Delhi Ka Itihas in Hindi: आइए जाने दिल्ली सल्तनत का इतिहास, पांच वंशों की षड़यंत्र, उदय, शासन और पतन की गाथा

History Of Delhi Wiki in Hindi: दिल्ली (Delhi Ka Itihas Kya Hai) का इतिहास विभिन्न राजवंशों के उत्थान और पतन से भरा हुआ है। आइये जानते है इसके इतिहास के बारे में विस्तार से।;

Written By :  Shivani Jawanjal
Update:2025-02-24 12:42 IST

History Of Delhi Wiki in Hindi (Photo - Social Media)

History Of Delhi Sultanate:दिल्ली(Delhi) का इतिहास विभिन्न राजवंशों के उत्थान और पतन से भरा हुआ है। विशेष रूप से, दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों ने इस क्षेत्र पर अपना प्रभाव डाला और इसे एक मजबूत इस्लामी शासन केंद्र में बदल दिया। इतिहासकारों के अनुसार, 1206 से 1526 तक भारत पर शासन करने वाले पाँच वंशों के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत या सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है। इन पाँच वंशों में शामिल थे गुलाम वंश (1206-1290), ख़िलजी वंश (1290-1320), तुग़लक़ वंश (1320-1414), सैयद वंश (1414-1451) और लोदी वंश (1451-1526)। इनमें से पहले चार वंश तुर्क मूल के थे, जबकि लोदी वंश अफगान था।


दिल्ली सल्तनत की शुरुआत कुतुबुद्दीन ऐबक से हुई, जो मुहम्मद गौरी का एक गुलाम और सेनापति था। ऐबक ने गुलाम वंश की स्थापना की और उसका शासन पूरे उत्तर भारत तक फैला। इसके बाद, खिलजी वंश ने सत्ता संभाली और मध्य भारत तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया, लेकिन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को एकीकृत करने में असफल रहा। हालांकि, इस काल में इस्लामिक स्थापत्य कला का काफी विकास हुआ।

दिल्ली सल्तनत के शासनकाल में एक विशेषता यह भी थी कि मुस्लिम इतिहास में यह उन कुछ साम्राज्यों में से एक था, जहां एक महिला शासक ने शासन किया। रज़िया सुल्तान जो की दिल्ली सल्तनत की पहली और आखरी शासक थी ने अपने साहस और कुशल प्रशासन से सत्ता संभाली, लेकिन उनका शासन लंबे समय तक नहीं टिक सका। अंततः 1526 में मुगल साम्राज्य की स्थापना के साथ ही दिल्ली सल्तनत का पतन हो गया और भारत में एक नए युग की शुरुआत हुई।

भारत में इस्लामी शासन की नींव

962 ईस्वी से दक्षिण एशिया के हिंदू और बौद्ध साम्राज्यों पर फारस और मध्य एशिया से आने वाली सेनाओं ने लगातार आक्रमण शुरू कर दिए। इन हमलों में सबसे महत्वपूर्ण महमूद गज़नवी था, जिसने 997 से 1030 ईस्वी के बीच भारत पर 17 बार आक्रमण किया। उसने सिंधु और यमुना नदियों के बीच स्थित समृद्ध राज्यों को लूटा, लेकिन वह भारत में कोई स्थायी इस्लामिक शासन स्थापित नहीं कर सका और उसका साम्राज्य केवल पश्चिमी पंजाब तक ही सीमित रहा।


इसके बाद गोर वंश के सुल्तान मोहम्मद गोरी ने योजनाबद्ध तरीके से उत्तर भारत पर आक्रमण शुरू किए। वह इस्लामिक शासन को विस्तार देने के उद्देश्य से भारत आया था और उसने अपने साम्राज्य को सिंधु नदी के पूर्व तक बढ़ाया। इतिहास के कुछ ग्रंथों में सल्तनत काल को 1192 से 1526 ईस्वी (334 वर्ष) तक माना गया है।

1206 ईस्वी में मोहम्मद गोरी की हत्या हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसके एक तुर्क गुलाम, कुतुबुद्दीन ऐबक, ने सत्ता संभाली और दिल्ली का पहला सुल्तान बना, जिससे दिल्ली सल्तनत की नींव रखी गई।

