Sikkim: सिक्किम से सीखें सब, साफ-सफाई और पर्यावरण में पेश की मिसाल
Sikkim : साक्षरता, साफ-सफाई, जैविक उत्पाद और पर्यावरण की रक्षा में सिक्किम ने मिसाल कायम किया है।
Sikkim : पूर्वोत्तर के राज्यों में सिक्किम (Sikkim) ने कई ख़िताब अपने नाम कर लिए हैं। साक्षरता, साफ-सफाई, जैविक उत्पाद और पर्यावरण की रक्षा में सिक्किम ने मिसाल कायम किया है। यहाँ रासायनिक उर्वरकों (Chemical Fertilizers) का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यह 2016 में पूर्ण रूप से जैविक राज्य है। जैविक अभियान की कामयाबी सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश में बाहर से किसी भी किस्म के ग़ैर जैविक खाद्य पदार्थों की आपूर्ति पर भी प्रतिबंध है। सिक्किम में 1998 से ही प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। जो सिक्किम के लाचेन शहर से शुरू हुआ।
दरअसल, लाचेन में हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। जो अपने पीछे भरी संख्या में प्लास्टिक की बोतलें छोड़ जाते थे। इसलिए यहाँ प्लास्टिक की बोतलों पर प्रतिबंध लगाया गया। यहाँ प्लास्टिक की बोतलों की जगह बांस की बोतलों का चलन है। सिक्किम में बांस बहुत ज्यादा नहीं होता है इसलिए बांस की बोतलें असम से मंगानी पड़ती है। सिक्किम ने यह फ़ैसला किया है कि अगले साल की पहली तारीख़ यानी एक जनवरी,2022 से मिनरल वाटर की बिक्री भी ठप हो जायेगी । सिक्किम के सरकारी कार्यालयों में बोतलबंद पानी के उपयोग की अनुमति पहले से ही नहीं है। यहाँ शीशे की या रिसाइकल किये जाने वाले पदार्थ की बोतल के उपयोग की इजाज़त है। सरकार ने स्टायरोफोम और थर्मोकोल डिस्पोजेबल प्लेट, कटलरी और खाद्य कंटेनरों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा रखा है। इनकी जगह पत्तों, गन्ना, बगास और बांस से बने प्लेट और कटलरी के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
राज्य ने देश में हेल्दी फ़ूड को प्रोत्साहित करने के लिए खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) से 'ऑस्कर फॉर बेस्ट पॉलिसीज' की शुरुआत की । पूर्वोत्तर के इस राज्य ने तय किया है कि उसे खाद्यान्न उत्पादन पर आत्म निर्भर होना है। इस लक्ष्य को पाने के लिए लोगों को अपने अपने छतों पर अनाज उगाने के लिए तैयार कर लिया गया है।
सिक्किम भारत में खुले में शौच पर प्रतिबंध लगाने वाला राज्य भी है। यहाँ खुले में शौच करने पर 500 रुपये का जुर्माना है। किसी भी सरकारी योजना का लाभ पाने के लिए सेनेटरी टॉयलेट बनाना अनिवार्य है। पर्यावरण की रक्षा करने की पहल में सभी नागरिकों को अपने बच्चे या भाई की तरह एक पेड़ को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। लोग कोई भी पेड़ अपने नाम पंजीकृत करा सकते हैं। पंजीकृत पेड़ पर किसी भी चोट को वन अपराध माना जाता है। सिक्किम में महिलाओं को भी राज्य की राजनीति में 50 फीसदी जगह हासिल है।
भारत में 400 अरब का है बोतलबंद पानी का बाजार है। इसे मिनरल वाटर कहा जाता है । यह 1900 के दशक में पश्चिमी देशों में सबसे पहले आया।भारत में इसका आगमन 1970 के दशक में हुआ । पहले तो यह सिर्फ पैसेवालों के बीच लोकप्रिय था । लेकिन समय के साथ कुछ देखा देखी और कुछ स्वास्थ्य चिंताओं के चलते बोतलबंद पानी सभी वर्गों में एक आम चीज हो गया। भारत में बोतलबंद पानी का बाजार 2018 में 160 अरब रुपये का था । जो प्रति वर्ष 20.75 फीसदी की रफ़्तार से बढ़ते हुए 2023 में 403 अरब रुपये का हो जाएगा। वहीं बोतलबंद पानी का ग्लोबल बाजार अब 350 अरब डॉलर का हो चुका है।
भारत में एक लीटर वाली बोतल सबसे ज्यादा बिकती है । इसका बाजार शेयर 42 फीसदी है। वॉल्यूम के हिसाब से देखें तो वर्ष 2023 तक भारत में पानी का बाजार 35.53 अरब लीटर का हो जाएगा। वर्ष 2018 से 2023 तक ये बाजार 18.25 फीसदी की रफ़्तार से बढ़ रहा है। एक अनुमान है कि साल भर में भारत में 25 से 30 अरब पानी की प्लास्टिक बोतलें कचरे में जाती हैं। इनमें से बहुत कम ही रीसायकल हो पाती हैं।
