Tokyo Olympics 2020: जानिए कौन हैं सविता पुनिया, जिनको मिला ''द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया'' का नाम

Tokyo Olympics 2020: ऑस्ट्रेलिया ने गोलकीपर सविता पुनिया को द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया (The Great Wall of India) बताया।

Written By :  Dharmendra Singh
Update: 2021-08-03 12:16 GMT

मैच के दौरान सवित पुनिया (फोटो: सोशल मीडिया)

Tokyo Olympics 2020: भारतीय महिला हॉकी टीम (Indian Women Hockey Team) ने टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) में शानदार प्रदर्शन किया है। भारतीय महिला हॉकी टीम ने अपने इस यादगार प्रदर्शन के दम पर टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाने में कामयाबी हासिल की है। भारतीय महिला हॉकी टीम की इस जीत में सविता पूनिया (Savita Puniya) ने अहम भूमिका निभाई है।

टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम का शुरू से ही शानदार प्रदर्शन रहा है। सोमवार को इसी प्रदर्शन के दम पर भारतीय महिला हॉकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हरा दिया और पहली बार ओलंपिक सेमीफाइनल में जगह बनाई। ऑस्ट्रेलिया के लगातार दबाव बनाने की कोशिश को उन्होंने नाकाम कर दिया।
गोलकीपर सविता पुनिया ने ऑस्ट्रेलिया के 7 पेनल्टी कॉर्नर को रोकने का काम किया। इसके साथ ही उन्होंने 14 काउंटर अटैक फेल कर दिया। ऑस्ट्रेलिया की टीम कुल 17 बार भारतीय सर्किल में प्रवेश किया, लेकिन पुनिया के साथ खड़ी भारतीय डिफेंस टीम ने उनको आगे बढ़ने नहीं दिया। भारत में ऑस्टेलिया के हाई कमिश्नर बैरी ओ फैरेल ने सविता पुनिया के इस प्रदर्शन की तारीफ की है और बधाई दी है। उन्होंने गोलकीपर सविता पुनिया को द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया (The Great Wall of India) बताया।


सविता पुनिया के बारे में
सविता पूनिया अपने इस शानदार प्रदर्शन की वजह से पूरी दुनियां में छा गई हैं। हरियाणा के सिरसा के गांव जोधकां की रहने वाली सविता को हॉकी में इस मुकाम तक पहुंचने की प्रेरणा उनके दादा से मिली। पूनिया के दादा को हॉकी पसंद थी, इसीलिए उन्होंने इसमें अपना करियर चुना। अगर उनके दादा को हॉकी पसंद नहीं होती, तो वह शायद जूडो या बैडमिंटन में शामिल होतीं।
इंटरनेशनल हॉकी खिलाड़ी सविता को अर्जुन अवॉर्ड भी मिला है। जब वह छठवीं क्लास में पढ़ती थीं तभी से वह हॉकी खेल रही हैं। उन्होंने साल 2004 में कोचिंग की शुरुआत की। उनके पिता महेंद्र पूनिया स्वास्थ्य विभाग में काम करते हैं। सविता के पिता ने अपनी बेटी का खूब साथ दिया है। एक बार ऐसा भी समय आया जब वह हॉकी छोड़ने के बारे में सोच रही थीं, लेकिन उन्होंने पूरी रात इस बारे में सोचा और सुबह हॉकी स्टिक को गले से लगा लिया।

साल 2008 के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा
साल 2008 में जर्मनी में हॉकी टूर्नामेंट में सविता ने हिस्सा लिया और उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 2016 में रियो ओलंपिक में वह शामिल हुई थीं। उनके एक टीचर दीपचंद ने उनके पिता से कहा था कि अगर अच्छा खेलेती है, तो एक दिन विदेश जरूर जाएगी। तो सविता के पिता का कहना था कि गांव की बेटियों को विदेश कौन ले जाएगा। लेकिन उसी बेटी ने इतना बड़ा कमाल कर दिखाया है।
सविता पुनिया जब 5वीं कक्षा में थी तो उनकी मां बीमार होने की वजह से अस्पताल में भर्ती थीं। उन्होंने एक वेबसाइट से बात करते हुए बताया है कि उस समय वह घर का पूरा काम संभालती थीं। उनके दादा समेत उनका पूरा घर चाहता था कि वह कुछ करें। जैसा कि हमने आपका ऊपर बताया है कि उनको हॉकी पसंद नहीं थी, लेकिन वह घर वालों और दादा के पंसद की वजह से इस खेल में आईं।


पुनिया हॉकी में आग बढ़ने के लिए हिसार स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) केंद्र में शामिल हो गईं। उस दौरान वह 20 किलो गोलकीपिंग गियर को लेकर घर से छात्रावास तक बस में करीब दो घंटे की यात्रा करती थीं। खेल हाॅस्टल में उनको गोलकीपर की जिम्मेदारी सौंपी गई। उनको यह जिम्मेदारी इसलिए मिली, क्योंकि ग्रुप में शामिल सभी से लंबी थीं। साल 2007 में भारतीय सीनियर नेशनल कैंप में उनको जगह मिली। लेकिन उन्होंने चार साल के इंतजार के बाद साल 2011 में अंतरराष्ट्रीय स्तर डेब्यू किया।

मिलती गई सफलता

सविता पुनिया कुछ सालों में हॉकी में भारत की सफलता का अभिन्न अंग रही हैं। एशिया कप में कांस्य विजेता टीम में वह शामिल थीं। 2013 में अपनी सफलता के बाद से, जब वह एशिया कप में कांस्य विजेता भारतीय टीम का हिस्सा थीं। भारत ने साल 2015 में रियो ओलंपिक 2016 के लिए क्वालीफाई करने में सफलता पाई थी। अपने शानदार खेल के दम पर उन्होंने अर्जुन अवॉर्ड जीता है।



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