इस लेख के माध्यम से हम दिल्ली पर शासन करने वाले शासकों का विस्तृत वर्णन करेंगे।

दिल्ली सल्तनत पर राज करने वाले शासकों का संक्षिप्त इतिहास

ममलूक या गुलाम वंश (Mamluk or Gulam Dynasty) : 1206 - 1290


गुलाम वंश, जिसे ममलूक वंश भी कहा जाता है ने 1206 से 1290 तक दिल्ली पर शासन किया। दिल्ली सल्तनत का पहला वंश था, जिसकी स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक(Qutb-ud-din Aibak) ने 1206 ईस्वी में की थी। इस वंश का नाम गुलाम इसलिए पड़ा क्योंकि दिल्ली सल्तनत की नींव रखने वाला कुतुबुद्दीन ऐबक मूल रूप से गुलाम था। ऐबक ने 1206 से 1210 लगभग चार वर्षों तक दिल्ली के सुल्तान रहे। ऐबक ने वर्त्तमान पाकिस्तान में स्तिथ लाहौर को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने अपने शासनकाल में कुतुब मीनार और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद निर्माण जैसे महत्वपूर्ण निर्माण कार्य शुरू किये। 1210 में पोलो खेलते समय घोड़े से गिरकर उनकी मृत्यु हो गई ।

उनकी मृत्यु के बाद, आरामशाह(Aram Shah) ने सत्ता संभाली और 1210-1211 तक शासन किया।लेकिन वह कमजोर शासक था। इसीलिए उनका शासन अधिक समय तक नहीं टिक सका। 1211 ईस्वी में इल्तुतमिश(Iltutmish) ने आरामशाह की हत्या कर दी और दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में ले ली। इसके साथ ही गुलाम वंश का सशक्त शासन शुरू हुआ, जिसने दिल्ली सल्तनत की नींव को और मजबूत किया। इल्तुतमिश 1211 से 1236 तक दिल्ली के बादशाह थे ।वे गुलाम वंश के सबसे प्रभावशाली शासक थे। उन्होंने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जिनमे सबसे प्रमुख लाहौर को बदलकर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाना था ।

1236 में इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई और उदय हुआ भारत की पहली और आखरी महिला शासिका का । रज़िया सुल्तान(Razia Sultan) जो इल्तुतमिश बड़ी बेटी थी ने 1236 तक 1240 तक दिल्ली पर शासन किया ।वह उस दौर की एकमात्र महिला शासक थी ।उन्होंने प्रशासन में दक्षता दिखाई उनका शासनकल महज़ 4 वर्षों में समाप्त हो गया ।और 1240 में रजिया की हत्या के साथ गयासुद्दीन बलबन(Ghiyasuddin Balban) दिल्ली का नया शासक बना ।गयासुद्दीन बलबन ने 1266 से 1287 तक दिल्ली पर शासन किया और इस दौरान उसने कई कठोर कानून लागू किए। गयासुद्दीन बलबन के शासनकाल में ही सुल्तान की दिव्य सत्ता (नियम और अनुशासन - सिजदा और पैबोस) की परंपरा की शुरुवात हुई ।1287 में उसकी मृत्यु हो गई।

गयासुद्दीन बलबन की मृत्यु के बाद, उसके उत्तराधिकारी के रूप में कैकूबाद(Kayqubad) ने 1287 में दिल्ली सल्तनत की गद्दी संभाली। हालांकि, कैकूबाद शासन में एक कमजोर शासक साबित हुआ, और उसकी सत्ता में कोई ठोस स्थिरता नहीं थी। उसके शासन के दौरान, उसने जलाल-उद-दीन फिरोज शाह खिलजी(Jalal-ud-Din Firuz Shah Khalji )को अपना सेनापति नियुक्त किया। कैकूबाद के कमजोर शासन का फायदा उठाकर, फिरोज शाह खिलजी ने कैकूबाद की हत्या कर दी । गुलाम वंश का अंतिम शासक क्यूमर्स (1290 ई.) था जो ज्यादा समय तक सत्ता में नहीं रहा था और इसतरह भारत में तुर्की वंश की नीव रखने वाले गुलाम वंश के अंत के साथ 1290 में खिलजी वंश की स्थापना हुई ।

खिलजी वंश (Khilji Dynasty) : 1290 -1320


1290 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने गुलाम वंश के अंतिम शासक शम्सुद्दीन कैमुर्स(Shams-ud-Din Kayumars) की हत्या कर दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया। जलालुद्दीन, जो मूल रूप से अफगान-तुर्क जाति से था, ने इस हत्या के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठकर खिलजी वंश की नींव रखी। खिलजी वंश की नींव रखने वाले पहले शासक जलाल-उद-दीन खिलजी थे, और उन्होंने 1290 से 1296 तक शासन किया। वह 6 वर्षों तक दिल्ली का सुल्तान रहा । हालांकि जलाल-उद-दीन का शासन अल्पकालिक था और उन्हें अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी द्वारा मृत्यु के घाट उतार दिया गया।

