टोक्यो ओलंपिक में जौहर दिखाएंगी अंशु और सोनम मलिक

हरियाणा की दो छोरियों पहलवान अंशु मलिक और सोनम मलिक को टोक्यो ओलंपिक का टिकट मिल गया है।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Ashiki
Update: 2021-05-22 11:09 GMT

अंशु और सोनम मलिक (Photo-Social Media)

लखनऊ: भारत की पांच महिला पहलवानों ने अब तक देश के लिए वर्ल्ड चैंपियनशिप में मैडल जीता है, जिनमें विनेश फोगाट (2019), पूजा ढांडा (2018), बबीता फोगाट (2012), गीता फोगाट (2012) और अलका तोमर (2006) के नाम प्रमुख हैं अब इसी कड़ी में दो और नाम जुड़ने जा रहे है। ये दोनों नाम हरियाणा की बेटियों अंशु मलिक और सोनम मलिक के हैं। दोनों ही ओलंपिक में सोना जीतने के सपने देख रही है। बता दें कि ओलिंपिक में महिला कुश्ती में जापान का दबदबा है और इस देश ने अभी तक ओलिंपिक में 18 में से 11 पदक जीते हैं। अंशु मात्र 19 साल की है और टोक्यो में तिरंगा लहराने का दम रखती है।

हरियाणा की अंशु मलिक के पिता, चाचा, दादा और भाई भी पहलवान रहे हैं। लेकिन एक चोट ने अंशु के पिता धर्मवीर से उनका करियर छीन लिया। इसके बाद उन्होंने अपने बेटे बेटी पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन जब उन्हें पता चला कि अंशु पहलवान बनना चाहती है तो उन्होंने बेटी की राह में अड़ंगा नहीं डाला बल्कि उसके पंखों को संवारने में जुट गए। दरअसल 12 साल की अंशु ने अपनी दादी से मन की बात कही थी कि वह भाई की तरह पहलवान बनना चाहती है।

यहीं से उसके सपनों की उड़ान शुरू हुई। छोटे भाई शुभम की तरह जींद के निदानी खेल स्कूल में उसका प्रशिक्षण शुरू हुआ और छह महीने में ही पूत के पांव पालने में दिखाई देने लगे जब उसने अपने से तीन चार साल सीनियर लड़कियों को पटखनी देना शुरू किया।

इसके बाद अंशु की उड़ान थमी नहीं उसने अब तक छह सीनियर स्तर के टूर्नामेंट में भाग लिया है और पांच में पदक जीते हैं। इसमें खास है एशियन चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक। 2016 में अंशु ने एशियाई कैडेट चैंपियन शिप में सिल्वर मेडल जीता और फिर वर्ल्ड कैडेट चैंपियनशिप में ब्रांज मेडल हासिल किया। 2020 जनवरी में अंशु ने अपना पहला सीनियर टूर्नामेंट खेला और आज वह टोक्यो का टिकट कटाने वाली चार महिला पहलवानों में शामिल है।

एशियन ओलिंपिक क्वॉलिफायर्स के 57 किलोग्राम भारवर्ग के फाइनल में जगह बनाकर अंशु मलिक ने ओलंपिक का टिकट हासिल किया। अप्रैल में हुए इस टूर्नामेंट में सोनम को पिता के सपनों को पूरा करने का मौका मिला और उसने ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाइ किया था। उसके पिता का सपना रहा कि उनकी बेटी ओलंपिक में खेले और देश का ना रोशन करे।

क्वॉलिफायर्स में अंशु ने साउथ कोरिया की ओलिंपिक पहलवान जिउन उन को 10-0 से हराया और कजाकिस्तान की एमा तिसिना को भी 10-0 से मात दी। इसके बाद सेमीफाइनल में उजबेकिस्तान की शोखिदा अखमेदोवा को 12-2 से हराकर तोक्यो ओलिंपिक का टिकट हासिल किया। हालांकि फाइनल में उन्हें मंगोलिया की

