Shyama Prasad Mukherjee न होते तो बंगाल नहीं होता भारत का हिस्सा, पुण्यतिथि पर ऐसे किए जा रहे याद

Shyama Prasad Mukherjee : डॉ. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि एक देश में दो वि‍धान, दो नि‍शान, दो प्रधान नहीं चलेगा। इसके वि‍रोध में उन्‍होंने अगस्त 1952 में जम्मू में विशाल रैली करते हुए कहा कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।

Newstrack :  Network
Update:2024-06-23 13:16 IST

Shyama Prasad Mukherjee : डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पहचान एक हिंदूवादी नेता के रूप में होती है। वे हमेशा से अपने इस प्रण पर अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है। देश की एकता को लेकर उनका कहना था कि एक देश–दो वि‍धान, दो प्रधान–दो नि‍शान' नहीं चल सकता। उनको भारतीय जनसंघ का संस्थापक तो माना ही जाता है, जो बाद में चलकर भाजपा बनी। हालांकि, भारत के विकास में भी उनका बड़ा योगदान रहा है। अगर वह न होते तो शायद आज पश्चिम बंगाल भारत का हिस्सा न होता। राष्ट्रवादी नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके योगदान के बारे में।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता हाईकोर्ट के जज थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया और 1921 में बीए की डि‍ग्री प्राप्त की। 1923 में एलएलबी करने के बाद इंग्‍लैंड से 1926 में बैरि‍स्‍टर की डि‍ग्री हासि‍ल की। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी महज 33 साल की उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने थे। उन्हीं के कार्यकाल में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बांग्ला में भाषण दिया था।

मुस्लिम लीग की सरकार का किया विरोध


विश्वविद्यालय से जुड़े रहते हुए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में बंगाल के लि‍ए विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) चुने गए। इसके अगले साल ही कांग्रेस के वि‍धानमंडल बहि‍ष्‍कार को देखते उन्‍होंने इस्‍तीफा दे दि‍या। वे नि‍र्दलीय के तौर पर चुनाव लड़े और जीत हासि‍ल की। यह साल 1937 की बात है, भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत प्रांतीय चुनाव हुए थे और बंगाल में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। बंगाल में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने थी तो मुस्लिम लीग और कृषक प्रजा पार्टी को भी अच्छी सीटें मिली थीं। हालांकि, बंगाल में कृषक प्रजा पार्टी और मुस्लिम लीग ने गठबंधन करके सरकार बनाई। और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी वि‍रोधी दल के नेता बने। उन्होंने मुस्लिम लीग सरकार की तत्कालीन नीतियों का मुखर विरोध किया। तत्कालीन सरकार ने बंगाल विधानसभा में कलकत्ता म्युनिसिपल बिल रखा था, जिसमें मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन का प्रावधान किया गया था। इसका भी डॉ. मुखर्जी ने विरोध किया था।

1941 में डॉ. मुखर्जी ने फजलुल हक के साथ बनाई सरकार

मुस्लिम लीग की सरकार साल 1941 में गिर गई और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल में फजलुल हक के साथ गठबंधन की सरकार बनाई। इस सरकार में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी वित्तमंत्री बने। इसी बीच जब देश की आजादी की चर्चा शुरू हुई तो डॉ. मुखर्जी ने बंगाल विभाजन की मांग उठा दी। कहा जाता है कि साल 1905 में भी उन्होंने हिंदू आबादी की अधिकता के चलते बंगाल विभाजन का समर्थन किया था। फिर आजादी के वक्त ऐसा लगने लगा कि पूरा बंगाल ही पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएगा तो उन्होंने हिंदू आबादी की अधिकता के आधार पर एक बार फिर बंगाल के विभाजन की मांग उठा दी। इस दौरान हिंदुओं के अधिकार को लेकर वह आंदोलन पर डटे रहे। डॉ. मुखर्जी का मानना था कि पूरा बंगाल अगर पाकिस्तान में चला गया, तो मुस्लिम अधिकता वाले इलाकों में हिंदुओं पर हमले बढ़ जाएंगे। इसलिए हिंदू बहुल पश्चिमी बंगाल को भारत में बनाए रखने के लिए इसका विभाजन जरूरी था। इसके लिए समर्थन जुटाने के मकसद से मुखर्जी ने उन दिनों कई दौरे किए और राज्य के सभी क्षेत्रों में हिंदू सम्मेलन आयोजित किए। इसके बाद बंगाल का विभाजन हुआ और पूरा बंगाल पाकिस्तान के हिस्सा में नहीं गया। अगर ऐसा न होता तो पश्चिम बंगाल आज बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) का हिस्सा होता।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी बने देश के पहले उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री


