Modi Government: संघ परिवार का एजेंडा और दुविधा में पड़ी कांग्रेस
Modi Government : अतीत में संघ परिवार के नेता जब इन राजनीतिक मुद्दों को हल करने की बात किया करते थे, तब विपक्षी इसे उनका ख्याली पुलाव कहा करते थे।
Modi Government : मोदी सरकार 2.0 के सत्ता संभालने के साथ ही देश में ऐसे कई राजनीतिक प्रयोग हुए जिसके बारे में अबतक सिर्फ कल्पना ही का जा सकती थी। अतीत में संघ परिवार (Sangh Parivar) के नेता जब इन राजनीतिक मुद्दों को हल करने की बात किया करते थे, तब विपक्षी इसे उनका ख्याली पुलाव कहा करते थे। मगर आज परिस्थितियां इसके विपरित हैं। कश्मीर में धारा 370 (Kashmir Article 370) का खात्मा, तीन तालाक (triple talaq) के खिलाफ सख्त कानून और सीएए (CAA) जैसे विवादास्पद और सियासी तौर पर संवेदनशील माने जाने वाले मुद्दे को बीजेपी संसद से पारित करवा चुकी है। इसके अलावा राम मंदिर (Ram Mandir) पर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले को भी भाजपा सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि अतीत में इन मुद्दों के कारण अछूत बनी बीजेपी के सामने आज मुख्यधारा के तमाम बड़े विपक्षी दल नतमस्तक क्यों हैं। आखिर कांग्रेस क्यों नहीं ये ऐलान कर रही कि सत्ता में आने के बाद वो इन मुद्दों की समीक्षा कर इसे वापस लेंगे। अभी तक किसी बड़े सियासी दल ने सत्ता में आने पर इन फैसलों को रद्द करने की बात नहीं कही है।
इसका कारण है देश की सियासत में आया दक्षिणपंथ की तरफ बड़ा झुकाव। पीएम मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी विगत सात सालों में कई राज्यों के चुनाव बड़े अंतर से हारी है। बंगाल, बिहार, दिल्ली और छत्तीसगढ इसके उदाहरण हैं। फिर भी इससे बीजेपी के दक्षिणपंथी एजेंडे को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का चुनावी सभा में चंडी पाठ करने से लेकर, अरविंद केजरीवाल को खुद को हनुमान भक्त बताना और अखिलेश यादव द्वारा खुद को कृष्ण भक्त बताना ये सब इसके उदाहरण हैं। ध्यान रहे ये सभी क्षत्रप अपने राज्यों में एकमुश्त मुस्लिम वोट पाते हैं, फिर भी इन्हें सार्वजनिक तौर पर अपने हिंदू पहचान पर जोर देना पड़ा। अक्सर संघ परिवार पर तीखा बोलने वाले एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह (Former CM Digvijay Singh) के बारे में भला कौन सोच सकता था कि वो राम मंदिर निर्माण के लिए चंदे के तौर पर एक लाख रूपए देंगे। भगवा परिवार के लोग इसे भी अपनी एक जीत की तरह ही देखते हैं।
वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस वक्त सबसे बड़ी दुविधा में है। 2014 में कांग्रेस की हुई जबरदस्त हार पर मंथन के लिए पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी की अगुवाई में बनी कमेटी ने पराजय के पीछे जनता में प्रो मुस्लिम औऱ एंटी हिंदू की छवि को माना। दरअसल कांग्रेस जब कभी बुरी हारती है तो उसकी जांच एंटनी कमेटी ही करती है, जो गुप्त होती है लेकिन हरबार मीडिया में लीक हो जाती है। 1996 और 2014 की जांच कमेटी इसका उदाहरण है। कमेटी की रिपोर्ट आते ही अचानक कांग्रेस नेताओं के सुर बदलने लगे। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष उज्जैन के महाकालेश्वर से लेकर गुजरात के सोमनाथ मंदिर तक के चक्कर काटने लगे।
कांग्रेस के प्रवक्ता बड़े जोर देकर राहुल गांधी के जनेऊधारी ब्राहम्ण होने और शिव भक्त होने की बात मीडिया में कहने लगे। धीरे – धीरे दिल्ली के सियासी हलकों में होने वाली इफ्तारें बंद हो गई। हालांकि तब भी वो आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को नहीं रोक सके। दरअसल कांग्रेस हिंदुत्व के पिच पर कभी बीजेपी को चुनौती नहीं दे सकती। हालांकि ये भी तथ्य है कि देश की आबादी में 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले किसी बड़े समुदाय को अलग थलग नहीं रखा जा जकता। फिर भी कांग्रेस की कोशिश है कि बगैर प्रो मुस्लिम दिखे उसे उनके सारे वोट मिल जाएं।
हाल ही में असम में बदरूद्दीन अजमल की अगुवाई वाले एआईयूडीएफ AIUDF)से अलग होकर कांग्रेस ने एकबार फिर उसी गलती को दोहराया है। कभी ओवैसी के साथ दिल्ली से लेकर हैदराबाद नगर निगम तक की सत्ता साझा करने वाली कांग्रेस आज उसे बीजेपी की बी टीम मानती है। उत्तर भारत के बड़े राज्यों में क्षेत्रिय दलों के हाथों अपना मजबूत मुस्लिम आधार गंवाने वाली कांग्रेस अगर इसी तरह उदासीन बनी रही तो बहुत जल्द एमआईएम, आइएसएफ औऱ एआईयूडीएफ जैसी पार्टियां उनके बचे खुचे मुस्लिम वोट को भी खींच लेगी। ऐसे में कांग्रेस को हिंदूवादी दिखने की कोशिश करने की बजाय मुद्दों को लेकर जमीन पर उतरना चाहिए।
डीजल, पेट्रोल और गैस की कीमत 2014 के मुकाबले आज कहीं ज्यादा है, और जनता में इसे लेकर जबरदस्त आक्रोश भी है। फिर भी वो सड़कों पर नहीं है। कांग्रेस को सोचने की जरूरत है कि महंगाई के इतने चरम पर पहुंचने के बाद भी वो क्य़ों नहीं "बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार" सरीखे नारे इस सरकार के खिलाफ गढ़ पाई है। राजनीतिक विश्लेषक हमेशा कहते रहे हैं कि विपक्ष की राजनीति करने में बीजेपी का कोई सानी नहीं है। यूपीए के दौरान हुए टूजी स्कैम औऱ एनडीए के दौरान हुए राफेल खरीद कंट्रोवर्सी इसकी एक बानगी है। ऐसे में अगर जरूरत पड़े तो लंबे समय से सत्ता की राजनीति करने वाली कांग्रेस को अब विपक्ष की राजनीति अपने सियासी प्रतिद्वंदी और लंबे समय तक विपक्ष में बैठी बीजेपी से सीखना चाहिए।