लखनऊ : राजनीति में अर्श से फर्श तक का सफर तय करने में दो महीने की अवधि कोई खास नहीं मानी जाती, खासकर तब जब लोगों के जबर्दस्त समर्थन से सत्ता हासिल की गई हो। लेकिन, उत्तर प्रदेश में ऐसा होता दिख रहा है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के 'हनीमून पीरियड' पर राज्य में ताबड़तोड़ होने वाले अपराधों की श्रृंखला ने ग्रहण लगा दिया है। इन दो महीनों में ही गंभीर अपराधों का ग्राफ बहुत तेजी से ऊपर गया है, कई मामलों में तो कई गुना बढ़ गया है।
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चुनाव से पहले भाजपा ने कहा था कि समाजवादी पार्टी सरकार के शासन में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और उसने वादा किया था कि वह इसे फिर से बहाल करेगी। नारा ही यही था 'न गुंडाराज न भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार'। सत्ता विरोधी लहर पर सवार भाजपा तीन-चौथाई बहुमत से सत्ता में आई।
लेकिन, दो महीने से भी कम समय में हालात सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ जाने लगे हैं। हत्या, दुष्कर्म, डकैती, जातिगत और सांप्रदायिक संघर्ष, कुछ बचा नहीं है होने से। सरकार बेतहाशा बढ़ते अपराध और लोगों के डिग रहे विश्वास के सामने लड़खड़ाती दिख रही है।
हालात कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते शनिवार इलाहाबाद उच्च न्यायालय को भी राज्य में अपराध की स्थिति पर चिंता जतानी पड़ी। एक याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. बी. भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने प्रधान सचिव (गृह) और पुलिस महानिदेशक को अपराध और माफिया तत्वों पर लगाम लगाने का निर्देश दिया।
मथुरा में बीते हफ्ते दो व्यापारियों की हत्या ने सत्तारूढ़ खेमे की चिंता इस हद तक बढ़ा दी कि घटना के 24 घंटे के अंदर 67 आईपीएस अफसरों का तबादला कर दिया गया। योगी सरकार के एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने माना कि फिलहाल लोगों का विश्वास आदित्यनाथ सरकार को लेकर हिल गया है। उन्होंने कहा, "निश्चित ही, बढ़ते अपराध हमारी सबसे बड़ी चुनौती हैं और हम राज्य में अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए पर्याप्त कदम उठा रहे हैं।"
लेकिन, जमीनी हालात बता रहे हैं कि मंत्री का 'पर्याप्त' का दावा शायद इतना पर्याप्त है नहीं। राज्य पुलिस की तरफ से जारी आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। इस साल 15 मार्च से 15 अप्रैल के बीच ही दुष्कर्म के मामले बीते साल के मुकाबले चार गुना बढ़े हैं और हत्या के मामलों में दोगुने से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल समान अवधि में राज्य में 101 हत्याएं हुई थीं। इस बार 240 हुई हैं।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अशोक सिंह ने इन हालात पर कहा, "बीते दो महीने से राज्य हताशा की चपेट में है। लोगों को अहसास हो गया है कि भाजपा सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने में नाकाम रही है।"
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, "भाजपा ने सपनों का मकड़जाल बुना और लोगों को उसमें फंसा लिया। अब आम लोग इसका खामियाजा भुगत रहे हैं, अपराधी बेलगाम हैं और सत्ता भाषणबाजी में लगी हुई है।"
बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष राम अचल राजभर ने सरकार पर और भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि आदित्यनाथ सरकार ने खुद ही जातिगत और सांप्रदायिक तनाव भड़काए और फिर राजनीतिक कारणों से चुप्पी ओढ़ ली।
हर बात पर समाजवादी पार्टी सरकार की बखिया उघेड़ने वाले भाजपा के बड़े और छोटे, सभी नेता कानून व्यवस्था के मुद्दे पर पूछे जाने वाले सवालों से कन्नी काट रहे हैं और चुप्पी साधे हुए हैं।राज्य सरकार ने हालात पर काबू पाने के लिए बीते दो महीने में 200 आईपीएस अफसरों के तबादले किए लेकिन कोई लाभ होता दिख नहीं रहा है।
राज्य के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक के. एल. गुप्ता का कहना है कि हालात पर काबू पाया जा सकता है अगर पुलिस को उसका काम करने दिया जाए और उसके काम में राजनीतिक दखलंदाजी न्यूनतम हो। उन्होंने कहा कि जरूरत इस बात की है कि पुलिस पहल लेकर कार्रवाई करे।
विपक्ष की संख्या विधानसभा में बहुत कम है। लेकिन, अपराध के मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को सदन में घेरा। इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन को भरोसा दिलाया कि राज्य में कानून का राज होगा, अपराधियों से अपराधियों जैसा ही बर्ताव होगा और ऐसे तत्वों को राजनीतिक संरक्षण की अनुमति नहीं दी जाएगी।