Tokyo Olympics: ओलंपिक के लिए चुकानी होती है बड़ी कीमत, इस तरह मिलती है मेजबानी
Tokyo Olympics: टोक्यों ओलंपिक खेलों के आयोजन का वास्तविक खर्चा 30 अरब डॉलर बताया जा रहा है जबकि टोक्यो ने 2013 में 7.5 अरब डॉलर की बोली लगाई थी।
Tokyo Olympics: ओलंपिक खेलों का आयोजन कोई हंसी-खेल नहीं है और न कोई सस्ते का सौदा है। कहने को ये खेल है लेकिन असलियत में ये अरबों डॉलर का मामला है। ओलिंपिक के आयोजन का खर्चा (Costs Of Olympics) लगातार बढ़ते हुए अब किसी छोटे देश की समूची अर्थव्यवस्था के बराबर का हो गया है। टोक्यो ओलंपिक की ही बात करें तो इसका बजट 7.3 अरब डॉलर था लेकिन असल खर्चा बढ़ कर 30 अरब डॉलर के करीब पहुँच गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस खर्चे का लम्बे समय में कोई फायदा नहीं होता है।
मेजबान शहर को खेलों के आयोजन स्थल, इंफ्रास्ट्रक्चर, श्रमशक्ति और मनोरंजन के लिए अरबों डॉलर खर्च करने पड़ते हैं और इसके लिए उसे इंटरनेशनल ओलंपिक समिति (International Olympic Committee- IOC) के साथ अनुबंध करना होता है। ओलंपिक खेलों के आयोजन के लिए IOC के समक्ष बोली लगती है जिसमें बोली लगाने वाले बताते हैं कि वह कितना खर्चा करेंगे।
सबसे ऊंची बोली लगाने वाला जो रकम दिखाता है, अंत में जा कर वास्तव में उससे कई गुना ज्यादा खर्चा हो जाता है। टोक्यो ओलंपिक की बात करें तो 2013 में उसने 2020 के आयोजन की बोली जीती थी। अब इन खेलों के आयोजन का वास्तविक खर्चा 30 अरब डॉलर बताया जा रहा है जबकि टोक्यो ने 2013 में 7.5 अरब डॉलर की बोली लगाई थी।
करदाताओं के कंधों पर पड़ा बोझ
इन भारी भरकम खर्चे का बोझ स्वाभाविक रूप से जापानी करदाताओं के कन्धों पर पड़ा है क्योंकि जनता के पैसे से 55 फीसदी बजट की पूर्ति होगी। बाकी की रकम निजी रूप से की गयी फंडिंग, स्पॉन्सरशिप, टिकट बिक्री और आईओसी के सहयोग से जुटाई जायेगी। इस बार चूँकि दर्शकों को स्टेडियम में जाने की इजाजत नहीं होगी सो टिकट बिक्री से कुछ नहीं मिलने वाला है।
वैसे तो कोरोना के कारण बजट बढ़ गया है लेकिन महामारी आने से पहले ही लागत नियंत्रण से बाहर हो चली थी। 2017 में ही आईओसी ने टोक्यो से कहा था कि वह बजट घटाए। आईओसी को चिंता थी कि लागत बेतहाशा बढ़ने से भविष्य के आयोजनों पर बुरा असर होगा और ज्यादा खर्चे के डर से संभावित मेजबान पीछे हट जायेंगे।
टोक्यो ओलिंपिक में करीब 7.5 अरब डॉलर स्थाई या अस्थाई आयोजन स्थल के निर्माण पर खर्च हुए हैं। आयोजनों के लिए आठ नए स्थाई स्टेडियम बनाए गए हैं। खेलों का उद्घाटन और समापन नेशनल स्टेडियम में होगा और इस स्टेडियम को बनाने में 1.4 अरब डॉलर की मोटी रकम खर्च की गयी है। 15 हजार दर्शक क्षमता वाला ओलंपिक तैराकी प्रतियोगिता स्थल 542 मिलियन डॉलर के खर्च पर बना है।
2016 के ओलंपिक में हुआ था इतना खर्च
2016 के ओलंपिक ब्राज़ील के रिओ डी जेनेरो में हुए थे और उस समय आयोजकों ने कुल 13.2 अरब डॉलर खर्च किये थे जिसमें से 2.06 अरब डॉलर खेल आयोजन स्थलों पर खर्च हुआ था। इनमें से अधिकांश स्टेडियम खेलों के बाद बुरी हालत में पहुंच चुके हैं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि खेल अर्थव्यवस्थाओं से मिले मजबूत साक्ष्य बताते हैं कि आयोजन स्थलों के निर्माण पर खर्च की गयी रकम कोई ऐसा निवेश नहीं है जिससे बढ़िया रिटर्न मिल सके। इन भारी भरकम निर्माणों का खेलों के समापन के बाद कोई इस्तेमाल नहीं रह जाता है। इसकी वजह ये है कि ओलंपिक में बहुत से विशिष्ट खेल इवेंट होते हैं जिनमें आमतौर पर लोग भाग नहीं लेते हैं। सो, ऐसे इवेंट्स के लिए निर्माण पर ज्यादा खर्च करने का कोई औचित्य नहीं है।
इस तरह कंट्रोल कर सकते हैं बजट
एक्सपर्ट्स के अनुसार आयोजन स्थलों के निर्माण में कमी ला कर बजट कंट्रोल किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर 2028 का आयोजन अमेरिका के लॉस एजेलेस में होगा और ये शहर कम से कम दो उन वेन्यू का इस्तेमाल करेगा जिनका निर्माण 1932 के ओलंपिक के लिए हुआ था। जरूरत है कि जो इन्फ्रास्ट्रक्चर पहले से खड़ा है उसी का अधिकतम इस्तेमाल किया जाए।
2020 के ओलंपिक की एक खासियत ये है कि ये इतिहास के सबसे ज्यादा स्पॉन्सरशिप वाले खेल होने वाले हैं। आयोजकों ने अपने ही देश से 3.3 अरब डॉलर की स्पॉन्सरशिप हासिल कर रखी है। दरअसल, कोरोना आने से पहले सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था और आयोजकों ने लोकल स्पॉन्सरशिप बेचने का रिकार्ड बना लिया था। इतनी बड़ी रकम लोकल स्पॉन्सरशिप के जरिये पहले कभी जुटाई नहीं जा सकी थी।
इसके अलावा आईओसी के पास 14 टॉप स्पांसर पार्टनर हैं जिनको ओलंपिक पार्टनर कहा जाता है। इनमें कोकाकोला, टोयोटा, सैमसंग और अलीबाबा शामिल हैं। ये ग्लोबल स्पांसर मार्केटिंग अधिकारों के लिए धन देते हैं।
बहरहाल, एक्सपर्ट्स का कहना है कि खेलों, खिलाड़ियों, आम जनता और सरकारों के हित में है कि ओलंपिक पर होने वाला खर्चा सीमित किया जाये क्योंकि अनावश्यक खर्चे से किसी भी पक्ष को कोई फायदा नहीं पहुंच रहा है।
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