Bhukhi Mata Temple Ujjain: उज्जैन में है भूखी माता का प्रसिद्ध मंदिर

Bhukhi Mata Temple Ujjain: विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल की नगरी में दुखी माता का प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है। ये भक्तों की आस्था का केंद्र है।

Update: 2024-05-05 04:00 GMT

Bhukhi Mata Temple Ujjain (Photos - Social Media)

Bhukhi Mata Temple Ujjain : बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन को दुनिया भर में धार्मिक नगरी के तौर पर पहचाना जाता है। यहां विश्व का एकमात्र दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मौजूद है जहां बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। उज्जैन में कई सारे मंदिर हैं जो अपने चमत्कारों और मान्यताओं के चलते पहचाने जाते हैं। अपने उज्जैन के कई सारे मंदिरों के बारे में सुना होगा। यहां पर शिप्रा नदी के तट पर भूखी माता का मंदिर भी मौजूद है जो काफी प्रसिद्ध है।

कहां है मंदिर

दत्त अखाड़ा क्षेत्र की पश्चिम दिशा में शिप्रा नदी के तट पर भूखी माता का प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है। 4 फीट ऊंचे चबूतरे पर गर्भ ग्रह में भूखी माता और भुवनेश्वरी देवी की मूर्ति विराजित है। दरसारी यह दो बहने जिम भूखी माता बड़ी है। मंदिर में केवल इन देवियों के मुख्य मंडल ही दिखाई देते हैं। उनके मुख्य मंडल पर सुविशाल नेत्र, माथे पर कुमकुम, सुर्ख लाल टीका, चांदी का मुकुट, नाक में नथनी, कान में झुमकियां, गले में कुमकुम के टिकों की माला और श्रृंगार से सजी माताएं भक्तों को भावविभोर कर देती हैं।

Bhukhi Mata Temple Ujjain


ऐसी है कहानी

भूखी माता मंदिर से जुड़ी अनेक किंवदंतियां हैं। कथानकों के अनुसार प्राचीन काल में उज्जैन नगर में प्रतिदिन नया राजा बनता था, वजह राजा को देवी रात्रि के तीसरे प्रहर में अपना आहार बनाती थी। एक दिन विक्रमादित्य एक वृद्ध दंपत्ति के पुत्र के एवज में राजा बने और देवियों को मिष्ठान आदि अर्पित कर प्रसन्ना्‌ किया। देवी ने वचन मांगने को कहा, तो राजा ने नित्य नर बलि बंद करने तथा नगर सीमा छोड़कर शिप्रा नदी के बाहर रहने का वचन मांगा। साथ ही यह भी वचन लिया कि प्रत्येक बारह वर्ष में सिंहस्थ महापर्व के समय एक पल के लिए नगर में प्रवेश करेंगी। देवी ने तथास्तु कहकर विक्रमादित्य को आशीर्वाद दिया। कहा जाता है कि माता की कृपा से विक्रमादित्य ने उज्जैन में 135 वर्षों तक राज किया।

Bhukhi Mata Temple Ujjain


जुड़ी है आस्था

विक्रमादित्य के शासनकाल के बाद आज तक इस मंदिर से कई तरह की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। अब यहां पर नरबलि तो नहीं दी जाती कुछ समय पहले तक यहां पशु बलि चढ़ाई जाती थी लेकिन अब यहां कद्दू की बलि चढ़ती है। शिप्रा तट पर मौजूद इस मंदिर का दृश्य आज भी वैसा ही है जैसा पुराने समय में हुआ करता था। आज भी यहां लोग अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं और देवी उनकी सारी मनोकामना पूरी करती हैं।

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