क्या राजस्थान में दोहराया जा रहा है 27 साल पुराना इतिहास, यहां जानें
कहावत है कि इतिहास अपने आप को कभी न कभी एक बार जरूर दोहराता है। ये कहावत 27 साल बाद एक बार फिर से सच साबित हुई है। ऐसा ही एक घटनाकम पहले भी सामने आ चुका है। जगह वही है, बस पात्र बदल गये हैं।
जयपुर: कहावत है कि इतिहास अपने आप को कभी न कभी एक बार जरूर दोहराता है। ये कहावत 27 साल बाद एक बार फिर से सच साबित हुई है। ऐसा ही एक घटनाकम पहले भी सामने आ चुका है। जगह वही है, बस पात्र बदल गये हैं।
अतीत के पन्नों को अगर पलटे तो 1993 की याद आती है। ये वही दौर था जब सरकार बनाने के लिए बीजेपी विधायक दल के नेता भैरोंसिंह शेखावत ने गवर्नर हाउस में में विधायकों की परेड करवाई थी।
वैसे एक बात और है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य तो है ही, साथ ही यहां का इतिहास यहां होने वाला हर छोटी बड़ी घटनाएं पूरे भारत पर अपना प्रभाव छोडती हैं।
आज राजस्थान में जिस तरह के हालात नजर आ रहे हैं, वो गहलोत सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। बल्कि इससे सरकार पर सियासी खतरा और भी ज्यादा मंडराने लगा है।
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क्या सचिन पायलट करेंगे घर वापसी
कांग्रेस नेता सचिन पायलट पहले ही पार्टी से बगावत करके अपने लिए नया रास्ता तलाश रहे हैं। लेकिन अभी ये तय नहीं है कि वे बीजेपी में जाएंगे या अपनी पुरानी पार्टी में वापसी करेंगे। जिस तरह से उनके बयान आ रहे हैं उससे अभी कुछ भी कहना सही नहीं होगा।
खबरें तो ऐसी भी आ रही हैं कि पायलट लंबी उड़ान भरने की तैयारी में नजर आ रहे हैं और राजस्थान के कई कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में कर चुके हैं और एक ‘जादुई आंकड़ा’ छूने के लिए अभी भी जोड़तोड़ की रणनीति अपना रहे हैं।
राजस्थान में सरकार बचाने के लिए नौबत तो यहां तक आ पहुंची कि गहलोत को राजभवन में धरना देने के लिए भी जाना पड़ गया। अकेले नहीं, बल्कि गहलोत अपने गुट के साथी विधायकों की पूरी फौज के साथ राजभवन में पहुंचे।
उधर पायलट के बागी होने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार पर संकट के बादल मंडरा चुके हैं। राजनीति में 'जादूगर' के नाम से पहचाने जाने वाले गहलोत लगातार अपनी सरकार बचाने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं।
सरकार बचाने के लिए हर वो कोशिश कर रहे गहलोत
वहीँ सियासी जानकार तो यहां तक कहते है कि राजनीति में गहलोत कच्चे खिलाड़ी नहीं है। गहलोत खुद कहते हैं कि उनकी राजनीति में और पार्टी में काफी रगड़ाई हुई है। ऐसे में गहलोत सरकार बचाने के लिए हर वो कोशिश कर रहे हैं जो उन्हें करनी चाहिए या जो वो कर सकते हैं।
उन्होंने पार्टी की तरफ से ये आरोप बीजेपी और उसके नेताओं पर लगाया है कि वे लोग विधायकों की खरीद-फरोख्त का काम कर रही है और गहलोत सरकार को गिराने की साजिश रच रही है।
इसी कड़ी में गहलोत अब अपनी सरकार बचाने और शक्ति प्रदर्शन के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं। राज्यपाल कलराज मिश्र से भी गहलोत कई बार मुलाकात कर चुके हैं। लेकिन जब बात नहीं बनी तो उन्होंने अपने समर्थक विधायकों के साथ राजभवन कैम्पस के अंदर के धरना शुरू कर दिया।
जब इतने से भी जिद पूरी नहीं हुई तो अशोक गहलोत का नया बयान सामने आया जिसमें उन्होंने कहा कि विधानसभा सत्र बुलाया जाए, नहीं तो प्रदेश की जनता राजभवन का घेराव करेगी। उनका ये बयान आते ही बीजेपी को भी इस विवाद में कूदने का मौक़ा मिल गया। अब बीजेपी के कई नेता गहलोत के इस बयान पर हमलावर हो गये हैं।
गहलोत के बयान के बाद बीजेपी नेता गुलाब चंद कटारिया का ताजा बयान आया है जिसमें उन्होंने राजभवन में सीआरपीएफ की तैनाती की मांग की हैं।
क्या हुआ था 27 साल पहले?