इसके बाद, अलाउद्दीन खिलजी(Alauddin Khilji) ने दिल्ली के सुल्तान का पद संभाला और वंश का वास्तविक उत्थान किया।अलाउद्दीन खिलजी, जो कि खिलजी वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक थे, ने 1296 से 1316 तक शासन किया। उनका शासन दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैन्य अभियान की शुरुआत कारा जागीर के सूबेदार के रूप में की। उसने 1292 में मालवा और 1294 में देवगिरी पर आक्रमण किया और भारी लूटपाट की। सत्ता प्राप्त करने के बाद, उसने दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया और गुजरात, मालवा, रणथंभौर और चित्तौड़ को अपने अधीन कर लिया।हालांकि, उसकी इस सफलता के बीच मंगोलों ने उत्तर-पश्चिमी सीमा पर हमले शुरू कर दिए। उन्होंने दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में लूटपाट की, लेकिन कुछ समय बाद वे हमले बंद कर वापस लौट गए। मंगोलों से मिली राहत के बाद, अलाउद्दीन ने मलिक काफूर और खुसरों खान की मदद से दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य फैलाने का अभियान फिर से शुरू किया।अलाउद्दीन के सेनापतियों ने दक्षिण भारत में कई सफल आक्रमण किए और भारी मात्रा में धन-संपत्ति लूटकर दिल्ली लाए। इसी दौरान, वारंगल की लूट में उसे प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा मिला अलाउद्दीन अपनी क्रूरता के लिए भी प्रसिद्ध था। इतिहासकारों ने उसे तानाशाह तक कहा है । 1298 में, अलाउद्दीन के शासन के डर से दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में लगभग 15,000 से 30,000 लोग एक ही दिन में इस्लाम धर्म को स्वीकार कर चुके थे। उसका शासन भय और आतंक से भरा हुआ था ।

1316 ईस्वी में, अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद, उसके सेनापति मलिक काफूर(Malik Kafur) ने सत्ता हथियाने का प्रयास किया। मलिक काफूर एक हिंदू परिवार में जन्मा था लेकिन बाद में उसने इस्लाम अपना लिया था। हालांकि उसे अफगान और फारसी अमीरों का समर्थन नहीं मिला और जल्द ही उसकी हत्या कर दी गई। इसके बाद अलाउद्दीन का 18 वर्षीय पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारक शाह(Qutb-ud-Din Mubarak Shah) गद्दी पर बैठा। उसने चार वर्षों तक शासन किया, लेकिन खुसरों शाह(Khusrau Shah )ने उसकी हत्या कर दी और सत्ता हथिया ली। हालांकि, खुसरों शाह भी ज्यादा समय तक शासन नहीं कर सका।1320 ईस्वी में, गाजी मलिक (जो बाद में गयासुद्दीन तुगलक कहलाया) ने खुसरों शाह की हत्या कर दी और दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कर लिया। इस तरह, खिलजी वंश का अंत हुआ और तुगलक वंश की शुरुआत हुई।

तुग़लक़ वंश (Tughlaq Dynasty) : 1320-1414


तुग़लक़ वंश दिल्ली सल्तनत का तीसरा शासक वंश था, जिसने 1320 से 1414 ईस्वी तक शासन किया। इस वंश की स्थापना गयासुद्दीन तुग़लक़(Ghiyasuddin Tughlaq) ने की थी, जो मूल रूप से एक तुर्क-मंगोल या अफगान वंश का था। गयासुद्दीन तुग़लक़ ने 1320 ईस्वी में खुसरो शाह की हत्या कर खिलजी वंश का अंत किया और तुग़लक़ वंश की स्थापना की। गयासुद्दीन तुग़लक़ ने 1320 ने 1325 ईस्वी तक लगभग पांच वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया और अपने शासनकाल में दिल्ली के समीप एक नया नगर तुगलकाबाद बसाया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार 1325 में उसके पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक के एक षड्यंत्र के तहत उसकी आकस्मिक मृत्यु हो गई।1325 ईस्वी में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद, उसका पुत्र जूना खान(Juna Khan) दिल्ली की गद्दी पर बैठा जिसे बाद में मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से जाना गया ।

