बड़े क्या अब तो छोटे पासवान भी हो गए सबसे बड़े मौसम वैज्ञानिक
राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने जब कभी अपने दोस्त रहे लोकजनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान को सबसे बड़ा मौसम वैज्ञानिक कहा था और यह भी कहा था कि राजनीति में बदलाव को सबसे पहले और सबसे अच्छी तरह वह भांपते हैं, तब लालू यह समझ भी नहीं पाए होंगे कि वह जो कह रहे हैं वह पासवान की दो पीढ़ियों का हुनर है।
योगेश मिश्र
राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने जब कभी अपने दोस्त रहे लोकजनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान को सबसे बड़ा मौसम वैज्ञानिक कहा था और यह भी कहा था कि राजनीति में बदलाव को सबसे पहले और सबसे अच्छी तरह वह भांपते हैं, तब लालू यह समझ भी नहीं पाए होंगे कि वह जो कह रहे हैं वह पासवान की दो पीढ़ियों का हुनर है। दो पीढ़ियों की दक्षता है। हाल फिलहाल नोटबंदी के फायदों पर सवाल, राफेल पर जेपीसी की मांग का समर्थन करने के साथ ही साथ राहुल गांधी की तारीफ करके रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने जो पासा फेंका उसने भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को भी बैकफुट पर जाने को मजबूर कर दिया।
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लोकसभा की छह और रामविलास पासवान के लिए राज्य सभा की शर्त पर पासवान ने एनडीए का हिस्सा बनने की हामी भरी। उनके मौसम विज्ञानी होने के लालू के दावे के बीच एनडीए के साथ पासवान के बने रहने से यह संदेश तो जुटाए ही जा सकते हैं कि फिर एक बार मोदी सरकार। क्योंकि कभी भी पासवान ने ऐसी गलती नहीं की है कि वह जीतें और जिसकी सरकार बने उसके साथ हमकदम न हों। यही नहीं जिसकी सरकार बनने वाली हो उसका दामन पासवान न थाम लें, यह इतिहास बताता ही नहीं है।
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विधानसभा और लोकसभा में लगातार बने रहे
डा. राममनोहर लोहिया के संसोपा से 1969 में विधायक बने। लेकिन लोहिया के किसी भी सिद्धांत पर अपने राजनीतिक कैरियर में कभी अमल न करने वाले पासवान चरण सिंह व राजनारायण के प्रिय रहे हैं। मंडल कमीशन लागू करने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह को ढाल की तरह दो लोगों की जरूरत थी, जिसमें एक ओबीसी और एक दलित होना चाहिए था। इनमें रामविलास पासवान और शरद यादव थे। 1977 में रिकार्ड मतों से जीत ने भारतीय राजनीति में पासवान को काफी सुर्खियां दीं। पासवान बीते 50 सालों से कुछ एक कालखंडों को छोड़ दें, तो विधानसभा और लोकसभा में लगातार बने रहे हैं। पहली बार छठवीं लोकसभा में लोकदल के टिकट पर वह जीतकर पहुंचे। 1977 में सातवीं लोकसभा, 1980 में आठवीं लोकसभा, 1989 में नवीं, 1991 में दसवीं, 1996 में 11वीं, 1998 में 12वीं, 1999 में 13वीं, 2004 में 14वीं और 2014 में 16वीं लोकसभा के सदस्य बने।
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परिवारवाद के चलते ही पासवान को काफी दिक्कतें भी झेलनी पड़ीं
