Kanshi Ram Ki Punyatithi: कांशीराम के साथ चले थे, कुछ भटक गए, कुछ ने बनाया अपना अलग रास्ता
Kanshi Ram Ki Punyatithi : बीएसपी आज कांशीराम की पुण्यतिथि के मौके पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर करने जा रही है।
Kanshi Ram Ki Punyatithi : पार्टी के संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर आज बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) अपनी चुनावी ताकत दिखाने के लिए एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन राजधानी लखनऊ (lucknow) के कांशीराम स्मारक स्थल (Kanshi Ram Memorial Site) पर करने जा रही है। कहने को तो यह श्रद्धांजलि सभा है पर असल में यह एक तरह से चुनावी शंखनाद है। आज कांशीराम स्मारक स्थल पर होने वाली इस बडी रैली में तमाम वो नेता मंच पर मौजूद नहीं होगे। जो पार्टी की स्थापना के बाद से उनके बताए रास्ते पर चल रहे थें। इनमें से कुछ अचानक राजनीतिक रास्ता भटक गए तो कुछ पार्टी से बाहर कर दिए गए।
पार्टी की स्थापना के बाद से अनुशासन के मामले में किसी भी तरह का समझौता न करने वाली पार्टी अध्यक्ष मायावती ने वैसे तो न जाने कितने विधायकों और सांसदों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने का काम किया। पर कई प्रदेश अध्यक्षों तक को बाहर कर चुकी हैं। मायावती अब तक 9 प्रदेश अध्यक्षों को बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। यही नहीं, चार पूर्व केन्द्रीय मंत्री भी पार्टी से बाहर जा चुके हैं। इनमें विदेश सचिव से रिटायर होने के बाद राजनीती में आये विदेश मंत्री नटवर सिंह तक शामिल हैं।
जब कांशीराम जीवित थें तभी से यह सिलसिला शुरू हुआ था। मायावती ने पार्टी की कमान संभालने के बाद से जिन सात प्रदेशाध्यक्षों को निष्कासित किया उनमें सबसे पहले अध्यक्ष रहे राजबहादुर, सोनेलाल पटेल, भागवत पाल,(दोनो दिवंगत) दयाराम पाल, इन्द्रजीत सरोज, जंगबहादुर पटेल, बरखूराम वर्मा ( दोनो दिवंगत) शामिल थे। इनमें से कुछ बाद में पार्टी में वापस भी आ गए । पर उनकी फिर वह छवि नहीं बन सकी जो बसपा से निकाले जाने के पहले हुआ करती थी। पार्टी संस्थापक कांशीराम के समय ही डॉ. सोने लाल पटेल (दिवंगत) और राजबहादुर कभी कांशीराम के करीबियों में शामिल थे। डॉ. सोनेलाल पटेल (दिवंगत) ने अपना दल बनाया तो राजबहादुर ने बसपा(रा) का गठन किया। डॉ. सोने लाल पटेल के निधन के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल ने पार्टी की बागडोर संभाली तो राजबहादुर कांग्रेस में शामिल हो गए।
कांशीराम के ही करीबी रहे आरके चौधरी और बरखू राम वर्मा (दिवंगत) दोनो प्रदेश अध्यक्षों को एक साथ पार्टी से बाहर किया गया। इन नेताओं ने बाद में राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाई और भाजपा से मिलकर चुनाव लड़ा पर सफलता नहीं मिल सकी। कामयाबी नहीं मिली तो आरके चौधरी ने एक बार फिर से 2002 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया था। इस चुनाव में आरके चैधरी तो जीते लेकिन बरखूराम वर्मा (दिवंगत)को हार का सामना करना पड़ा। जब 1997 में बहुजन समाज पार्टी का भाजपा से गठबन्धन टूटा तो बसपा से अलग होकर कुछ नेताओं ने अपना अलग दल बनाया। जो बाद में टूट गया। इनमें एक दल का नाम जनतांत्रिक बसपा पडा तो दूसरे का नाम किमबपा पडा। एक के नेता चौधरी नरेन्द्र सिंह थें तो दूसरे के जयनारायण तिवारी थें। आज ये सारे दल मिटटी में मिल चुके हैं।
इसी तरह मायावती सरकार के दौरान सबसे ताकतवर मंत्रियों में से एक बाबू सिंह कुशवाहा के एनआरएचएम घोटालें में जेल जाने के बाद पार्टी ने उनसे किनारा किया। उन्होंने अपना जनअधिकार मंच बनाया। पर यह दल अपनी उपस्थिति तक दर्ज नहीं करा पाया। बसपा सरकार में एक और ताकतवर मंत्री रहे दद्दू प्रसाद को भी पार्टी से निकाला गया तो उन्होंने बहुजन मुक्ति पार्टी बनाई। अन्य दलों की तरह यह भी दल इतिहास के पन्नों में सिमट गया। 1993 में पहली बार सत्ता में आने वाली बहुजन समाज पार्टी के विधायक डा मसूद अहमद के बारे में जब यह पता चला कि उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियां कुछ बढती जा रही हैं तो मायावती ने न सिर्फ उनको मंत्री पद से हटवाया बल्कि रातो रात सरकारी मकान भी खाली करा दिया गया।
इसके आद डा मसूद ने नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया। पर हर चुनाव में जब पूरी तरह से नाकाम होते गए तो उन्होंने अपने दल का सपा में विलय कर लिया। इसके बाद कांग्रेस में गए । फिर यहां से रालोद में चले गए। मायावती सरकार में राज्यमंत्री रहे भगवती प्रसाद सागर भी जब बसपा से बाहर हुए उन्होंने भागीदारी पार्टी का गठन किया बाद में भाजपा में शामिल हो गए। बहुजन समाज पार्टी में जिन पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है उनमें विदेश मंत्री रहे नटवर सिंह, आरिफ मोहम्मद खान, अखिलेश दास (दिवंगत) अरविंद नेताम सरीखे पुराने कांग्रेसी नेता शामिल है। आरिफ मोहम्मद खान इन दिनों गोवा के गवर्नर हैं।
कुछ महीनों पूर्व ही बसपा विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा व पूर्व मंत्री राजअचल राजभर को अनुशासनहीनता के आरोप में बाहर का रास्ता दिखाया गया । यह दोनो ही नेता पहले प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इससे पहले पार्टी के कद्दावर नेता रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी, इन्द्रजीत सरोज, कमलाकांत गौतम को भी बाहर का रास्ता दिखा चुकी थी। इन दिनों रामअचल राजभर और लालजी वर्मा समाजवादी पार्टी के सम्पर्क में है और जल्द ही इस पार्टी में शामिल हो सकते हैं। जबकि नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस में और इंद्रजीत सरोज सपा में है।
अभी कुछ ही महीनों पहले मायावती के सख्त रवैये से नाराज होकर विधानसभा के बजट सत्र के दो घंटे पहले बसपा के विधायकों असलम राइनी (भिनगा श्रावस्ती), असलम अली (ढोलाना हापुड), मुजतबा सिद्दीकी (प्रतापपुर-प्रयागराज), हाकिम लाल बिंद (प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर), सुषमा पटेल (मुंगरा-बादशाहपुर) और वंदना सिंह (सगड़ी-आजमगढ़) ने विधानसभा अध्यक्ष से मांग की कि उन्हे सदन में बसपा से अलग बैठाया जाए। ये सारे विधायक समाजवादी पार्टी के सम्पर्क में लगातार बने हैं।