मुहम्मद बिन तुगलक ने 1325 से 1351 तक लगभग 26 वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया।इस दौरान उसने कई असफल निर्णय लिए।उसने राजधानी दिल्ली से दौलताबाद (देवगिरी, महाराष्ट्र) स्थानांतरित कर दी। इस दौरान हजारों लोगों को दिल्ली से दौलताबाद जबरन स्थानांतरित किया गया, जिससे लोग भारी कष्ट में पड़े। मुहम्मद बिन तुगलक ने चांदी और सोने के सिक्कों की जगह तांबे और पीतल के सिक्के जारी किए, जिन्हें चांदी के बराबर मूल्य दिया गया। इस निर्णय का व्यापक दुरुपयोग हुआ, और लोगों ने नकली सिक्के ढालकर बाजार में चला दिए।उसके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत का सबसे बड़ा भौगोलिक विस्तार हुआ। उसके शासनकाल में लगभग संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप सल्तनत के अधीन आ गया, लेकिन उसकी असफल नीतियों के कारण यह स्थायी नहीं रह सका। अंततः 1351 ईस्वी में सिंध अभियान के दौरान मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हो गई।

मोहम्मद बिन तुग़लक़ की असफलताओं के बाद 1351 ईस्वी में फिरोज शाह तुग़लक़(Firoz Shah Tughlaq )ने उत्तराधिकारी के तौर पर ने दिल्ली की सत्ता संभाली और जनता को राहत देने के प्रयास किए। दिल्ली सल्तनत की पकड़ मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में कमजोर हो गई थी, जिससे कई प्रांत स्वतंत्र हो गए थे। फिरोज शाह तुगलक ने 1359 ईस्वी में बंगाल पर हमला किया और 11 महीने तक युद्ध किया, लेकिन फिर भी बंगाल को पूरी तरह से दिल्ली सल्तनत में शामिल नहीं कर सका। उसने 37 वर्षों (1351-1388) तक शासन किया। फिरोज शाह तुग़लक़ 37 वर्षों के अपने शासनकाल में करों को कम किया और किसानों को राहत दी। फिरोजाबाद और जौनपुर जैसे कई नए नगर बसाए, कुआँ, नहरें और सराय बनवाए, संस्कृत और फारसी भाषा को बढ़ावा दिया, कई विद्यालय और मदरसे स्थापित किये जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य किये। फिरोज शाह ने राजनीतिक विद्रोहों को दबाने के बजाय शांति स्थापित करने की नीति अपनाई, जिससे सल्तनत धीरे-धीरे कमजोर होने लगी। उसकी मृत्यु के बाद तुग़लक़ वंश पूरी तरह से कमजोर हो गया।

फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु के बाद तुगलक वंश में उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू हुआ। कमजोर शासकों और आंतरिक कलह के कारण सल्तनत तेजी से गिरावट की ओर बढ़ने लगी। इस अवधि में महमूद तुगलक और नुसरत शाह(Mahmood Tughlaq and Nusrat Shah )ने स्वयं को दिल्ली सल्तनत का सुल्तान घोषित किया और 1394 से 1397 तक अलग-अलग क्षेत्रों से शासन किया। महमूद तुगलक जो फिरोज शाह तुगलक का बड़ा पुत्र था, ने दिल्ली से शासन किया। तो वही नुसरत शाह जो फिरोज शाह तुगलक का ही रिश्तेदार था ने फिरोजाबाद (वर्तमान दिल्ली का एक क्षेत्र) से शासन किया। यह दोनों ही कमजोर शासक साबित हुए इस बिच 1398 ईस्वी में मुगल आक्रमणकारी तैमूर ने दिल्ली पर आक्रमण कर भयंकर लूटपाट मचाई। तैमूर के आक्रमण के बाद पूरे उत्तर भारत में अराजकता फैल गई जिससे तुग़लक़ वंश पूरी तरह कमजोर हो गया। नासिरुद्दीन महमूद शाह(Nasiruddin Mahmud Shah -1395-1413) तुग़लक़ वंश का अंतिम शासक साबित हुआ और अंततः 1414 ईस्वी में तुगलक वंश का अंत हो गया और सैयद वंश ने दिल्ली की सत्ता संभाली।

सैयद वंश(Sayyid Dynasty) : 1414 - 1451


सैयद वंश दिल्ली सल्तनत का चौथा राजवंश था, जिसने 1414 से 1451 तक शासन किया। यह एक तुर्क राजवंश था, लेकिन इसकी सत्ता कमजोर और सीमित थी। तैमूर लंग(Taimur Lang) के आक्रमण (1398) और लूटपाट के बाद दिल्ली सल्तनत पूरी तरह से कमजोर हो चुकी थी। दिल्ली के आसपास के इलाकों में अराजकता फैल गई थी, और इस अवधि के शासन के बारे में बहुत कम ऐतिहासिक विवरण उपलब्ध हैं।

