Olympic Games Tokyo 2020: टोक्यो ओलंपिक के पदकों का है मोबाइल कनेक्शन

Olympic Games Tokyo 2020: टोक्यो ओलंपिक में दिए जाने वाली कुल 5 हजार पदकों में जो भी मेटल या धातु लगी है वह इलेक्ट्रॉनिक कचरे से निकाली हुई है। रीसाइक्लिंग की ये एक अदभुत मिसाल है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-08-06 05:33 GMT

टोक्यो ओलंपिक के मेडल्स- मोबाइल (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Olympic Games Tokyo 2020: टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) में पदक जीतने वाले खिलाड़ी एक बहुत नायाब चीज अपने साथ ले कर जा रहे हैं। उनको मिले मेडल में जापान (Japan) के लाखों लोगों का भी योगदान शामिल है। ये मेडल (Medals) बहुत ख़ास हैं और इनका कनेक्शन मोबाइल फ़ोन से भी है। दरअसल, टोक्यो ओलंपिक के आयोजन के साथ बहुत सी ऐसी चीजें जुड़ी हैं जो अनोखी हैं और जिन्होंने नई परम्परा की शुरुआत की है। इन नायाब चीजों में सबसे प्रमुख है- इलेक्ट्रॉनिक कचरे की नायाब रीसाइक्लिंग का इस्तेमाल (Electronic Waste Recycling)। टोक्यो ओलंपिक में दिए जा रहे मेडल और कचरे में फेंके गए टूटे इलेक्ट्रॉनिक सामानों का गहरा नाता है। वो भी कोई छोटा-मोटा कचरा नहीं बल्कि पूरे 78 हजार 985 टन कचरा। ये सभी स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक इसी कचरे के पहाड़ की देन हैं।

टोक्यो ओलंपिक में दिए जाने वाली कुल 5 हजार पदकों में जो भी मेटल या धातु लगी है वह इलेक्ट्रॉनिक कचरे से निकाली हुई है। रीसाइक्लिंग की ये एक अदभुत मिसाल है, जिसमें 78,985 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरे से 32 किलो सोना, 3500 किलो चांदी और 2200 किलो कांसा निकाला गया और मेडल बनाने में इस्तेमाल किया गया है।

ओलंपिक खेलों में रीसाइक्लिंग से निकाले गये धातुओं का इस्तेमाल 2016 में शुरू कर दिया गया था, जब ब्राज़ील के रियो डी जेनेरो ओलंपिक (Rio De Janeiro Olympics) में रजत पदकों में रीसाइक्लिंग द्वारा निकाली गयी चांदी का इस्तेमाल किया गया। रियो खेलों के रजत पदकों में लगी 30 फीसदी चांदी कचरे में पड़े कार के पुर्जों, एक्स-रे प्लेटों और आइनों समेत अन्य सामानों से निकाली हुई थी। लेकिन टोक्यो ओलिंपिक में पहली बार सभी पदक 100 फीसदी ऐसे मेटल से बनाये गए हैं जो कचरे से रीसाइक्लिंग के जरिये निकाले गए हैं। ये अदभुत काम है जिसे पूरा करने में दो साल का समय लग गया।

