Hockey Players In UP: हाकी की नर्सरी सूखने के कगार पर

Hockey Players In UP: पिछले सालों में प्रदेश के किसी खिलाड़ी ने हाकी में कोई खास कारनामा नहीं किया है। हाकी के राष्ट्रीय स्तर तक के खिलाड़ी मुफलिसी के शिकार हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2022-12-14 19:23 IST

हॉकी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Lucknow: कभी हाकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद की सरजमीं के सामने दुनिया के जाने-माने तानाशाह हिटलर ने भी हाकी की उपलब्धियों और खेलने के हुनर के चलते अपना सिर झुकाया था। ध्यानचंद ही नहीं, केडी सिंह सरीखे एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों वाले इस सूबे को हाकी की नर्सरी भी कहा जाता था। लेकिन, सरकारी उपेक्षा, राजनीति और प्रतिभा की कमी से अब यह नर्सरी सूख गई है। पिछले सालों में प्रदेश के किसी खिलाड़ी ने हाकी में कोई खास कारनामा नहीं किया है। इसी वजह से पहले जहां क्षेत्रीय मैचों में भी स्टेडियम खचाखच भरे होते थे। वहां अब राष्ट्रीय मैचों में भी दर्शकों का टोटा रहता है। हालात यह हैं कि हाकी के राष्ट्रीय स्तर तक के खिलाड़ी मुफलिसी के शिकार हैं। सूबे की मुखिया के जेब से आर्थिक तंगी झेल रही देश की हाकी टीम के लिए केवल पांच करोड़ रुपए की मदद ही निकली।

खिलाड़ियों को मिल रहीं ये सुविधाएं

यह जरूर है कि क्रिकेट का प्रायोजक सहारा समूह हाकी की मदद के लिए भी आगे आया है। प्रदेश में हाकी खिलाड़ियों को सुविधाओं के नाम पर लखनऊ, गोरखपुर, सैफई, रामपुर, वाराणसी में पांच हॉस्टल हैं। इनमें भोजन के अलावा कोई सुविधा नहीं है। खिलाड़ियों की मेडिकल जांच के लिए डॉक्टर और फिटनेस उपकरण दूर की कौड़ी हैं। पूरे यूपी में सिर्फ पांच एस्ट्रो टर्फ हैं। प्रदेश की आवश्यकता के हिसाब से देखा जाए तो यहां कम से कम सौ एस्ट्रो टर्फ होने चाहिए। हालैंड जैसे छोटे देश में तीन सौ से ज्यादा एस्ट्रो टर्फ हैं। लोगों में कभी हाकी का जुनून इतना था कि प्रदेश के हर छोटे-बड़े शहर में हाकी क्लब हुआ करते थे। अकेले लखनऊ में दर्जन भर से अधिक क्लब हुआ करते थे। लेकिन आज सभी बंद हो गए हैं। सभी बड़े सरकारी विभाग जैसे यूपी सचिवालय, आरडीएसओ, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, नार्दर्न रेलवे, पुलिस लाइन्स की अपनी टीमें थीं और विभागों में हाकी खिलाड़ियों को नौकरी मिल जाती थी। लेकिन अब रेलवे को छोड़कर कहीं खिलाड़ियों को नौकरी नहीं मिलती।

महज सत्रह साल की उम्र में 1976 में कनाडा ओलिंपिक खेलकर बेबी ऑफ द ओलिंपिक के नाम से जाने गए सैयद अली प्रदेश की हाकी से नाखुश हैं। उनका आरोप है कि अब खेल में भाई-भतीजावाद तेज हो गया है। चेहरा देखकर खिलाड़ी चुने जाते हैं। लेकिन अली यह भी मानते हैं कि अब खिलाड़ियों में हाकी के लिए समर्पण नहीं है। लखनऊ एकादश की कोच नीलम सिद्दीकी और पूनम लता राज का कहना है कि पहले खिलाड़ी स्कूलों से निकलते थे और अब स्टेडियम से निकल रहे हैं। अंतराष्ट्रीय हाकी मैच खेल 'चुके मुकुल शाह का कहना है कि यूपी में मैच ही नहीं होते। इसकी वजह से खिलाड़ी अभ्यास तो करता है। लेकिन प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं होती। हाकी खिलाड़ियों के मुताबिक क्रिकेट में अकूत संपत्ति और ग्लैमर ने भी हाकी के प्रति लगाव कम किया है। भारतीय हाकी टीम के कप्तान रहे रजनीश मिश्र कहते हैं, 'क्रिकेट के रणजी खिलाड़ी का जो जीवनस्तर है। उससे बेहद खराब जीवन ओलिंपिक और विश्वकप खेले राष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी का होता है। जब हम खिलाड़ियों को रोल मॉडल नहीं बना सकेंगे, अच्छा जीवन नहीं दे सकेंगे तो कोई हाकी क्यों खेलेगा?

(मूल रूप से 7 March, 2010 को प्रकाशित।)

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