक नहीं मानती, बल्कि उनपर लगे भ्रष्टाचारी खलनायक के आरोपों पर जनता का जनादेश मोहर लगाता है। तरह-तरह की चर्चाओं मे तो ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस को दिल्ली में समाप्त करने वाले केजरीवाल अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के लिए रास्ता का रोड़ा बने थे, इस मामले में आप भाजपा के लिए मुफीद थी। किंतु अरविंद केजरीवाल का बढ़ता कद जब भाजपा को भी आंख दिखाने लगा, पार्टी के शीर्ष नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर भी आक्रमक हमले करने लगा तो भाजपा को सबक सिखाना पड़ा।
अरविंद केजरीवाल समेत आप के बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल गए। फिर इनके भ्रष्टाचार को जनता के मन में दाखिल करने की जी-तोड़ मेहनत कर भाजपा ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आप को चारों खाने चित कर दिया। भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने जिस तरह प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि केजरीवाल अपनी पार्टी के नेताओं को हराना चाहते थे, इससे यह साफ जाहिर हो गया कि आप के टूटने के भी दुर्दिन करीब हैं। कार्यवाहक मुख्यमंत्री आतिशी ने अपनी पार्टी और केजरीवाल की बुरी हार के बाद खुद चुनाव जीतने की खुशी मे डांस किया, मातम के वक्त खुशी का ये डांस भी टूट की चर्चाओं को बल देता है।
दिल्ली चुनाव नतीजे के बाद की चर्चाएं एक कहावत को दोहरा रही हैं और एक विज्ञापन की पंच लाइन का परिवर्तित रूप भी पेश कर रही हैं।
मेरी बिल्ली, मुझसे ही म्याऊं।
पहले इस्तेमाल करें, फिर बर्बाद करें।
ये लाइन्स दिल्ली की सियासत का हिस्सा बन गई हैं। मौजूदा सूरत-ए-हाल बार-बार अतीत की गलियों में घुमाकर शीशमहल और फिर शीशे के इस महल के चकनाचूर हो जाने की हक़ीक़त बयां कर रहा है।
शीशमहल बनने से लेकर शीशमहल चकनाचूर होने की मंजिल तक पहुंचने के लिए पेचीदा रास्तों का जायजा लीजिए तो यहां चार मुख्य किरदार दिखेंगे, वही किरदार आज के सियासी खेल के भी मुख्य प्लेयर हैं - संघ-भाजपा, कांग्रेस और अन्ना आंदोलन से आप का सफर तय करके मुख्यमंत्री बनने व कम समय में देश में राष्ट्रीय पार्टी खड़ी करने की योग्यता रखने वाले अरविंद केजरीवाल।
विरोधी या प्रतिद्वंद्वी को कमजोर करना या उसे आरोपों से घेरना आम बात है। राजनीति में ऐसी दक्षता ही आगे ले जाती है, ख़ास कर जब कोई दल विपक्ष मे हो तो वो सत्ता पक्ष को घेरने के और सत्ता के विरुद्ध माहौल बनाने के नए-नए तरीके अपनाता है।विरोधी दल की सत्ता के विरुद्ध आवाज उतनी नहीं गूंजती जितनी निष्पक्ष आम जनता की आवाज समाज में असर दिखायी है।
अलग-अलग काल खंडों में भाजपा को भले ही लम्बे समय तक सत्ता नहीं मिल पा रही थी पर विपक्ष की भूमिकाओं में उसका जमीनी संघर्ष और सीक्रेट योजनाएं अद्भुत रहीं। सन 2011 में सत्तारूढ़ कांग्रेस का जनाधार छीनने और सत्ता से बेदखल करने का बड़ा मास्टर प्लान बनाया गया। एक गैर राजनीतिक चेहरे अन्ना हजारे की अगुवाई व एनजीओ चलाने वाले अरविंद केजरीवाल के प्रबंधन में पर्दे के पीछे से भव्य जन आंदोलन शुरू करवाया गया। कांग्रेस की अगुआई में चल रही यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और गलत नीतियों के खिलाफ अन्ना आंदोलन भले ही दिल्ली के रामलीला मैदान मे हुआ पर मीडिया के माध्यम से इसका असर देश के कोने-कोने में दिखने लगा।
ये वो दौर था जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबरों की लाइव कवरेज धीरे-धीरे आम हो रही थी। ये आंदोलन मीडिया के जरिए जन-जन तक पहुंचा। हर दौर में सत्ता पक्ष की तरफ मीडिया बिरादरी पहली बार वैचारिक तौर से भाजपा/संघ यानी अन्ना आंदोलन के पक्ष में खुल कर नजर आ रही थी।
