सुधा सिंह: ट्यूशन पढ़ने न जाना पड़े इसलिए 10 मिनट पहले निकल जाती थी दौड़ने, ऐसी है संघर्ष की कहानी

Update:2018-08-28 14:39 IST

अमेठी: सोमवार को इंडोनेशिया में चल रहे एशियन गेम्स में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव की रहने वाली एथलेटिक्स सुधा सिंह ने देश का सिर फिर से गौरान्वित किया है। सुधा ने 3 हजार मीटर स्टीपल्चेज में सिल्वर ख़िताब जीता है। कल हुए खेल से पूर्व यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने उसे शुभकामना संदेश भी भेजा था। इससे पूर्व 2016 में रियो ओलंपिक में सुधा ने 3 हजार मीटर की दौड़ में पार्टिसिपेट करके देश का नाम रोशन किया था। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुधा को पुरस्कृत भी किया था।

मिडिल क्लास फैमिली में हुआ था जन्म

सुधा सिंह का जन्म 25 जून.1986 को अमेठी के ग्राम पोस्ट भिमी के एक मिडिल क्लास फैमिली में हुआ था। इनके पिता कि नौकरी 20 वर्ष की उम्र में रायबरेली जिले के आई.टी.आई में लग गई। जिसके बाद इनके पिता पूरे परिवार के साथ रायबरेली के शिव जी नगर कालोनी में रहने लगे। सुधा अपने पिता हरिनारायण सिंह ,माता शिवकुमारी सिंह व अपने दो भाइओ धीरेन्द्र सिंह व प्रवेश नारायण सिंह के साथ रहती है। सुधा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय बालिका इंटर कालेज में पूरी की। सुधा का मन बचपन से ही खेल कूद में लगता था जिसके चलते स्कूल में होने वाली खेल प्रतियोगिता में हमेशा हिस्सा लेकर प्रथम,द्वितीय स्थान प्राप्त करती थी।

लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज से हुई खेल की ट्रेनिंग

जब सुधा एक अच्छी एथेलेटिक्स के रूप में निकल आई तो इनका दाखिला परिवार के लोगो ने लखनऊ के स्पोर्ट्स कालेज में करा दिया। जहां पर सुधा के कोच ने एक अच्छे कोच की तरह कोचिंग दी। एथलेटिक्स के क्षेत्र में सुधा की करियर की शुरुआत साल 2003 में लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज से हुई।

ये भी पढ़ें...चीन ने जीता एशियन गेम्स 2018 का पहला गोल्ड मेडल

ट्यूशन पढ़ने न जाना पड़े इसलिए 10 मिनट पहले निकल जाती थी दौड़ने

ओलंपियन सुधा सिंह ने बताया कि बचपन से ही उनका मन पढ़ाई से ज्यादा स्पोर्ट्स में लगता था। गांव में बच्चों से रेस लगाना, पत्थर फेंकना, पेड़ों से कूदना उन्हें पसंद था। कभी-कभी तो घर में सब परेशान हो जाते थे, फिर भी वो उनके स्पोर्ट्स को बढ़ावा देते थे। लेकिन एक बेसिक पढ़ाई तो सभी को करनी होती है, इसलिए उन्हें फोर्स किया जाता था। वो कहती हैं कि ट्यूशन पढ़ने न जाना पड़े इसलिए वो उसके 10 मिनट पहले ही दौड़ने निकल जाती थीं। पढ़ाई से बचने के लिए भागने की आदत ने कब मुझे एथलीट बना दिया मालूम ही नहीं चला। मैं तो सबको पीछे करने का लक्ष्य लेकर दौड़ती हूं, मेडल मिलेगा या नहीं इस बात पर ध्यान नहीं देती।

नहीं दिया 3 साल तक मेडल तो नौकरी से बाहर

वो कहती हैं कि जब 2009 में चाइना में मैंने एशिया कप के लिए 3000 मीटर स्टेप चेस रेस दौड़ी, तो उसमें मेरी सेकेंड पोजिशन थी। तभी रेलवे में नौकरी का ऑफर मुंबई से आया, तो मैंने असिस्टेंट टीसी की पोस्ट पर ज्वाइन किया। फिर 2010 में चाइना में एशिया कप में पहली रैंक आई, तो रेलवे ने प्रमोट करके असिस्टेंट स्पोर्ट्स ऑफिसर बना दिया। इसके बाद लगा कि अब नौकरी के साथ अपनी रेस जारी रखूंगी। लेकिन तभी बताया गया कि रेलवे में एक बॉन्ड होता है, जिसमें 3 साल तक रेलवे को मेडल दिलाने के लिए खेलना होता है। नहीं दिला पाने पर नौकरी से बाहर कर दिया जाता है।

देश के लिए दौड़ना अच्छा लगता है

जापान में एशिया कप होने वाला था, मैंने तैयारी शुरू की और सेकेंड पोजिशन मिली। मुझे अपने देश के लिए दौड़ना अच्छा लगता है। खास तौर पर जब देश के बाहर बुलाया जाता है। 'सुधा सिंह फ्रॉम इंडिया', तो लगता है कि मैं वाकई स्पेशल हूं। बस यही सुनने के लिए बार-बार खेलने का मन करता है। मेरा परिवार बहुत बड़ा है। हम 4 भाई-बहन हैं। मैं तीसरे नंबर पर हूं। कई बार घर पर सब आते हैं कि शादी कब कराएंगे लड़की की। तो मां बोलती हैं उसके पास जब समय होगा तब करेगी।

घर में सभी मुझे टीवी पर देखकर खुश होते हैं, वो जब भी देखते हैं तो पड़ोस में सभी को बुलाकर बताते हैं, कि आज सुधा टीवी पर आई थी। मेरी ख्वाहिश यूपी के बच्चों को ट्रेनिंग देने की है, इसके लिए मैंने कोशिश भी की है। लेकिन इसके लिए कि‍सी और विभाग में नौकरी करने के लिए मुझे यूपी आना पड़ेगा। कई बार वन विभाग और अन्य जगहों से कॉल आई, लेकिन मैंने मना कर दिया। मुझे सिर्फ खेल विभाग में ही आना है। जिससे बच्चों को सही गाइड कर सकूं। अब सीएम योगी जी से उम्मीद है।

ये भी पढ़ें...एशियन गेम्स 2018: निशानेबाज़ी में मेरठ के शार्दुल ने देश को दिलाई चांदी

जानें देश-विदेश में कब-कब जीती प्रतियोगिताएं

वर्ष 2003 -- शिकागों में जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक।

वर्ष 2004 -- कल्लम मे जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक।

वर्ष 2005 -- चीन में जूनियर एशियन क्रॉस कंट्री प्रतियोगिता में चयन।

वर्ष 2007-- नेशनल गेम्स में पहला स्थान।

वर्ष 2008 -- सिनियर ओपन नेशनल में पहला स्थान।

वर्ष 2009 -- एशियन ट्रैक एंड फील्ड में दूसरा स्थान।

वर्ष 2010 -- एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक।

वर्ष 2014 -- एशियन गेम्स में कांस्य पदक।

वर्ष 2015 -- रियो ओलंपिक में चयन।

वर्ष 2016 -- आईएएएफ (आईएएएफ) डायमंड लीग मीट में नेशनल रिकॉर्ड (9:25:55) को तोड़ते हुए इतिहास रचा।

 

Tags:    

Similar News