देश जब साल 1947 में आजाद हुआ तो पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने तब खुद महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को तत्कालीन केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल करने की सिफारिश की. पंडित जवाहरलाल नेहरू के अंतरिम सरकार में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी देश के पहले उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री बनाए गए। उन्हीं के कार्यकाल में ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट बोर्ड, ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड और खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की गई थी। साल 1948 में उनके कार्यकाल में ही इंडस्ट्रिलय फाइनेंस कॉरपोरेशन की स्थापना हुई। पहला भारत निर्मित लोकोमोटिव एसेंबल्ड पार्ट उन्हीं के कार्यकाल में बना और चितरंजन लोकोमोटिव फैक्टरी भी शुरू की गई थी। बाद में 6 अप्रैल 1950 को पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वह चाहते थे कि देश के दूसरे हिस्सों के समान ही कश्मीर में भी सारे नियम कानून-लागू होंगे। आजादी के समय से जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां के मुख्यमंत्री को भी प्रधानमंत्री कहा जाता था। धारा 370 लागू होने से कश्‍मीर में बगैर परमीट के कोई दाखि‍ल नहीं हो सकता था। इस परमि‍ट का वि‍रोध करते हुए डॉ. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा कि एक देश में दो वि‍धान, दो नि‍शान, दो प्रधान नहीं चलेगा। इसके वि‍रोध में उन्‍होंने अगस्त 1952 में जम्मू में विशाल रैली करते हुए कहा- या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर में हुआ था निधन

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस्तीफे के बाद बगैर परमि‍ट के जम्मू कश्मीर जा रहे थे। जब 11 मई 1953 को श्रीनगर में घुसे तो शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उनको गिरफ्तार कर लिया। उनके साथ दो सहयोगियों को भी गिरफ्तार किया गया था। सबको पहले श्रीनगर की सेंट्रल जेल भेजा गया पर बाद में शहर के बाहर एक कॉटेज में रखा गया। वह एक महीना से ज्यादा कैद में रहे और इसी दौरान तबीयत बिगड़ती चली गई। डॉ. मुखर्जी को 22 जून 1953 को सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई तो उनको अस्पताल में शिफ्ट किया गया, जहां पता चला कि उनको हार्ट अटैक आया था। इसके अगले ही दिन कश्मीर सरकार ने घोषणा की थी कि 23 जून को भोर में 3:40 बजे हार्ट अटैक से डॉ. मुखर्जी का निधन हो गया।

सीएम योगी ने की डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पुण्यतिथि पर लखनऊ में हजरतगंज के सिविल हॉस्पिटल परिसर में स्थित प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री ने डॉ. मुखर्जी को भारत माता का महान सपूत, प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, अखंड भारत का स्वप्नदृष्टा बताया। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने भारतीय जनसंघ के हजारों कार्यकर्ताओं के साथ कश्मीर सत्याग्रह के लिए अभियान प्रारंभ किया, इसके लिए उन्हें प्राण भी त्यागना पड़ा। कश्मीर में धारा-370 समाप्त कर एक देश में एक प्रधान, एक विधान, एक निशान की भावनाओं को सम्मान करने का कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की एनडीए सरकार ने किया है। यह कश्मीर, देश की अखंडता और सीमा की सुरक्षा के लिए बलिदान देने वालों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, पूर्व उप मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा, कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, महापौर सुषमा खर्कवाल, विधायक योगेश शुक्ल, विधान परिषद सदस्य डॉ. महेंद्र सिंह, रामचंद्र प्रधान, लालजी निर्मल, इंजी. अवनीश सिंह, मुकेश शर्मा आदि मौजूद रहे।


पीएम मोदी ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर दी श्रद्धांजलि

दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। पीएम ने मुखर्जी को देश का महान सपूत, प्रख्यात विचारक और शिक्षाविद् बताया। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि देश के महान सपूत, प्रख्यात विचारक और शिक्षाविद् डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर सादर श्रद्धांजलि। उन्होंने अपना जीवन मां भारती की सेवा में समर्पित कर दिया। उनका गतिशील व्यक्तित्व देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।



गृहमंत्री अमित शाह ने दी श्रद्धांजलि

वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर याद करते हुए कहा कि देश की एकता, अखंडता और स्वाभिमान के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ‘एक निशान, एक विधान, एक प्रधान’ का नारा देकर जम्मू-कश्मीर को देश का अभिन्न अंग बनाने के संघर्ष में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। भारतीय संस्कृति का यह सितारा हमेशा चमकता रहेगा और आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्र प्रथम के मार्ग पर ले जाएगा।



भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दी श्रद्धांजलि

वहीं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में मुखर्जी को पुष्पांजलि अर्पित की और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच पौधे वितरित किए। नड्डा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि भारतीय जनसंघ के संस्थापक, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार, प्रख्यात विचारक और शिक्षाविद् श्रद्धेय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर मैं अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र की प्रगति और गौरव के लिए समर्पित कर दिया। भारत की संप्रभुता की रक्षा और शिक्षा जगत के लिए उनका कार्य अविस्मरणीय है। उन्होंने आगे कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद जी का त्याग और समर्पण हर भारतीय को राष्ट्र को सर्वोपरि रखने और अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित करता रहेगा। मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में उद्योग और आपूर्ति मंत्री के रूप में भी काम किया।



Tags:    

Similar News