आम चर्चाओं पर यक़ीन कीजिए तो चौदह बरस पहले संघ और भाजपा ने पर्दे के पीछे से कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ अन्ना आंदोलन शुरू किया, जिसके कॉर्डिनेटर अरविंद केजरीवाल आम आदमी की नजर में भ्रष्टाचार विरोधी नायक की तरह उभरे। अन्ना आंदोलन की अपार सफलता और खुद की लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई। आप ने पहले तो अन्ना आन्दोलन के टाइटिल हीरो अन्ना हजार को ही साइड लाइन कर दिया। फिर प्रशांत भूषण, किरन बेदी,योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास इत्यादि आंदोलन के सहयात्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया। आजतक चैनल का बड़ा चेहरा आशुतोष और अनेक पत्रकारों, बुद्धिजीवियों को इसी तरह किनारे करके अरविन्द केजरीवाल ने आप पर एकक्षत्र राज चलाया। उनकी पार्टी प्रचंड बहुमत से राजधानी मे चुनाव जीतती रही।
कभी दिल्ली की सबसे ताकतवर पार्टी कांग्रेस यहां साफ हो गई। अन्ना आंदोलन देशभर में कांग्रेस को हाशिए पर ले आया था। हर बार दिल्ली जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बरकरार केजरीवाल की पार्टी ने पंजाब में भी कांग्रेस को साफ कर सत्ता हासिल कर ली। गुजरात और गोवा जैसे राज्यों में भी आप की उपस्थिति ने पार्टी का दायरा बढ़ाने का सिलसिला शुरू कर इसे एक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया।
अन्ना आंदोलन की ऊर्जा अन्ना हजारे, प्रशांत भूषण, किरण बेदी,योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास, आशुतोष और इन जैसी अनेक हस्तियों का साथ, एहसान और श्रेय भुलाकर अंत में स्वाति मालीवाल को बेइज्जत कर आप से बेदखल करने पर मजबूर किया गया।
यानी पहले अरविंद केजरीवाल ने इन लोगों को इस्तेमाल किया फिर बर्बाद करने का रुख अपनाया। लेकिन भाजपा अरविंद केजरीवाल को इस्तेमाल कर बर्बाद नहीं करना चाहती थी। जब वो सशक्त हुए और भाजपा को ही आंख दिखाने लगे तब उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचानें वालों ने उन्हें अर्श से फर्श वापस लाने पर मजबूर होना पड़ा।
अन्ना आंदोलन के समय आंदोलन के मुख्य चेहरों के साथ भाजपा के शीर्ष नेताओं की पुरानी तस्वीर वायरल होने के साथ हो रही चर्चाओं पर यकीन करें तो केजरीवाल और भाजपा एक सिक्के के दो पहलू थे। आप का गठन और दिल्ली की सत्ता हासिल करने के बाद भी आप कांग्रेस को कई राज्यों में कांग्रेस मुक्त करने का काम कर रही थी। ये भाजपा के काम में हाथ बंटाने जैसा था। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने बहुत पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा, भाजपा की विचारधारा और स्ट्रेटजी की कापी कर अरविंद केजरीवाल भाजपा को ही आंख दिखाने लगे। मुस्लिम तुष्टिकरण से भी दूर रहे और कांग्रेस के बाद भाजपा का भी विकल्प बनकर खड़े होने लगे। भाजपा को लगने लगा कि जिस तरह कांग्रेस को मुस्लिमपरस्त पार्टी बताकर वो बहुसंख्यकों के वोटों पर एकाधिकार बनाने में सफल हो रही है यदि आप का दायरा राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ गया तो कांग्रेस की अपेक्षा भविष्य में आप को पछाड़ना ज्यादा कठिन हो जाएगा। और फिर आप को उठाने वाले इसे गिराने की रणनीति में कामयाब हुए।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव से पहले सिर्फ संघ ने ही दिल्ली में तीन लाख बैठके कर जनता से सीधा कनेक्ट होकर अरविंद केजरीवाल के भ्रष्ट चेहरे से वाकिफ कराया। जमीनी मेहनत रंग लाई।और एक कहावत और उसकी सीख सबक दे गई।
"मेरी बिल्ली मुझे ही म्याऊं"। यानी बिल्ली अपने मालिक के सामने ही म्याऊं कर उसे धमकाए तो मालिक बिल्ली को सबक सिखा देता है। क्योंकि पालने वाला मालिक, मालिक ही होता है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)