उन्होंने लोकदल, जनतादल और जनता पार्टी के बाद अपनी दलित सेना का गठन किया फिर आगे चलकर लोकजनशक्ति पार्टी बनाई, जिसके आज भी वह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। चुनाव जीतने और मंत्री बनने से आगे उनकी राजनीति बढ़ ही नहीं पाई, उन्होंने परिवार से आगे एक भी नेता तैयार ही नहीं किया। पहले अपने दो भाइयों को विधायक, सांसद और मंत्री बनवाने की सियासत करते रहे और बाद में उन्होंने अपने बेटे के लिए फिल्मों में कैरियर तलाशना शुरू किया। बालीवुड में सफल न होने के बाद चिराग के राजनीतिक कैरियर को पंख लगाने में पासवान इन दिनों अपनी सारी ऊर्जा लगा रहे हैं। परिवारवाद, जातिवाद, मुसलमानवाद मौका परस्ती उनकी फितरत का हिस्सा है ऐसा उनके समकालीन नेता बताते हैं। परिवारवाद के चलते ही पासवान को काफी दिक्कतें भी झेलनी पड़ीं। बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर की एक विधानसभा सीट से पासवान को अपना उम्मीदवार बदल कर अपने दामाद को इसलिए टिकट देना पड़ा क्यों कि वह हंगामा कर रहा था पासवान ने जिसका टिकट काटा था वह निर्दलीय उतरी और जीत गई पासवान के दामाद की जमानत जब्त हो गई। पहली पत्नी राजकुमारी देवी से उनकी दो बेटियां-ऊषा और आशा हैं। 1983 में उन्होंने एक एयरहोस्टेस और पंजाबी हिंदू रीना शर्मा से विवाह किया, जिससे एक बेटी और बेटा चिराग पासवान है।
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दलित राजनीति के एकछत्र राजनेता बने रहे
बिहार पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरे पासवान पांच जुलाई 1947 को पैदा हुए और 1969 में बिहार विधानसभा के विधायक बन गए थे। उन्हें बिहार में मायावती और कांशीराम सरीखे दलित नेताओं से कभी दो-दो हाथ नहीं करने पड़े। नतीजतन, दलित राजनीति के वह एकछत्र राजनेता बने रहे। हालांकि उन्होंने मायावती और कांशीराम की कर्मभूमि उत्तर प्रदेश में भी दलित नेता बनने के अपने ख्वाब को सियासी जमीन पर उतारने की कोशिश बहुत की। लेकिन वह कामयाब ही नहीं हुए। 1996 से वह हर सरकार में मंत्री हैं। इंद्रकुमार गुजराल, देवगौड़ा, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी सबको साधने की अद्भुत क्षमता उन्होंने दिखायी है।
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मनमोहन सरकार में भी पासवान मंत्री बने
तभी तो अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में गुजरात दंगों की आड़ में सांप्रदायिकता का सवाल खड़ा करते हुए सरकार छोड़ दी। उनके सरकार छोड़ते ही ये अनुमान सियासी गलियारों में लगाए जाने लगे थे कि अटल की सरकार नहीं आएगी। अनुमान सच निकले। मनमोहन सरकार में भी पासवान मंत्री बने पर वहीं रामविलास पासवान सांप्रदायिकता के मुद्दे पर मोदी सरकार में खामोशी ओढ़े रहे। नीतीश और लालू की लड़ाई के बीच बिहार में 2005 में सत्ता की चाभी अपने पास रखने के उनके मंसूबे को पलीता लग गया। 2009 में रामसुंदर दास जैसे समाजवादी ने उन्हें हरा दिया था। इसके बाद पासवान राज्यसभा में पहुंच गए। लेकिन 1984 में कांग्रेस के रामरतन राम से हारे तो उन्हें संगठन में काम करना पड़ा।
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आज जब मौसम के बारे में पता करने के लिए डाप्लर रडार की तकनीक आ गई है तब से मौसम विज्ञान को लेकर की जाने वाली भविष्यवाणियां एकदम सटीक साबित हो रही हैं। लेकिन रामविलास पासवान बीते चालीस सालों से मौसम के मिजाज को सटीक तौर पर भांप लेने का काम करते आ रहे हैं। उनके बेटे चिराग पासवान ने भी इस कला में महारत हासिल की है, यह पासवान के लिए अभिमान का सबब हो तो कोई उज्र नहीं है।