Golgappa History Wikipedia: गोलगप्पे की कहानी, आखिर कब खाया गया होगा पहली बार गोलगप्पा?
Golgappa History Wikipedia in Hindi: पौराणिक कथाओं के अनुसार द्रोपदी ने पांडवों को पहली बार पानी पूरी का सेवन कराया था । कहा जाता है महाभारत काल के दौरान माता कुंती ने अपनी पुत्र वधू द्रोपदी की परीक्षा लेने का विचार किया।
Golgappa History Wikipedia in Hindi: यह आर्टिकल हो सकता है आपके मुंह पर पानी जरूर ले आए क्योंकि आज हम बात करेंगें गोलगप्पे की। जी हाँ हम उसी गोलगप्पे की बात कर रहे हैं जिसे अलग-अलग नामों से लोग जानते हैं । कहीं इसे गोलगप्पा , तो कहीं इसे फुलकी , तो कहीं इसे पानी पूरी तो कहीं इसे गुपचुप , पुचका , पानी पताशा या कहीं पड़ाके भी बोला जाता है ।
यह वही गोलगप्पे की कहानी है जिसे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े तक पसंद करते हैं। जब भी हम गोलगप्पे खाते हैं शायद ही किसी ने सोचा हो कि यह पहली बार कब बना होगा ?इसे किसने बनाया होगा , इसका विचार कैसे आया होगा । लेकिन हम गोलगप्पे के स्वाद में ही इतने खो जाते हैं कि ये सभी सवाल छुमंतर हो जाते हैं । पर यदि किसी ने भी ऐसे सवाल सोचे हैं तो आज आपके सवालों का जवाब आपको मिल जाएगा ।
इसकी शुरुआत के कोई प्रामाणिक सबूत तो नहीं मिले हैं पर कुछ पौराणिक कहानियों मे गोलगप्पे का इतिहास पता चलता है । आइए जानते हैं क्या कहती हैं ये कहानियाँ -
द्रोपदी और कुंती वार्तालाप
पौराणिक कथाओं के अनुसार द्रोपदी ने पांडवों को पहली बार पानी पूरी का सेवन कराया था । कहा जाता है महाभारत काल के दौरान माता कुंती ने अपनी पुत्र वधू द्रोपदी की परीक्षा लेने का विचार किया। उनका उद्देश इस बात को जानना था कि विपरीत स्थितियों का सामना कैसे किया जाता है । उस समय माता कुंती और उनके पाँच पांडव पुत्र और पुत्रवधू द्रोपदी जंगल में निवास किया करते थे। एक दिन माता कुंती ने परीक्षा लेने के उद्देश से द्रोपदी को खाने की कम सामग्री में अच्छा खाना बनाने का निर्देश दिया।
जिसमे सभी की भूख मिट जाए । सामग्री के रूप में कुछ आलू, थोड़ा आटा और कुछ मसाले दिए और कहा कि कुछ स्वादिष्ट भोजन बनाकर लाए । माता कुंती, द्रोपदी की अज्ञातवास के दौरान कुशल होने की परीक्षा ले रहीं। थीं। द्रोपदी ने तब इन सामग्री से पूरियों के ऊपर आलू मसाला रखा और उसे पानी के साथ परोसा । जिसे पांडवों ने खूब पसंद किया । साथ ही माता कुंती भी प्रसन्न हुई और उन्हें द्रोपदी की कुशलता का अनुभव हुआ । कहते हैं इसके बाद ही माता कुंती ने द्रोपदी को अमरता का वरदान दिया था । तब से ही पानी पूरी का जन्म हुआ होगा ।