E-Waste (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

ओलंपिक मेडल प्रोजेक्ट

टोक्यो ओलंपिक मेडल प्रोजेक्ट की शुरुआत 2017 में हुई थी, जिसका लक्ष्य था करीब 5 हजार मेडल बनाने में जो धातु लगेगी, उसे 100 फीसदी इलेक्ट्रॉनिक कचरे से निकाला जाएगा। ये तय कर लिया गया कि मेडल बनाने में रत्ती भर नई धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाना है। मेडल प्रोजेक्ट के तहत अगले दो साल तक जापान भर से इलेक्ट्रॉनिक कचरा जमा करने का अभियान चलाया गया। आम जनता से सहयोग करने की अपील की गयी जबकि निजी कंपनियों ने जगह-जगह कलेक्शन सेंटर बना दिए। इस अभियान में 1300 शैक्षणिक संस्थान और 2100 इलेक्ट्रॉनिक स्टोर ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इलेक्ट्रॉनिक कचरा जमा करने का अभियान मार्च 2019 में समाप्त कर दिया गया। ये पता चला कि जापान के 90 फीसदी गाँव, वार्ड, कस्बों और शहरों से 78,985 टन ई-कचरा (E-Waste) जमा हुआ है। जिसमें 62 लाख 10 हजार पुराने मोबाइल फोन के अलावा डिजिटल कैमरे, गेमिंग कंसोल और लैपटॉप भी बड़ी संख्या में शामिल थे। इसके बाद सरकार द्वारा स्वीकृत एजेंसियों ने पूरे कचरे का वर्गीकरण करके और हर आइटम को तोड़ने का काम किया। ये काम इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रीसाइक्लिंग से सम्बंधित स्थानीय कानूनों के सख्त अनुपालन में किया गया क्योंकि ऐसी रीसाइक्लिंग में व्यक्तिगत सुरक्षा के अलावा पर्यावरण की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना होता है। इसमें स्पेशल ट्रेनिंग पाए लोगों को ही लगाया गया। ई-कचरे से जो भी धातुएं निकलीं उनको गला कर रिफाइन किया गया और अंत में उन्हें मेडल बनाने के लिए भेज दिया गया। जापान ने मेडल बनाने के अलावा टनों प्लास्टिक कचरे को भी रिसाइकिल किया है जिसका इस्तेमाल ओलंपिक समारोहों के लिए मंच बनाने में किया गया। सो, टोक्यो ओलिंपिक खेलों से जापान की आम जनता का भी कुछ न कुछ योगदान जरूर है।

कीमती धातुएं

जितनी भी इलेक्ट्रॉनिक चीजें होती हैं उन सभी में कुछ न कुछ कीमती धातुओं का इस्तेमाल किसी न किसी पुर्जे में किया जाता है। मिसाल के तौर पर स्मार्टफोन में लगे बिजली संबंधी सूक्ष्म पुर्जे और तार ताम्बे, सोने और चांदी से बने होते हैं। यही नहीं प्लेटिनम और पैलेडियम जैसी और भी महंगी धातुओं का भी इस्तेमाल किया जाता है।

टोक्यो ओलिंपिक में दिया जाने वाला स्वर्ण मेडल पूरी तरह सोने से नहीं बना होता है। ये मेडल चांदी से बना होता है जिसके ऊपर 6 ग्राम की सोने की परत होती है। इसमें 98.8 फीसदी चांदी और 1.2 फीसदी सोना होता है। रजत पदक में 100 फीसदी चांदी लगी होती है जबकि कांस्य पदक में 95 फीसदी ताम्बा और 5 फीसदी जिंक होता है। जहाँ तक पदकों के वजन की बात है तो स्वर्ण पदक 556 ग्राम का होता है जबकि रजत पदक 550 ग्राम और कांस्य पदक का वजन 450 ग्राम होता है।

ओलंपिक मेडल्स (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

रीसाइक्लिंग से एक ग्राम सोना निकालने के लिए भी करीब 35-40 मोबाइल फोन की जरूरत होती है। सो सभी पदक बनाने के लिए 32 किलो सोने 3500 किलो चांदी और 2200 किलो कांसे (तांबे और जिंक का मिश्रण) की जरूरत थी जिसके लिए 78985 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरे को जमा किया गया, जिसमें 62 लाख मोबाइल फोन शामिल थे, लेकिन एक ग्राम सोना निकालने के लिए भी करीब 35-40 मोबाइल फोन की जरूरत होती है।

कचरे की समस्या

इलेक्ट्रॉनिक कचरे से मेडल बनाए जाने का कारनामा तो बड़ी बात है ही, लेकिन वहीं इससे ई-कचरे की समस्या का भी अंदाजा मिलता है। एक अनुमान है कि मेडल बनाने में जितने कचरे का इस्तेमाल किया गया वह जापान के सालाना ई-कचरे का मात्र 3 फीसदी है। जापान में हर साल करीब साढ़े छह लाख इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता है।     

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