भारत में सबसे पहले बोतलबंद पानी ले कर आये थे जयंतीलाल चौहान और फेलिस बिसलेरी। जिन्होंने 1969 में बिसलेरी इंटरनेशनल की स्थापना की थी। फेलिस बिसलेरी इटली के एक व्यापारी, इनोवेटर और केमिस्ट थे ।.जबकि जयंतीलाल चौहान मशहूर पार्ले कम्पनी के मालिक थे। सन 65 में बिसलेरी नाम से शीशे की बोतल में पैक पानी मुम्बई में लांच किया गया था। आज बिसलेरी के 135 प्लांट और तीन हजार डिस्ट्रीब्यूटर हैं।
भारत में ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड्स के तहत छह हजार से ज्यादा बॉटलिंग प्लांट हैं। ब्रांड्स की बात करें तो भारत में बोतलबंद पानी के डेढ़ सौ से ज्यादा ब्रांड हैं। भारत के पश्चिमी अंचल में बोतलबंद पानी की सबसे ज्यादा खपत है। बोतलबंद पानी के बाजार में 40 फीसदी हिस्सा इसी क्षेत्र का है। इसके विपरीत पूर्वी रीजन कुल बाजार का मात्र दस फीसदी हिस्सा है। लेकिन देश में बोतलबंद पानी के सबसे ज्यादा प्लांट (55 फीसदी) दक्षिणी रीजन में हैं। बॉटलिंग प्लांट्स को बीआईएस प्रमाणीकरण कराना पड़ता है। देश में बोतलबंद पानी दो नियमों के अंतर्गत आता है। पैकेज्ड नेचुरल मिनरल वाटर और पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर। यानी मिनरल वाटर और सामान्य बोतलबंद पानी अलग अलग हैं।
देश में अवैध बॉटलिंग प्लांट्स की भी भरमार है। ऐसे प्लांट्स बिना किसी लाइसेंस के चल रहे हैं। इसके अलावा नकली और डुप्लीकेट माल भी बाजार में भरा पड़ा है। इंडस्ट्री के जानकारों के अनुसार सबसे ज्यादा डुप्लीकेट माल एक लीटर की बोतल में है। वर्ष 2017-18 में देश में 1123 सैंपल जांचे गए थे, जिनमें से 496 सैंपल क्वालिटी स्टैण्डर्ड में फेल हो गए थे। अध्ययनों से पता चला है कि बोतलबंद पानी में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मौजूद होते हैं। एक प्लास्टिक की बोतल में पानी जितना ज्यादा समय तक रहता है, उसमें प्लास्टिक और अन्य केमिकल के कण धीरे धीरे घुलते जाते हैं। यही वजह है कि प्लास्टिक की बोतल में रखे पानी का स्वाद कुछ समय बाद बदल जाता है। यही वजह है कि बोतलबंद पानी की कम्पनियां अपने उत्पाद पर एक्सपायरी डेट लिखती हैं। इसका एक कारण यह भी है कि प्लास्टिक में मिले केमिकल भी धीरे धीरे पानी में घुलने लगते हैं। जिससे कैंसर जैसी भयंकर बीमारियाँ तक हो सकती हैं। पानी की बोतलों में सिंगल यूज़ प्लास्टिक इस्तेमाल होता है । यानी एक बार बोतल खाली हो गयी तो उसे रीसायकल में चले जाना चाहिए। अगर वही बोतल बार बार इस्तेमाल की जायेगी तो वह प्लास्टिक और भी नुकसानदेह होता जाता है। बोतलबंद पानी की कम्पनियाँ पानी को पैक करने के समय उसमें ओजोन का मिश्रण करती हैं ताकि पानी कीटाणु रहित हो जाये। वहीं जो अवैध प्लांट्स हैं उनमें पानी न ठीक से फ़िल्टर किया जाता है और न बोतलें सही तरीके से स्टरलाइज की जाती हैं। इस वजह से ऐसा पानी नुकसान भी कर सकता है।
सिक्किम द्वारा जैविक खेती अपनाए जाने से 66 हजार किसान परिवारों को लाभ हुआ है। सिक्किम ने जैविक खेती को अपना कर अपनी संवेदनशील पारिस्थिकी को बचाया है। 2003 से सिक्किम ने लगातार केमिकल उर्वरक पर सब्सिडी खत्म करने का काम किया है। 2014 से फ़र्टिलाइज़र सब्सिडी नहीं दी जा रही है। सिक्किम को अपने खाद्य पदार्थों के लिए पश्चिम बंगाल पर निर्भर रहना पड़ता हैं सिक्किम सरकार ने राज्य को खाद्य पदार्थों के मामले में आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य रखा है।
जबसे सिक्किम सौ प्रतिशत आर्गेनिक हुआ है तबसे टूरिस्टों की संख्या 25 फीसदी से ज्यादा बढ़ गयी है। प्लास्टिक पर बैन लगा कर सिक्किम ने पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।नब्बे के दशक में सिक्किम में ।भूस्खलन बहुत होते थे. इसकी एक वजह नालों आदि का प्लास्टिक आदि के कचरे से ब्लाक हो जाना था। जबसे प्लास्टिक को बैन किया गया है तबसे भूस्खलन कम हो गया। जलभराव भी कंट्रोल हो गया है। प्लास्टिक पर बैन का एक नतीजा ये है कि राज्य में मधुमक्खी, तितली, और वन्य जीवों की संख्या बढ़ी है। प्लास्टिक बोतलों पर बैन होने से लकड़ी और बांस की बोतलें बनाने के कम को बढ़ावा मिला है। राज्य में कुटीर उद्योग बढे है।
(लेखक व वरिष्ठ पत्रकार हैं।)