कानपुर: ग्रीन पार्क स्टेडियम पहली बार दूधिया रोशनी में नहाएगा। टेस्ट और वनडे के बाद अब इस मैदान पर 20-20 की बाजी खेली जाएगी और एक नया इतिहास बनेगा। वैसे ये स्टेडियम कई खिलाड़ियों के लिए काफी लकी रहा है। टीम इंडिया के लिए काफी लकी रहा है। यहां कई ऐसे इतिहास रचे गए, जिनका जिक्र जब होता है तो इतिहास भी खुद पर इतराता है। आइए आज फिर से पलटते हैं क्रिकेट इतिहास के वो सुनहरे पन्ने, जिन पर लिखा है ग्रीन पार्क का नाम...
भारत को मिली थी कंगारुओं पर पहली टेस्ट जीत
50 के दशक में ऑस्ट्रेलिया को हराना लोहे के चने चबाने जैसा था, लेकिन टीम इंडिया ने ये कारनामा ग्रीन पार्क में करके दिखाया था। भारत को कंगारुओं पर पहली टेस्ट जीत इसी मैदान पर मिली थी। ऑस्ट्रेलिया ने भारत का पहला दौरा 1956 में किया था और सीरीज 2-0 से जीती। दो साल बाद 1959 में कंगारुओं ने फिर हिंदुस्तान की जमीं पर कदम रखा। इस बार दोनों टीमों के बीच पांच टेस्ट मैचों की सीरीज खेली गई। पहला टेस्ट 12 से 16 दिसंबर के बीच दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में खेला गया था। इस मैच में कंगारुओं ने भारत को एक पारी और 127 रन से हरा दिया था। टीम इंडिया को जीत की दरकार थी। पुराने जख्मों पर मरहम लगाना जरूरी हो गया था।
स्पिनर जसुभाई का चला था मैजिक
दूसरा टेस्ट कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में खेला गया। कोई नहीं जानता था कि जिस जीत का जश्न मनाने के लिए पूरा हिंदुस्तान पिछले तीन साल से इंतजार कर रहा है, वो इस मैदान पर पूरा होगा। इस टेस्ट में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 119 रन से हराया था और जीत के हीरो स्पिनर जसुभाई पटेल थे। उन्होंने मैच के दूसरे दिन पहली पारी में 9 कंगारू बल्लेबाजों को पवेलियन भेजा था और भारत की जीत की नींव रखी थी। ऑस्ट्रेलिया को जब टेस्ट मैच जीतने के लिए 225 रन की जरूरत थी, तब दूसरी पारी में भी जसुभाई का मैजिक चला और उन्होंने 5 विकेट चटकाकर कंगारुओं की कमर तोड़ दी। इस टेस्ट में जसुभाई ने 14 विकेट निकालकर भारत की ऐतिहासिक जीत में अहम रोल अदा किया था। हालांकि सीरीज 2-1 से
गंवानी पड़ी थी।
जसुभाई की मैजिकल परफॉर्मेंस
पहली पारी
ओवर | 35.5 |
रन | 69 |
विकेट | 09 |
इकॉनमी | 1.92 |
दूसरी पारी
ओवर | 25.4 |
रन | 55 |
विकेट | 05 |
इकॉनमी | 2.14 |
वेस्टइंडीज ने लिया वर्ल्ड कप फाइनल में मिली हार का बदला
1983 वर्ल्ड कप फाइनल हारने के कुछ महीने बाद ही वेस्टइंडीज ने भारत का दौरा किया था। पहले ही टेस्ट मैच में भारत का हार का सामना करना पड़ा था। कैरेबियाई पेस बैटरी बल्लेबाजों को ऊपर कहर बनकर टूटी थी। मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग, विंसटन डेविस और एल्डाइन की रफ्तार का जवाब किसी के पास नहीं था। सीरीज के पहले ही टेस्ट में वेस्टइंडीज ने एक पारी और 83 रन से हराकर पिछली हार का हिसाब चुकता किया था। इससे पहले वेस्टइंडीज 1958 में भी पांच टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने के लिए भारत आई थी। इस सीरीज के दूसरे टेस्ट मैच में स्पिनर सुभाष गुप्ते ने यादगार प्रदर्शन किया था, लेकिन कैरेबियाई फास्ट बॉलर वेस हॉल ने उनकी यादगार परफॉर्मेंस को फीका कर दिया था। सुभाष गुप्ते ने पहली पारी में 9 तो दूसरी पारी में एक विकेट चटकाया था। वहीं, वेस हॉल पहली पारी में 6 और दूसरी पारी में 5 विकेट निकालकर वेस्टइंडीज की जीत के नायक बन गए थे।
सुभाष गुप्ते Vs वेस हॉल
सुभाष गुप्ते पहली पारी वेस हॉल
34.3 | ओवर | 28.4 |
102 | रन | 50 |
09 | विकेट | 06 |
2.95 | इकॉनमी | 1.74 |
सुभाष गुप्ते दूसरी पारी वेस हॉल
23 | ओवर | 32 |
121 | रन | 06 |
01 | विकेट | 05 |
5.26 | इकॉनमी | 2.37 |
बाउंसर पर हवा में उड़ा बल्ला, अगली गेंद पर जड़ा छक्का
