Karnataka Dharwad Pedha: कर्नाटक और उत्तर प्रदेश को जोड़ता है धारवाड़ का पेड़ा, लाजवाब है इसका स्वाद

Karnataka Dharwad Pedha History: पेड़ा एक बहुत ही स्वादिष्ट मिठाई है और जब भी इसका नाम आता है तो लोगों को मथुरा वृंदावन और बरसाने में मिलने वाली मिठाई का स्वाद याद आ जाता है।

Update:2024-06-19 17:30 IST

History of Dharwad Pedha (Photos - Social Media)

Karnataka Dharwad Pedha History: भारत के कर्नाटक राज्य की एक अनूठी भारतीय मिठाई है। इसका नाम कर्नाटक के धारवाड़ शहर से लिया गया है। इस मिठाई का इतिहास करीब 175 साल पुराना है. धारवाड़ पेड़ा को भौगोलिक संकेत टैग दिया गया है।अगर कोई स्वादिष्ट मिठाई पेड़ा का नाम लेता है तो सबसे पहले लोगों को मथुरा वृंदावन की याद आती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां मिलने वाले पेड़े दुनिया भर में प्रसिद्ध है और इनका स्वाद बहुत ही निराला होता है। उत्तर भारत के लोग भले ही इन पेड़ों को अपना मानते हैं लेकिन दक्षिण भारत में भी यह स्वादिष्ट स्वाद लेने को मिल सकता है। आज हम आपको कर्नाटक के मशहूर धरवाड़ पेड़े के बारे में बताते हैं। कर्नाटक के कई सारे शहरों में आपको धरवाड़ पेड़े बेचने वाले आउटलेट मिल जाएंगे जहां आप बेहतरीन स्वाद का आनंद ले सकती हैं। पहले यहां के लाइन बाजार क्षेत्र में यह मिला करते थे जहां पर लोगों की लंबी लाइन लगा करती थी। इसे अब GI टैग भी दिया जा चुका है।

इनका यूपी से है कनेक्शन 

धारवाड़ पेड़े को लेकर कई तरह की बातें प्रचलित है। ऐसा ही एक किस्सा बताता है कि धारवाड़ के पास एक गांव हेब्बल्ली के जहांगीरदार (जमींदार) 1895 में वाराणसी (उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर) से अयोध्या प्रसाद मिश्रा वापस घर लाए थे। वह घोड़े की खरीदी के लिएअक्सर उत्तर प्रदेश आते थे और इस तरह से घोड़े के साथ पेड़े भी यहां पहुंच गए।

उत्तर भारत से अलग है स्वाद 

100 साल से भी पुराना यह पेड़ा स्वादिष्ट खोए, चीनी और शुद्ध घी से तैयार किया जाता है। धारवाड़ के स्थानीय क्षेत्र से खरीदे गए दूध से यहां मावा तैयार किया जाता है। दूध और चीनी इसकी मुख्य सामग्री है और इन्हें तब तक पकाया जाता है जब तक वह भूरे नहीं हो जाते। इसके बाद इसे सफेद चीनी के पाउडर में लपेटा जाता है। 1913 से श्री राम रतन ठाकुर के वंशज यहां पर अपना योगदान देते आ रहे हैं। परिवार लगातार अपनी समृद्धि संस्कृति को आगे बढ़ने का काम कर रहा है। 

 

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