Dholkal Ganesh : 3000 फीट की ऊंचाई पर बसी भगवान गणेश की प्राचीन प्रतिमा, दर्शन के लिए करनी पड़ती है कठिन चढ़ाई

Dholkal Ganesh : देश में कई ऐसे स्थान है जो अचंभित कर देने वाले हैं। ऐसी भगवान गणेश की एक प्रतिमा भी है जो 3000 फीट की ऊंचाई पर बसी हुई है।

Update:2023-11-23 16:33 IST

dholkal ganesh ji 

Dholkal Ganesh : गणपति बप्पा एक ऐसी भगवान हैं जो भक्तों के आराध्य होने के साथ-साथ फेवरेट भी हैं। गणेश जी के नटखट, चंचल और बुद्धिमान स्वभाव को सभी पसंद करते हैं। यही कारण है कि वह प्रथम पूज्य हैं। दुनिया भर में श्री गणेश के कई सारे मंदिर हैं लेकिन आज हम आपको बप्पा की जिस मूर्ति के बारे में बताने जा रहे हैं वह एक ऊंचे पहाड़ पर अकेले विराजमान है। यह गणेश मंदिर 3000 फीट ऊंचे पहाड़ पर मौजूद है और बताया जाता है की नौवीं शताब्दी के दौरान इस प्रतिमा का निर्माण किया गया था। यह तीन फीट लंबी और साढे तीन फीट चौड़ी है और इसकी प्राचीनता का अंदाज इसकी तस्वीरें को देखकर लगाया जा सकता है।

कहां है बप्पा की मूर्ति

बप्पा की जिस प्राचीन मूर्ति की हम बात कर रहे हैं वह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में ढोलकल पर्वत पर मौजूद है। यह जगह रायपुर से 350 किलोमीटर दूर दंतेवाड़ा जिले में है जहां पहाड़ी पर भगवान गणेश बसे हुए हैं। यहां पर पहुंचने के लिए स्थानीय लोग मार्गदर्शन का काम करते हैं और पूरे क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। पहले जहां इस मूर्ति तक जाने में लोगों को डर लगता था वहीं अब सुविधा हो जाने से लोग यहां पहुंच रहे हैं और स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है। इस मंदिर को ढोलकल गणेश मंदिर के नाम से पहचाना जाता है।

मूर्ति का इतिहास

प्राचीन मूर्ति के इतिहास की बात करें तो बताया जाता है कि इस पर्वत पर भगवान गणेश और परशुराम के बीच भयानक युद्ध हुआ था। युद्ध की वजह यह थी कि भगवान परशुराम ने महादेव की तपस्या कर बहुत अधिक शक्ति प्राप्त कर ली थी और उसी का उपयोग करते हुए उन्होंने युद्ध में विजय प्राप्त की थी। जब वह महादेव को धन्यवाद देने के लिए कैलाश जा रहे थे तो गणपति बप्पा ने उन्हें इस पर्वत पर रोक लिया और इसी युद्ध में परशुराम के हाथ से किए गए प्रहार के कारण बप्पा का आधा दांत टूट गया था। इस घटना के बाद से बप्पा के एकदंत वाले स्वरूप की ही पूजा की जाती है। यह भी बताया जाता है कि परशुराम के अस्त्र से पर्वत टूट गया था और वहां की चट्टानें लोहे की हो गई थी इसलिए इन चट्टानों को लोहे की चट्टान कहा जाता है और यहां श्री गणेश की मूर्ति स्थापित की गई है।

कैसे पहुंचे

यह जगह पूरी तरह से प्रकृति से घिरी हुई है। भगवान गणेश के दर्शन करने के लिए 5 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है और इस रास्ते में कई सारे घने जंगल, पुराने पेड़, ऊंची चट्टानें और झरने देखने को मिलते हैं। यात्रा भले ही कठिन हो लेकिन प्रकृति का सौंदर्य हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है।

1934 में एक विदेशी भूगोलवेत्ता ने इस प्राचीन मंदिर की खोज की थी और 2012 में दो पत्रकार ट्रैकिंग करते हुए यहां पहुंचे थे जिसके बाद तस्वीर और जानकारी वायरल की गई थी। इसके बाद से ट्रैकर्स के लिए यह एक नई जगह बन गई। यह भी बताया जाता है कि 2012 में जब इस जगह की खोज की गई थी तो स्थानीय लोगों ने सरकार की मदद से आसपास के क्षेत्र से मूर्ति के टूटे हुए अवशेष इकट्ठा कर इसे पुनर्स्थापित किया था।

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