1983 टेस्ट मैच को लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर से जुड़े एक खास वाक्ये लिए भी याद किया जाता है। मैच के दौरान तेज गेंदबाज मैल्कम मार्शल की एक गेंद पर गावस्कर पुल करना चाहते थे, लेकिन उनके हाथ से बल्ला छूटकर दूर गिर गया था। उस ओवर की पहली तीन गेंद पर गावस्कर बीट हुए थे। चौथी गेंद पर मैल्कम मार्शल ने बाउंसर फेंकी। गेंद बल्ले के हत्थे के ऊपरी हिस्से में लगी और गावस्कर के हाथ से बल्ला छूट गया। कुछ देर के लिए ग्रीन पार्क में सन्नाटा छा गया था, लेकिन अगली ही गेंद पर उन्होंने छक्का जड़ दिया और सन्नाटा शोर में तब्दील हो गया। ग्रीन पार्क पर मारे गए इस सिक्सर को आज भी याद किया जाता है। गावस्कर की पत्नी कानपुर से ही हैं। ससुराल होने की वजह से यहां के क्रिकेट फैंस से उन्हें हमेशा बेपनाह प्यार मिला, लेकिन ग्रीन पार्क उनके लिए कभी ज्यादा लकी नहीं रहा। हालांकि उन्होंने अपनी आखिरी और 34वीं टेस्ट सेंचुरी 1986 में श्रीलंका के खिलाफ इसी मैदान पर मारी थी। उस मैच में गावस्कर ने शानदार नाबाद 176 रन की पारी खेली थी, लेकिन टेस्ट ड्रॉ रहा था।
अजहरुद्दीन ने ग्रीन पार्क पर जड़ा था डेब्यू सीरीज का तीसरा शतक
भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने इसी मैदान पर अपनी डेब्यू टेस्ट सीरीज का तीसरा शतक जड़ा था। 1984-85 में इंग्लैंड पांच टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने भारत आया था। कोलकाता में खेले गए तीसरे टेस्ट मैच से मोहम्मद अजहरुद्दीन का टेस्ट डेब्यू हुआ था और पहले ही मैच की पहली पारी में शानदार 110 बनाए थे। अजहरुद्दीन ने चेन्नई में खेले गए चौथे टेस्ट मैच की दूसरी पारी में भी 105 रन बनाकर लगातार दूसरा शतक जड़ा। अब सबकी निगाहें सीरीज के आखिरी टेस्ट मैच पर टिकी हुई थीं, जो कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में खेला जाना था। क्रिकेट फैंस की जुबां पर यही सवाल था कि अजहरुद्दीन डेब्यू टेस्ट सीरीज में शतकों की हैट्रिक लगा पाएंगे या नहीं। 1 फरवरी, 1985 को इस खिलाड़ी ने पहली ही पारी में 122 रन ठोककर सेंचुरी हैट्रिक लगा दी। इस हैट्रिक ने ग्रीन पार्क स्टेडियम को एक बार फिर इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा दिया।
अजहरुद्दीन Vs इंग्लैंड, कोलकाता टेस्ट
रन | 110 |
गेंद | 322 |
चौके | 10 |
छक्के | 00 |
स्ट्राइक रेट | 34.16 |
अजहरुद्दीन Vs इंग्लैंड, चेन्नई टेस्ट
रन | 105 |
गेंद | 218 |
चौके | 18 |
छक्के | 00 |
स्ट्राइक रेट | 48.16 |
अजहरुद्दीन Vs इंग्लैंड, कानपुर टेस्ट
रन | 122 |
गेंद | 270 |
चौके | 16 |
छक्के | 00 |
स्ट्राइक रेट | 45.18 |
चेतन शर्मा ने इंग्लैंड के खिलाफ जमाया था शतक
क्रिकेट इतिहास में चेतन शर्मा को एक गेंदबाज के तौर पर याद किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि ग्रीन पार्क पर उन्होंने वनडे सेंचुरी जमाई थी। ये कारनामा उन्होंने 1989-90 में इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए नेहरू कप टूर्नामेंट के दौरान किया था। उस मैच में भारत को जीतने के लिए 255 रन की जरूरत थी। मेजबान टीम को कुछ शुरुआती झटके लग चुके थे। तब कप्तान के.श्रीकांत ने बैंटिंग ऑर्डर में बदलाव करते हुए चेतन शर्मा को मिडिल ऑर्डर में बल्लेबाजी करने भेजा। तब भारत के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी ने प्रेस बॉक्स में कहा था,''मैंने टेस्ट क्रिकेट में तो नाइटवॉच मैन को बल्लेबाजी करते देखा है, लेकिन पहली बार वनडे क्रिकेट में किसी नाइटवॉच मैन को बैंटिंग करते देख रहा हूं।'' चेतन शर्मा के कप्तान के फैसले पर सही की मोहर लगाते हुए नाबाद 101 रन की पारी खेली थी और भारत को 6 विकेट से जीत दिलाई थी।
चेतन शर्मा Vs इंग्लैंड ( नेहरू कप)
रन | 101* |
गेंद | 96 |
चौके | 08 |
छक्के | 01 |
स्ट्राइक रेट | 105.20 |