Jageshwar Dham Temple: अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम में स्वयं विराजित है भोलेनाथ, ये है प्रथम शिवलिंग, जानें इससे जुड़ी कहानी

Jageshwar Dham Temple : जागेश्वर धाम मंदिर देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान शिव और पार्वती स्वयं विराजमान हैं।

Update:2024-06-19 09:27 IST

Jageshwar Dham Temple (Photos - Social Media)

Jageshwar Dham Temple : जागेश्वर समुद्र तल से 1,870 मीटर की ऊंचाई पर और अल्मोड़ा से 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । जागेश्वर कुमाऊं का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है और हर साल हजारों पर्यटक यहां आते हैं। यह घने देवदार के जंगल के बीच स्थित है जिसके पीछे एक नदी बहती है। ये ऐसा तीर्थस्थल है जो भगवान शिव की तपोस्थली के रूप में जानी जाती है। जी हां, देवनगरी के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड में एक धार्मिक स्थल है जिसका नाम जागेश्वर धाम है। खास बात यह है कि इन तीर्थस्थलों का उल्लेख हमारे पुराणों और ग्रंथों में भी मिलता है। मान्यतानुसार, यहां भगवान शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग जागेश्वर स्थित है। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। हालांकि इसको लेकर यह भी कहा जाता है कि यह भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।

जागेश्वर धाम ऐसे पड़ा नाम (Jageshwar Dham Got its Name like This)

हिमालय पर्वतमाला पर अल्मोड़ा नगर से पूर्वोत्तर दिशा में पिथौरागढ़ मार्ग पर 36 किमी की दूरी पर पवित्र जागेश्वर धाम स्थित है। जागेश्वर की तल से ऊंचाई 1870 मीटर है। जागेश्वर धाम के बारे में मान्यता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सबसे पहले आरंभ हुई। कई पुराणों में इस जगह का उल्लेख मिलता है।

Jageshwar Dham Temple


ऐसी है मान्यता (Such is The Belief)

ऐसी मान्यता है कि देवाधिदेव महादेव यहां आज भी वृक्ष के रूप में मां पार्वती सहित विराजते हैं। देवदार के घने वृक्षों से घिरी यह घाटी एक मनोहारी तीर्थस्थल है। मान्यता है कि भगवान शिव-पार्वती के युगल रूप के दर्शन यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित नीचे से एक और ऊपर से दो शाखाओं वाले विशाल देवदार के वृक्ष में करते हैं। यह बहुत प्राचीन पेड़ बताया जाता है। यह भी सत्य है कि भगवान शिव ही एकमात्र देवता हैं, जिन्होंने सदैव मृत्यु पर विजय पाई। मृत्यु ने कभी भी शिव को पराजित नहीं किया। इसी कारण उन्हें मृत्युंजय के नाम से पुकारा गया।

ऐसा है मंदिर (This Is The Temple)

जागेश्वर धाम के मंदिर समूह में सबसे विशाल एवं सुंदर मंदिर महामृत्युंजय महादेव जी के नाम से विख्यात है। जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर धाम के इस मंदिर में 124 मंदिरों का एक समूह है, जो अति प्राचीन है। इसके 4-5 मंदिरों में रोज पूजा-अर्चना होती है। सबसे विशाल तथा प्राचीनतम महामृत्युंजय शिव मंदिर यहां का मुख्य मंदिर है इसके अलावा जागेश्वर धाम में भैरव, माता पार्वती,केदारनाथ, हनुमान, मृत्युंजय महादेव, माता दुर्गा के मंदिर भी विद्यमान है। इनमें 108 मंदिर भगवान शिव जबकि 16 मंदिर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। महामृत्युंजय, जागनाथ, पुष्टि देवी व कुबेर के मंदिरों को मुख्य मंदिर माना जाता है। स्कंद पुराण, लिंग पुराण मार्कण्डेय आदि पुराणों ने जागेश्वर की महिमा का बखूबी बखान किया है।

Jageshwar Dham Temple


ये है प्रथम ज्योतिर्लिंग (This is the First Jyotirlinga)

यहां स्थित नागेश्वर शिवलिंग भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें हमेशा स्वीकार हो जाती थी, जिसका भारी दुरुपयोग होने लगा। 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। ऐसा माना जाता है कि किसी के लिए मांगी गई बुरी कामना यहां कभी पूरी नहीं होती है। यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।

कैसे हुई स्थापना (This is The Rirst Jyotirlinga)

यह भी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्रों लव-कुश ने अपने पिता की सेना से युद्ध किया था, राजा बनने के बाद वे यहां आए थे। दरअसल लव-कुश अज्ञानतावश किए युद्ध के प्रायश्चित के लिए इस जगह पर ही यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया था। कहा जाता है कि लव-कुश ने ही सर्वप्रथम इन मंदिरों की स्थापना की थी। वह यज्ञ कुंड आज भी यहां विद्यमान है। रावण, पांडव और मार्कण्डेय ऋषि द्वारा जागेश्वर धाम में शिव पूजन का उल्लेख मिलता है। यहां पांडवों के आश्रय होने के आज भी अनेक मूक साक्ष्य मिलते हैं। हालांकि मंदिर का निर्माण किसने किया इसके बारे में साक्ष्य प्रमाण नहीं मिल पाए हैं।

Jageshwar Dham Temple

 

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