अब बात करते है 27 साल पहले की उस घटना की। जिसका राजस्थान की राजनीति में रिप्ले बताया जा रहा है। उस समय भी पिच राजस्थान की थी, खिलाडी बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से खेलने वाले नेता थे। बैटिंग और बालिंग सरकार बनाने को लेकर थी।
बस फर्क है तो ये कि, साल 1993 में राजस्थान में जिस जगह पर बीजेपी खड़ी थी। वहां पर आज अशोक गहलोत और उनकी पार्टी खड़ी है। जबकि उस वक्त वहां बीजेपी के दिग्गज नेता भैरों सिंह शेखावत मैदान में थे।
ये दिन था आज से 27 साल पहले नवंबर 1993 का। उस दिन विधानसभा के लिए चुनाव हुए तो बीजेपी को प्रदेश की जनता ने भारी मतों से विजयी बनाया।
अगर उससे थोडा और पीछे जाये तो तो 1990 में राजस्थान मे बीजेपी की सरकार बनी तो भैरोंसिंह शेखावत को सीएम चुना गया लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राजस्थान की भैरोंसिंह शेखावत की सरकार को केंद्र सरकार ने बर्खास्त कर दिया था।
बताया जाता है कि उस वक्त केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी। इसके बाद राजस्थान में 1993 में फिर इलेक्शन हुए। इस बार भी राजस्थान के लोगों ने बीजेपी को जिताया।
लेकिन बीजेपी बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई। इसके बाद शुरू हुआ घटनाक्रम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
बात करते हैं साल 1993 की जब राजस्थान में 199 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी ने 95 सीटों पर चुनाव में विजय प्राप्त की और तीन सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जीत हासिल हुई। बीजेपी प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर तो आई लेकिन सत्ता के ताले की चाबी अभी भी उसकी पहुंच से दूर थी।
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तब बीजेपी ने जताया था शेखावत पर भरोसा
तब बीजेपी ने भैरोंसिंह शेखावत पर फिर से भरोसा जताया और उन्हें बीजेपी ने विधायक दल का नेता मान लिया। बताया जाता है कि इस चुनाव में कांग्रेस को 76 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। आज जिस जोश में बीजेपी के नेता हैं उस वक्त कांग्रेस का हौसला भी इतना ही मजबूत था और सरकार बनाने की कवायद में कांग्रेस भी पीछे नहीं थी।
जानकारों के मुताबिक कांग्रेस की नजर 21 निर्दलीय और अन्य जीत कर आए उम्मीदवारों पर थी। उस दौरान राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए कांग्रेस नेता और हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल भी काफी सक्रिय नजर आ रहे थे।
आज ही तरह उस वक्त भजनलाल पर विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगे थे। जबकि ठीक दूसरी तरफ बीजेपी के गुट में लालकृष्ण आडवाणी सक्रिय थे और सियासी उठापठक के बीच जयपुर भी आए थे। वहीँ उसे राजस्थान की सियासत में शह और मात का असली खेल शुरू हुआ।
वो दिन 29 नवंबर 1993 का था। जब भैरोंसिंह शेखावत को विधायक दल का नेता चुना गया था उसके बाद बीजेपी की ओर से तत्कालीन प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रामदास अग्रवाल ने राज्यपाल को पत्र लिखकर भैरोंसिंह शेखावत को सरकार बनाने के लिए बुलावा भेजने के लिए आग्रह किया।
जनकी ठीक इससे एक पूर्व में ही ही पांच निर्दलीय विधायकों का समर्थन पत्र भी राज्यपाल को सौंप दिया गया। उसके बाद से तो सियासत और भी ज्यादा गरमा गई, जब गवर्नर की तरफ से इस मामले में कोई रिएक्शन नहीं आया।
उस समय राजस्थान में बलिराम भगत गवर्नर हुआ करते थे। तकरीबन पांच दिन तक तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत ने इस मामले में बिल्कुल भी रिएक्ट नहीं किया।
भैरोसिंह ने किया था कूच
जिसके बाद से बीजेपी के नेताओं में उठापठक तेज हो गई थी तो वहीं कांग्रेस गुट भी जोड़तोड़ में लगा था। बताया जाता है कि उस वक्त कांग्रेस लगातार निर्दलीय विधायकों के साथ संपर्क में थी और समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही थी।
इसी दौरान जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो भैरोंसिंह शेखावत ने राजभवन की तरफ कूच कर दिया, उनके साथ उनके समर्थन में विधायकों की पूरी फौज थी।
लेकिन तकरीबन पांच दिन तक राज्यपाल की ओर से कोई भी उत्तर नहीं मिलने के बाद 1993 में अपने विधायकों के साथ भैरोंसिंह शेखावत राजभवन पहुंचे और वहां धरने पर अड़ गये।
शेखावत के इस कदम से दिल्ली की सियासत भी गरमा गई थी।. राजस्थान के सियासी दांव पेंच में तब अटल बिहारी वाजपेयी भी अहम भूमिका थे। उन्होंने दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव से राजस्थान के राज्यपाल के रवैये की शिकायत की थी।
इसके बाद राजस्थान के राज्यपाल पर भी प्रेशर बना।
4 दिसंबर 1993 को भैरोंसिंह शेखावत ने ली थी सीएम पद की शपथ
गौर करने की बात ये कि राज्यपाल भगत ने 4 दिसंबर 1993 को भैरोंसिंह शेखावत को सरकार बनाने का निमन्त्रण भेजा और इसी दिन भैरोंसिंह शेखावत ने एक बार फिर सीएम पद की शपथ ली थी।
उस वक्त बीजेपी ने निर्दलीय विधायकों के समर्थन से राजस्थान में सरकार बनाने में कामयाबी पाई थी। ये वो वक्त था जब राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम को अपने पक्ष में लाने और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिए राजस्थान से दिल्ली तक बीजेपी के पास शेखावत, आडवाणी और वाजपेयी जैसे दिग्गज नेताओं की पूरी पलटन खड़ी थी, लेकिन कांग्रेस के पास ऐसा कोई प्रभावशाली चेहरा नहीं था जो निर्दलीय विधायकों को अपनी पार्टी की तरफ ला सके सके।
अब राजस्थान में अशोक गहलोत ने भी बीजेपी के भैरोंसिंह शेखावत से मिलती-जुलती पारी खेली है। सब कुछ बिल्कुल उसी दिशा में बढ़ रहा है जैसा कि आज से 27 साल पहले हुआ था।