खिज्र खान(Khizr Khan), सैयद वंश का पहला शासक था। खिज्र खान ने 1414 से 1421 तक दिल्ली पर शासन किया।उसने खुद को तैमूर का प्रतिनिधि (नायब) घोषित कर दिल्ली की सत्ता पर अधिकार कर लिया। उसने मलवा, गुजरात और पंजाब के विद्रोही क्षेत्रों पर नियंत्रण पाने का प्रयास किया, लेकिन कोई बड़ी सफलता नहीं मिली।

खिज्र खान के बाद मुबारक शाह (1421-1434) ने दिल्ली पर शासन किया। मुबारक शाह(Mubarak Shah), खिज्र खान का उत्तराधिकारी था, जिसने 1421 से 1434 तक शासन किया। उसने पंजाब और अन्य अलग हो चुके क्षेत्रों को फिर से जीतने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा। उसके शासनकाल में सैयद वंश की स्थिति और कमजोर हो गई, क्योंकि सल्तनत के कई क्षेत्रों में स्वतंत्रता की लहर बढ़ गई थी।

1434 में, मुबारक शाह की हत्या कर दी गई, जिससे सल्तनत और भी अधिक अस्थिर हो गई। सैयद वंश के अंतिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह (Alauddin Alam Shah 1445-1451) ने अपनी सत्ता खो दी और वह पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया। 1451 में बहलुल लोदी ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया, जिससे सैयद वंश का अंत हो गया और लोदी वंश की स्थापना हुई।

लोदी वंश(Lodi Dynasty) : 1451 – 1526


लोदी वंश दिल्ली सल्तनत का पांचवां और अंतिम वंश था, जिसने 1451 से 1526 तक शासन किया। यह वंश अफगान पश्तून जनजाति से संबंधित था और दिल्ली पर शासन करने वाला पहला अफगान वंश था। 1451 में बहलोल लोदी(Bahlul Lodi) ने कमजोर सैयद वंश को हटाकर लोदी वंश की स्थापना की। वह दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला पहला अफगान शासक था। बहलोल लोदी ने 1451 से 1489 तक शासन किया। बहलोल लोदी ने अपने शासनकाल में सल्तनत के प्रभाव को फिर से बढ़ाने के लिए जौनपुर सल्तनत पर आक्रमण किया और संधि के माध्यम से इसका कुछ भाग वापस दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। उसके शासनकाल में दिल्ली से वाराणसी (बंगाल की सीमा) तक का क्षेत्र दोबारा सल्तनत के अधीन आ गया। 1489 में उसकी मृत्यु हुई और उसके पुत्र निजाम खान (सिकंदर लोदी) ने दिल्ली की सत्ता संभाली।

निजाम खान ने सिकंदर लोदी(Sikandar Lodi) की उपाधि धारण की और 1489 से 1517 तक शासन किया। सिकंदर लोदी वंश का सबसे सक्षम और प्रभावशाली शासक था, जिसने दिल्ली सल्तनत को फिर से संगठित करने का प्रयास किया। सिकंदर लोदी ने बिहार पर अधिकार करने की कोशिश की, लेकिन बिहार के गवर्नरों ने केवल कर चुकाने पर सहमति जताई और स्वतंत्र रूप से शासन किया। उसने मथुरा और अन्य हिन्दू तीर्थस्थलों के मंदिरों को ध्वस्त करने का अभियान चलाया। उसने अपनी राजधानी को दिल्ली से आगरा स्थानांतरित किया। सिकंदर लोदी की 1517 में प्राकृतिक मृत्यु हुई, और उसके बाद उसका दूसरा पुत्र इब्राहिम लोदी दिल्ली का शासक बना।

इब्राहिम लोदी(Ibrahim Lodi) ने 1517 से 1526 तक शासन किया।उसने अपने बड़े भाई जलाल खान की हत्या कर दी, जिसे उसके पिता ने जौनपुर का शासक बनाया था। इस कारण अफगान और फारसी अमीरों तथा प्रांतीय गवर्नरों का समर्थन इब्राहिम को नहीं मिला। इब्राहिम लोदी एक निरंकुश और क्रूर शासक था, जिसने अपने दरबार के प्रमुख अमीरों को अपमानित और प्रताड़ित किया, जिससे उसके शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गए। पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी और काबुल के निर्वासित शासक मुगल बाबर के बीच संधि हुई, जिसके तहत दौलत खान ने बाबर को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। 1526 में, पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया और उसकी हत्या कर दी। इब्राहिम लोदी की मृत्यु के साथ दिल्ली सल्तनत समाप्त हो गई और मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।

Tags:    

Similar News