यूपी में आस है पीटने की डंका मगर कांग्रेस की सियासत से दूर हैं प्रियंका
यूपी की सियासत में कभी सबसे मजबूत ताकत मानी जाने वाली कांग्रेस पिछले तीन दशक से सत्ता से दूर है मगर इसके बावजूद पार्टी की सियासी गतिविधियों में अभी तेजी नहीं दिखाई दे रही है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में हालांकि अभी विधानसभा चुनाव में एक वर्ष से ज्यादा का समय बचा है मगर लगभग सभी सियासी दलों ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। भाजपा और सपा जैसे बड़े सियासी दल ही नहीं बल्कि ओमप्रकाश राजभर, असदुद्दीन ओवैसी और शिवपाल सिंह यादव जैसे छोटे खिलाड़ी भी गठबंधन के लिए सक्रिय हो गए हैं।
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ऐसे में कांग्रेस प्रियंका गांधी की ओर टकटकी लगाए देख रही है मगर हाल के दिनों में यूपी की सियासत में प्रियंका गांधी की कोई सक्रियता नहीं दिखी है। वे केवल ट्विटर और फेसबुक पर प्रदेश की योगी सरकार और भाजपा को घेरने में जुटी हुई हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस की रणनीति को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
साल भर से प्रदेश कार्यालय नहीं पहुंचीं प्रियंका
यूपी की सियासत में कभी सबसे मजबूत ताकत मानी जाने वाली कांग्रेस पिछले तीन दशक से सत्ता से दूर है मगर इसके बावजूद पार्टी की सियासी गतिविधियों में अभी तेजी नहीं दिखाई दे रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू जरूर प्रदेश के विभिन्न जिलों का दौरा करके कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में जुटे हुए हैं मगर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता अभी तक नजर नहीं आ रही है।
प्रियंका गांधी पिछले साल दिसंबर में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय आई थीं और उसके बाद वे अभी तक प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में नहीं पहुंची है। ऐसे में कांग्रेस के भीतर भी दबे स्वर में यह चर्चा हो रही है कि आखिर यूपी की सत्ता पाने की कांग्रेस की आस कैसे पूरी होगी।
कार्यकर्ताओं-जनता के बीच नहीं दिख रहीं प्रियंका
पिछले लोकसभा चुनाव के पहले प्रियंका के सक्रिय राजनीति में उतरने के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने उस समय टिप्पणी करते हुए कहा था कि उन्हें यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव की भी जिम्मेदारी दी गई है।
शुरुआती दिनों में प्रियंका ने काफी सक्रियता भी दिखाई और सोनभद्र के माखी कांड को उन्होंने राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया था, लेकिन उसके बाद से उनकी वैसी सियासी सक्रियता नहीं दिख रही है। हालांकि वे बीच-बीच में वर्चुअल तरीके से प्रदेश की योगी सरकार और भाजपा को घेरती रहती हैं मगर कार्यकर्ताओं और जनता के बीच उनकी कोई सक्रियता नहीं दिख रही है।
कांग्रेस में भी उठने लगे सवाल
पिछले एक साल के दौरान प्रियंका गांधी ने सिर्फ एक बार उत्तर प्रदेश का रुख किया है जब वे अपने भाई राहुल गांधी के साथ हाथरस में पीड़ित परिवार से मुलाकात करने पहुंची थीं। उसके बाद उन्होंने ट्विटर पर योगी सरकार को घेरा था और उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाए थे। उसके बाद से कांग्रेस को संजीवनी देने के लिए उनकी जिस तरह की सक्रियता होनी चाहिए,ङ वैसी कहीं भी नहीं दिख रही है।
यही कारण है कि पार्टी में भी अब यह सवाल उठने लगा है कि यूपी में सत्ता पाने की कांग्रेस की आस कैसे पूरी होगी जब उसका अगुआ ही सियासी गतिविधियों से दूरी बनाकर चल रहा है।
भाजपा की गतिविधियां काफी तेज
दूसरी ओर भाजपा अभी से ही चुनावी तैयारियों में जुट गई है। प्रदेश प्रभारी बनाए जाने के बाद राधा मोहन सिंह ने विभिन्न जिलों का दौरा शुरू कर दिया है और वे पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर सियासी गतिविधियों में तेजी लाने में जुटे हुए हैं।
उन्होंने प्रदेश कार्यालय में बैठक के बाद विभिन्न जिलों में बैठकों का सिलसिला भी शुरू कर दिया है। किसान सम्मेलनों के जरिए योगी सरकार के कई मंत्री भी विभिन्न जिलों में सक्रिय हैं मगर कांग्रेस की गतिविधियां पूरी तरह ठंडी पड़ी हुई हैं।
सपा, आप और दूसरे दल हुए सक्रिय
आप के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल में एलान किया है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आप भी मैदान में उतरेगी। केजरीवाल की घोषणा से काफी पहले से ही आप नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह सक्रिय हैं और विभिन्न जिलों का दौरा करने में जुटे हुए हैं। आप पर भाजपा नेताओं की टिप्पणियों के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी भाजपा पर तीखा हमला बोला है।
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समाजवादी पार्टी भी किसानों के मुद्दे पर विभिन्न जिलों में धरना-प्रदर्शन करने में जुटी हुई है। एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी, ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल सिंह यादव अभी से गठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे हैं। ऐसे में यूपी की सियासत से प्रियंका की दूरी सियासी लोगों के लिए अचरज का विषय बनी हुई है। इसके साथ ही कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर भी सवाल उठ रहे हैं।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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