Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली की चुनावी चौसर, बाजी किसके हाथ!
Delhi Assembly Election 2025 Update: अब दिल्ली के विधानसभा चुनाव कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पाटी के मध्य एक त्रिकोणीय स्वरूप ले चुका है।;
Delhi Assembly Election 2025: वर्ष 2025 का आगामी दिल्ली विधानसभा का चुनाव, महाभारत के शकुनी का स्मरण करा रहा है। इस चुनाव में जो भी पार्टी, मामा शकुनी की नीतियों के अनुरूप चलेगी, वो ही विजयश्री प्राप्त करेगी। जिसको मामा शकुनी की भांति गोटी खेलना आएगा वो ही दिल्ली का राजा बनेगा। वर्तमान में अरविन्द केजरीवाल के लिए दिल्ली के चुनाव में विजयश्री प्राप्त करना, उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए भी चुनौती है। यदि वे दिल्ली के चुनाव में पराजित हुए तो सम्भवतया उनकी राजनीतिक छवि धूमिल हो जाएगी, परिणामस्वरूप उनकी पंजाब में भी पराजय निश्चित हो जाएगी।
अब दिल्ली के विधानसभा चुनाव कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पाटी के मध्य एक त्रिकोणीय स्वरूप ले चुका है। यद्यपि दिल्ली में कांग्रेस का वोट प्रतिशत मात्र 6-7 ही है, यदि राहुल गांधी ने इसमें 12 प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी, तो अरविन्द केजरीवाल के लिए दिल्ली की जीत दुर्लभ हो जाएगी। कांग्रेस पार्टी का यह मानना है कि अरविन्द केजरीवाल ने उनको गुजरात व हरियाणा के विधानसभा चुनावों में अत्यधिक क्षति पहुँचाई थी। इन प्रदेशों में कांग्रेस की पराजय का प्रमुख कारण यह था कि अरविन्द केजरीवाल ने अपनी अपरिपक्वता के कारण कांग्रेस को सत्ता प्राप्ति से दूर रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। परिणामस्वरूप कांग्रेस अपना प्रतिशोध लेने हेतु तत्पर है।
यदि अरविन्द केजरीवाल के विगत 11 वर्षो के शासनकाल पर निष्पक्ष रूप से दृष्टिपात किया जाए तो कुछ तथ्य दृष्टिगोचर होते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली वालों के हितार्थ कितना कार्य किया। उनकी राजनीतिक गतिविधियों का बिन्दुवार विवरण निम्नवत् हैं -
- वर्ष 2013 में अरविन्द केजरीवाल, लोकपाल की नियुक्ति हेतु संघर्षरत् थे, परन्तु सम्पूर्ण शासनकाल मे वे लोकपाल की नियुक्ति नही कर पाये, नगर निगम के परीक्षण की मांग करते थे, परन्तु नही करा पाए।
- बिजली सस्ती करने का वचन पूर्ण नहीं हुआ, इसके विपरीत निरन्तर मँहगी होती चली गई।
- दिल्ली की जनता को पानी की निर्विघ्न आपूर्ति का आश्वासन और टैंकर माफिया को समाप्त करने का वचन दिया था। परन्तु वे इन दोनों ही वचन की पूर्ति करने में असफल रहें। इसके इतर उन्होंने 1000 पानी के अतिरिक्त टैकरों को लाइसेंस देकर स्वयं को संदेह के घेरे में ले आए।
- यमुना नदी को भी अपने वचन के अनुरूप स्वच्छ, पावन तथा निर्मल नहीं कर पाए।
- इसी के साथ-साथ कूड़े के ढेरों को हटाने का भी वचन पूर्ण नहीं कर पाए। अपितु कूड़े के ढेर पहाड़ सदृश हो गए।
- उन्होंने दिल्ली में 2 लाख सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण का वचन दिया था, परन्तु यह वचन भी अपूर्ण रहा और अतीत के गर्त में पहुँच गया।
- अरविन्द केजरीवाल शिक्षा के क्षेत्र में भी अत्यधिक प्रचार करते हैं, जिसके अन्तर्गत उन्होंने 500 स्कूलों के निर्माण का वचन दिया था, परन्तु अपने प्रथम कार्यकाल में 29 और द्वितीय कार्यकाल में मात्र 14 ही विद्यालय बना पाये।
- वे अपने 11 वर्षो के कार्यकाल में एक भी उच्च शिक्षा का विश्वविद्यालय/महाविद्यालय नही खोल पाए।
- प्रतिवर्ष 20 लाख बेरोजगारों को रोजगार देने का वचन तो उन्हें पूर्णतया विस्मृत हो गया है।
- राजनीति में प्रवेश करते समय उन्होंने यह प्रतिज्ञा ली थी कि वे सादा जीवन उच्च विचार के आदर्शो पर चलेंगे, परन्तु उन्होंने दोनो ही प्रतिज्ञा को विस्मृत करते हुए 34 करोड़ की धनराशि की आलीशान कोठी का निर्माण किया, जिसमें समस्त आधुनिक सुख सुविधाएं विद्यमान हैं।
- इसके अतिरिक्त अन्य अनेकों आश्वासन उनके द्वारा जनता से किए गए, वे सब भी उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण पूर्ण नहीं हो पाए और अब जनता के समक्ष उन्होंने अपने नए-नए वचनों का पीटारा खोल दिया है। यदि हम उनके कार्यकाल में हुए घोटालों की चर्चा करें तो उसकी भी एक लम्बी सूची बन सकती है। परन्तु इस समय के चुनावी वातावरण में राजनीति में हुए घोटालों की चर्चा करना उपयुक्त नहीं होगा। उनके गुरु अन्ना हजारे जी का भी दिल्ली की जनता के लिए यह संदेश है कि उनके शिष्य अरविन्द केजरीवाल ,से उन्हें जो भी अपेक्षाएं थी, वे उन अपेक्षाओं की कसौटी पर पूर्णतया खरे नही उतरे।
अन्त में अरविन्द केजरीवाल के राजनीतिक भाग्य का निर्णय तो दिल्ली की जनता को ही करना है। अब देखना यह है कि दिल्ली की चुनावी चौसर पर कौन सा राजनीतिक दल, शकुनी की भांति अपने पासे फेंकने में सफल होता है और दिल्ली के चुनावों को जीतकर अपनी विजयश्री की पताका फहराता है।
(लेखक प्रख्यात शिक्षाविद हैं।)