अपना भारत/न्यूज़ट्रैक से बोले योगी के मंत्री पचौरी, खादी व्यवसाय को आधुनिक स्वरूप दिया जाएगा
लखनऊ : मध्यप्रदेश के भिंड से कानपुर आकर व्यवसाय और राजनीति में अलग पहचान बनाने वाले सत्यदेव पचौरी प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में अलग पहचान रखते है। राजनीति में जब लोग पद, विभाग और अन्य मुद्दों को लेकर दांव-पेच करने वाले नेताओं से अलग सरल एवं मिलनसार पचौरी अपनी अलग छवि रखते है।
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पचौरी के पास मंत्रिमंडल का खादी ग्रामोद्योग, रेशम उद्योग तथा लघु एवं सीमान्त उद्योग जैसे सामान्य विभाग है, परन्तु वह इसी में नयी लीक स्थापित करने के प्रयास कर रहे है। एमएससी (केमिस्ट्र) सत्यदेव पचौरी कानपुर की आर्यनगर तथा गोविन्दनगर विधानसभा क्षेत्रों से तीन बार विधायक निर्वाचित हुए और पहली बार मंत्री बने है। अपना भारत तथा न्यूज ट्रैक के लिए पचौरी से वरिष्ठ संवाददाता विजय शंकर पंकज ने वार्ता की जिसके मुख्य अंश अगली स्लाइड में देखिए!
अपना भारत -- देश में खादी आजादी के आंदोलन से जुड़ा राष्ट्रीय एवं स्वदेशी भावना का प्रतीक है परन्तु वस्त्रोद्योग में इसकी स्थिति अत्यन्त दयनीय है।
पचौरी -- पिछले कुछ दशकों में देश एवं विश्व स्तर पर वस्त्रोंद्योग में क्रान्ति आयी है। इसके विपरीत खादी वस्त्र का पूरा कारोबार अब भी चरखा आधारित है। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार तथा स्वदेशी रोजगार को बढवा देने के लिए खादी एवं चरखा को अपनाया था। अब आजादी के 70 वर्ष बाद भी खादी उद्योग पुराने चरखे के ही आधार पर काम कर रहा है।
आजादी के बाद खादी उद्योग को आधुनिक स्वरूप देने तथा जनता में लोकप्रिय बनाने के लिए पहल की जानी चाहिए। वैसे भी अभी खादी वस्त्र देश की राष्ट्रीय अस्मिता तथा स्वदेशी की भावना का प्रतीक है। देश के पुराने खादी कारखाने अब भी लाभ में काम कर रहे है परन्तु आधुनिक व्यावसायिकता की दौर में छोटे चरखा आधारित खादी कारखाने पिछड जाते है।
अपना भारत -- खादी वस्त्रोद्योग को बढावा देने की राज्य सरकार की कोई कार्ययोजना है?
पचौरी -- खादी वस्त्रोद्योग को बढïवा देने के लिए विस्तृत कार्य योजना बनायी जा रही है और इसका प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भी भेजा जाएगा। इसके लिए खादी को मिलने वाली अनुदान धनराशि को जारी रखते हुए भी प्रतिस्पर्धी व्यावसायिकता की नीति अपनानी होगी। खादी उद्योग को खैरात पर रखकर आधुनिक बनाना संभव नही होगा। खादी उत्पादन की पुरानी लीक को तोडते हुए अब आधुनिक !! सोलर चरखे !! लगाने को प्रोत्साहित किया जाएगा। सोलर चरखो के लिए केन्द्र सरकार से विशेष अनुदान की मांग की जाएगी।
अभी तक सामान्य चरखे से 6 से 8 घंटे में एक व्यक्ति 400 से 450 ग्राम धागा बना पाता है जिससे मजदूर को मुश्किल से एक दिन में 50-60 रूपये की ही कमाई हो पाती है जबकि आजकल मनरेगा का मजदूर बिना कुछ काम किये ही 200 रूपये पा जाता है। सोलर चरखा लगने पर एक दिन में एक व्यक्ति डेढ से दो किलो धागे का उत्पादन करेगा जिससे उसकी कमाई 250 से 300 रूपये प्रतिदिन हो जाएगा।
यही नही सोलर चरखे का धागा सामान्य हाथ के चरखे से ज्यादा मजबूत, सुन्दर एवं टिकाऊ होगा। इस प्रणाली से छोटे चरखा उद्योग भी अलग वस्त्रोद्योग से कम्पटीशन ले पायेगा। सोलर चरखे का चलन आजादी के आन्दोलन की तरह हर गरीब से अमीर तक स्वदेशी की नीति की तरह प्रचारित एवं स्वीकार्य बनाया जाएगा।
अपना भारत -- क्या केवल सोलर चरखे से ही खादी वस्त्रोंद्योग में क्रान्ति आ जाएगी?
