रांची। झारखंड में ‘सरना’ आंदोलन फिर गर्मा रहा है। इसी हफ्ते यहां सरना धर्म सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता माझी हड़ाम गोपाल हांसदा ने की। बैठक में निर्णय लिया कि आदिवासी समाज की धार्मिक पहचान, सरना धर्म कोड, राष्ट्रीय जनगणना कॉलम में शामिल करने के लिए आंदोलन चलाया जायेगा। इसी संदर्भ में मिशन दिल्ली के तहत एक करोड़ आदिवासियों द्वारा दिल्ली का घेराव, सरना धर्म कोड और पांचवीं अनुसूची अधिकार के लिए सफल बनाने के प्रस्ताव पारित किए गए।
सम्मेलन में संताल परगना सरना धर्मगुरु लश्कर सोरेन, अंतरराष्ट्रीय सरना धर्म परिषद के अध्यक्ष संजय पाहन व संताल परगना धर्म महासभा के महासचिव सुनील हेंब्रम भी शामिल हुए। इस मौके पर कहा गया कि सरना धर्म सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य समाज में सरना धर्म के प्रति आस्था का प्रचार-प्रसार करना है, ताकि आदिवासी समाज धर्म के रास्ते पर चल सके एवं समाज में व्याप्त बुराईयों से लड़ सके।
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इसके पहले भी आदिवासी सरना धर्म समाज द्वारा सामाजिक कार्यकर्ताओं, आदिवासी सरना धर्मावलंबियों की संयुक्त बैठक हुई थी। इसमें में न्यू सरना धर्म कोड लागू करने, भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल और स्थानीय नीति सहित अन्य विषयों पर चर्चा की गई। बाद में समाज ने मार्च निकाला, सभा की और सरकार का पुतला फूंका।
अनुसूचित जनजाति के जाति प्रमाण पत्र में सरना के बदले हिंदू धर्म लिखे जाने के मामले पर झारखंड आदिवासी संघर्ष मोर्चा ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है और इसे आरएसएस और भाजपा की साजिश करार दिया है। मोर्चा प्रमुख डॉ. करमा उरांव ने कहा कि सरना धर्म का अपना अलग अस्तित्व है। मगर एक साजिश के तहत इसे हिंदू सनातन करार दिया जा रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री सरना-सनातन की गलत समीक्षा कर रहे हैं। बार-बार इसे हिंदू तथा सनातन कह कर सरना धर्म के अस्तित्व को नकारने का काम किया जा रहा है। यह गहरी साजिश है। ताकि आदिवासियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।
क्या है सरना धर्म
सरना झारखण्ड के आदिवासियों का आदि धर्म है। यह असल में प्रकृति पूजक धर्म है और इसमें पेड़, पौधे, पहाड़ इत्यादि प्राकृतिक सम्पदा की पूजा की जाती है। यूं तो हिन्दू धर्म और सरना धर्म में अधिकांश बातों में समानता मिलती है, जो कि एक जैसे ही पूजा अर्चन किया जाता है। लेकिन सरना धर्म को छोड़ कर बहुत से आदिवासी लोग ईसाई धर्म और सनातन धर्म को अपना रहे हैं।
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झारखंड के सरना आदिवासी ख़ुद को हिंदू कहे जाने का विरोध करते रहे हैं अपने धर्म को मान्यता दिए जाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। यह समुदाय छोटानागपुर क्षेत्र में रहता है। सरना आदिवासी समुदाय का कहना है कि वे हिंदू नहीं हैं। वे प्रकृति के पुजारी हैं। उनका अपना धर्म है ‘सरना’, जो हिंदू धर्म का हिस्सा या पंथ नहीं है। इसका हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं है। आदिवासी सरना महासभा के संयोजक शिवा कच्छप कहते हैं, ‘धर्म आधारित जनगणना में जैनियों की संख्या 45 लाख और बौद्ध की जनसंख्या 84 लाख है। हमारी आबादी तो उनसे कई गुना ज्य़ादा है। पूरे देश में आदिवासियों की आबादी 11 करोड़ से ज्यादा है। फिर क्यों न हमारी गिनती अलग से हो? पूर्व विधायक देवकुमार धान का कहना है कि धर्म आधारित जनगणना में झारखंड की कुल जनसंख्या में 42 लाख 35 हजार 786 लोगों ने अन्य के कॉलम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
सरना धर्म वालों का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन इस पर खतरे बढ़ रहे हैं कि इसे दूसरे धर्म में शामिल कर संख्या बढ़ा लिए जाएं। अधिकतर जनगणना में इन्हें हिन्दू में शामिल किया जाता रहा है। अकेले झारखंड में सरकारी आंकड़े के मुताबिक करीब 80 लाख आदिवासी हैं, जबकि वास्तव में यह संख्या और ज्यादा है। झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में से 28 सीटें और 14 लोकसभा में चार सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं और आदिवासी इलाकों के लिए अलग से ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल भी है।
सरकार का कहना है कि जनगणना में झारखंड के आदिवासियों को अलग से धर्म कोड नहीं दिया जा सकता। उन्हें अभी तक निर्धारित छह धर्म कोड में से ही किसी एक को चुनना होगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य के विविध आदिवासी व सामाजिक संगठनों की उस मांग को ठुकरा दिया है जिसमें आदिवासियों के लिए इससे इतर धर्म कोड की मांग की गई है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने इससे इन्कार करते हुए कहा है कि फिलहाल पृथक धर्म कोड, कॉलम या श्रेणी बनाना व्यावहारिक नहीं होगा। आदिवासी सरना महासभा को प्रेषित पत्र में रजिस्ट्रार जेनरल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के सहायक निदेशक सी टोप्पो ने आशंका व्यक्त की है कि अगर छह धर्म के कॉलम के अतिरिक्त नया कॉलम या धर्म कोड आवंटित किया गया तो बड़ी संख्या में पूरे देश में ऐसी और मांगें उठेंगी।
हालांकि इस मसले पर यह आश्वासन दिया गया है कि 2021 में होने वाली जनगणना के पहले यह मामला रजिस्ट्रार जेनरल ऑफ इंडिया की तकनीकी सलाहकार समिति के समक्ष रखा जाएगा। यह भी स्पष्ट किया गया है कि धर्म कोड का आवंटन कई अन्य विशेषताएं स्थापित करने की अपेक्षा सुविधाजनक गणना के प्रयोजन में अधिक होता है। सुविधा की दृष्टि से छह बड़े धर्मों के कोड अनुसूची में दर्शाए गए हैं। पृथक कोड आवंटित किए गए धर्म को कोई लाभ अथवा विशेष सुविधा प्राप्त नहीं होती है।