हालांकि हम जो आज पानी पूरी अपने अपने क्षेत्र में खाते हैं उसका स्वाद तब के स्वाद से काफी अलग होगा । हम यह भी पाते हैं नाम के बदलने के साथ साथ फुलकी अथवा पानी पूरी का स्वाद भी थोड़ा बदल जाता है । जैसे कहीं- कहीं पर आलू के साथ काले चने मिलाए जाते हैं तो कहीं -कहीं सिर्फ आलू का ही मसाला होता हैं । फिर कहीं हरे सफेद मटर के साथ भी मसाला बनाया जाता है । तो कहीं-कहीं आटा , तो कहीं-कहीं सूजी के गोलगप्पे बनाए जाते हैं । पर जो भी हो पानी पूरी सभी के फेवरिट लिस्ट मे जरूर होती है ।
मगध काल से जुड़ा इतिहास
एक थ्योरी के अनुसार कहा जाता है फुलकी का इतिहास 400-500 साल पुराना है । मगध के राजा ने इसे अपने शासन मे बनवाया था । तब से ही इसे पसंद किया जाने लगा । चूंकि फुलकी मे पड़ने वाली मिर्च और आलू दोनों ही 300-400 साल पहले भारत के मगध क्षेत्र में आए थे । इसलिए यहाँ से ही फुलकी की शुरुआत हुई होगी । मगध एक बिहार का क्षेत्र है जिसे आज दक्षिण बिहार के नाम से जानते हैं।
भारत के लगभग सभी राज्यों में फुलकी और गोलगप्पे की दुकान आपको सड़कों पर लगी मिल जाएंगी। हो सकता है उसका नाम कुछ और हो , पर फुलकी का रंग और आकार देख कर कोई भी समझ सकता है । फुलकी को अच्छा स्ट्रीट फूड भी माना जाता है क्योंकि इससे भूख भी कम हो जाती है और वजन भी नहीं बढ़ता है । यहाँ तक कि डॉक्टर के मुताबिक फुलकी पाचन के लिए अच्छी होती है । यदि उसे सफाई और हाइजीन के साथ खाया जाए तो । साथ ही गोलगप्पा खाने से छाले को भी ठीक करने में मदद मिलती है।
फुलकी को सोशल मीडिया के ट्रेंडिंग जमाने में अलग अलग फ्लेवर्स के साथ बेचा जाने लगा है, जैसे चॉकोलेट फ्लेवेर , मेंगो फ्लेवर।विदेशियों को लुभाने के लिए पानी पूरी टकीला शॉट । वहीं महानगरों में इसे वाइन और स्कॉच के साथ दिया गया फिर भी मसाले वाले पानी की मांग को कोई भी टक्कर नहीं दे सका है । शादी पार्टियों में 56 पकवान के होने के बावजूद भी आपको फुलकी के स्टॉल पर भीड़ दिख ही जाएगी । अब तक देश के साथ-साथ विदेशों मे भी फुलकी को पहचान मिलने लगी है ।
शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति या इंसान हो जिससे आप मिले हों और उसे फुलकी पसंद नहीं होगी । फुलकी भारतवासियों का रुचिकर स्ट्रीट फूड रहा है। यह अब इतना लोकप्रिय हो चुका है कि यह स्ट्रीट फूड होकर भी बड़े बड़े रेस्टोरेंट होटल के मेन्यू लिस्ट मे आपको दिख जाएगा ।
फुलकी इसलिए भी, लोगों की और पसंदीदा हो जाती है क्योंकि यह बजट फ़्रेंडली होती है । छोटा सा बच्चा भी अपने पिगी बैंक के पैसे से इसे खा सकता है ।
क्षेत्र और भाषा के आधार पर गोलगप्पे का नाम भी बदल जाता है पर इसके दीवाने नहीं बदले हैं ।जैसे मध्य प्रदेश में 'फुलकी' ,हरियाणा में गोलगप्पे को 'पानी पताशा कहते हैं। उत्तर प्रदेश में 'पानी के बताशे' और 'पड़ाके' , असम में 'फुस्का' या 'पुस्का', ओडिशा में 'गुप-चुप' और बिहार, नेपाल, झारखंड, बंगाल और छत्तीसगढ़ में 'पुचका' कहते हैं।
नाम जो भी हो पर फुलकी का आविष्कार कई लोगों के जीभ का स्वादिष्ट स्वाद हो चुका है । जो सालों तक नहीं हटने वाला है ।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)