पचौरी -- नही। सोलर चरखा खादी वस्त्रों का प्राथमिक पडïव है जो कपड़ा बनाने वाली फैक्ट्रियों को धागे का कच्चा माल उपलब्ध कराता है। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड ग्रामीण एवं कुटीर उद्योगों को 4 प्रतिशत की कम ब्याज दर पर लोन उपलब्ध कराता है। इसमें कई तरह के उद्योगों के लोन पर अच्छी -खासी अनुदान राशि भी होती है।
सोलर चरखे से खादी धागों की गुणवत्ता के साथ ही अधिक उत्पादन होगा। खादी बोर्ड के साथ ही लघु उद्योग इकाइयों के माध्यम से भी सस्ते ब्याज दरों पर लोन मिलता है। इसके माध्यम से राज्य सरकार निजी क्षेत्र को खादी कारखाने स्थापित करने को प्रोत्साहित करेगी।
अपना भारत -- जिस सोलर चरखे का आप जिक्र करते है, उसे अब तक स्थापित नही किया गया?
पचौरी -- असल में खादी वस्त्रों के लिए अभी तक हाथ से काते सूत को ही मान्यता है। सोलर चरखे के सूत को अभी तक खादी की मान्यता प्राप्त नही है। इसके लिए केन्द्र सरकार से अनुरोध भेजा जा रहा है। इस मसले पर केन्द्रीय लघु उद्योग मंत्री कलराज मिश्र से बात हो चुकी है। केन्द्र की अनुमति मिलते ही प्रदेश भर सोलर चरखे को हर घर तक पहुंचाने की पहल की जाएगी। इसके तहत पहले ही चरण में 50 लाख सोलर कारखाने लगाने की योजना है।
इससे गांवों में बेरोजगार युवकों, महिलाओं एवं बुजुर्गो को आय का नया संसाधन हासिल हो जाएगा। खादी सूत का उत्पादन बढने के साथ ही प्रदेश में नयी वस्त्रों की नयी औद्योगिक इकाइयां लगाई जाएगी। खादी बोर्ड पहले कम्बल का भी उत्पादन करता था परन्तु धागे की कमी से या इकाइयां बंद हो गयी और तत्कालीन राज्य सरकारों ने इनके पुर्नजीवन के लिए कोई कार्ययोजना नही बनायी। प्रदेश में ऐसी कम्बल उत्पादन की 8 इकाइयां थी जिसमें मिर्जापुर एवं रायबरेली की इकाई को आधुनिक रूप देकर पुन: संचालित किया जाएगा।
अपना भारत -- प्रदेश में रेशम का अच्छा उत्पादन होने के बाद भी औद्योगिक इकाइयां कमजोर क्यों है?
पचौरी --रेशम का उत्पादन होने के बाद भी प्रदेश में अभी तक रेशम धागे बनाने की इकाइयों का अभाव है जिससे उत्पादकों को सस्ते भाव पर अपना रेशम कर्नाटक, कोलकत्ता एवं आन्ध्र को भेजना पडता है। अब रेशम धागे बनाने के लिए केन्द्र सरकार से अनुदान एवं सहायता की मांग की गयी है। इसमें रेशम उत्पादन में बढ़ोत्तरी के साथ ही रेशम उद्योग वस्त्रोंद्योग को बढïवा मिलेगा। इसमें निजी क्षेत्र को बढïवा देने की पहल की जाएगी।