पहलवान खोगोरजुल बोल्डसाइखान ने हाथों 7-4 से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन यह एक सबक से ज्यादा कुछ नहीं था। ओलिंपिक मेडिलिस्ट काओरी इचो को अंशु मलिक अपना आदर्श मानती हैं। इचो ने एथेंस 2004, बीजिंग 2008, लंदन 2012 और रियो 2016 यानी लगातार चार ओलंपिक में गोल्ड मेडल अपने नाम किए थे।

उधर हरियाणा के सोनीपत जिले के मदिना गांव की 19 साल की सोनम मलिक ओलंपिक टिकट हासिल कर यह साबित किया कि उनका जोखिम उठाने का फैसला सही था। सोनम ने रियो ओलंपिक की पदक विजेता साक्षी मलिक को 62 किग्रा भार वर्ग में पटखनी देकर अपनी पहचान बनाई है। हालांकि सोनम के कोच अजमेर मलिक और उनके अभिभावक को कुश्ती के राष्ट्रीय महासंघ की दो बार की इस कैडेट विश्व चैंपियन को सीनियर स्तर पर मौका देने के दिलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। साल 2019 में काफी मेहनत के बाद भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) ने सोनम को रोम रैंकिंग सीरीज के लिए जनवरी 2020 के ट्रायल में मौका दिया।

कोच अजमेर के मुताबिक, ''ट्रायल्स में सोनम साक्षी मलिक पर भारी पड़ीं और उन्होंने भारतीय टीम में जगह पक्की की। इसके बाद डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष बीबी शरण ने कहा था कि अगर हम ट्रायल्स में उसे मौका नहीं देते तो यह बड़ी गलती होती। हालांकि 'डब्ल्यूएफआई और कई अन्य का मानना था कि अनुभव की कमी के कारण सोनम जब दिग्गज पहलवानों से भिड़ेगी तो चोटिल हो जाएगी। लेकिन यह सोच गलत साबित हुई।

सोनम ने स्थानीय 'दंगल' मुकाबलों में असाधारण प्रदर्शन किया था। उसने बड़े नामों के खिलाफ ओपन कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा करते हुए जीत दर्ज की थी। जिससे उसके कोच का मनोबल बढ़ा हुआ था। सोनम ने रितु मलिक, सरिता मोर, निशा या सुदेश जैसे बड़े पहलवानों के खिलाफ मुकाबले में उनकी प्रतिष्ठा की परवाह नहीं की और कुश्ती में बड़े नामों के खिलाफ दमदार मुकाबला किया।

सोनम ने 2018 में दिल्ली दंगल में एक स्कूटर और एक लाख 10 हजार रुपये का पुरस्कार जीता। उसने पांच बार भारत केसरी का खिताब जीता। सोनम को 10 साल की उम्र से ही नाम कमाने की ललक थी। सोनम के भाई मोहित भी कुश्ती में नाम कमाना चाहते थे, लेकिन कंधे की चोट के कारण उनका सपना टूट गया। उन्होंने कहा सोनम बचपन से ही निडर थी, लेकिन वह काफी आज्ञाकारी भी थी।

सोनम को मजबूत लड़कों को हराने में ज्यादा मजा आता था. लड़कियों के खिलाफ कुश्ती करना भी अच्छा था लेकिन लड़कों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा उसके लिए हमेशा एक अच्छी परीक्षा थी। सोनम मुकाबलों में पिछड़ने पर भी विचलित नहीं होती और वापसी करने में सफल रही है। साक्षी के खिलाफ उनके पहले मुकाबले (जनवरी 2020) में सोनम पहले 4-6 और फिर 6-10 से पीछे चल रही थी लेकिन आखिरी लम्हों में उन्होंने चार अंक जुटा कर ओलंपिक पदकधारी को चौंका दिया। उसने साक्षी को लगातार चार पर पटखनी दी। कह सकते हैं कि सोनम दो महीने बाद जब टोक्यो ओलंपिक के रिंग में उतरेंगी तब भी उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं होगा।

Tags:    

Similar News