बंदूक का जवाब 'हॉकी स्टिक' से देने को तैयार हैं नक्सल प्रभावित बेटियां

हालात कितने बद्तर क्यों न हो जिंदगी की खुशियां आपनी ओर मोड़ ही लेती हैं। जिन घाटियों में सुरक्षा बल भी सुरक्षित नहीं है और उनके उपर भी लुके छिपे हमला हो ही जाता है वहां किसी खेल को खेलेने के बारे में सोचना ही असुरक्षा है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के नक्सली प्रभावित इलाकों में बेटियों ने तो अपनी हॉकी खड़ी कर दी।

Update: 2019-03-11 09:51 GMT

हालात कितने बद्तर क्यों न हो जिंदगी की खुशियां आपनी ओर मोड़ ही लेती हैं। जिन घाटियों में सुरक्षा बल भी सुरक्षित नहीं है और उनके उपर भी लुके छिपे हमला हो ही जाता है वहां किसी खेल को खेलेने के बारे में सोचना ही असुरक्षा है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के नक्सली प्रभावित इलाकों में बेटियों ने तो अपनी हॉकी खड़ी कर दी।

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शुरुआत में इन बच्चियों को जूते बांधने की भी जानकारी नहीं थी। आज वो बंदूक को छोड़कर हॉकी स्टिक थाम रही हैं। बालिकाओं को दो साल के लगातार परिश्रम के बाद हॉकी टीम तैयार करने में सफलता मिली।इन बालिकाओं को शारीरिक अभ्यास, फिटनेस और खेल की प्रारंभिक बारीकियां सिखाने के बाद धीरे-धीरे इन्हें हॉकी के मैदान पर उतारा गया। इनके इस सफर में आईटीबीपी को वो रोल रहा जिसे इस इलाके लोग कभी भुला नहीं पाएंगे।

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कोंडागांव जिले के मरदापाल के कन्या आश्रम में रहकर पढ़ाई कर रही जनजाति की 42 छात्राएं जिनकी उम्र 17 साल से कम है, उन्हें आईटीबीपी ने अपने स्तर पर प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया। लगातार 2 साल तक अथक मेहनत कर आईटीबीपी के जवानों ने इन बेटियों को हॉकी के गुर सीखाएं। नतीज़तन छत्तीसगढ़ की इन बालिकाओं की खुद की अपनी हॉकी टीम है और इन्हें अंडर-17 की टीमों में खेलने का मौका मिलने जा रहा है। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी इनमें से 6 बच्चियों को प्रशिक्षण के लिए चयनित किया है।

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गौरतलब है कि मर्दापाल कन्या आश्रम में रह रही बालिकाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नक्सल हिंसा से ग्रसित परिवारों की बच्चियां हैं। इनमें से कई बच्चियों के परिवार अत्यंत गरीबी की दशा में जीवन यापन कर रहे हैं। इन बालिकाओं को शारीरिक अभ्यास, फिटनेस और खेल की प्रारंभिक बारीकियां सिखाने के बाद धीरे-धीरे इन्हें हॉकी के मैदान पर उतारा गया।

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छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ से सटे इन इलाकों की दयनीय परिस्थिति है। यहाँ के लोग आधुनिक भारत में विकास के तमाम दावों को खोखला बताते हुए आज भी चिकित्सा, शिक्षा और मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। इन इलाकों में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ों की तादात लाखों में है।

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