Khatu Shyam Ji का शीश इस कुंड में था विलुप्त, वर्तमान में डुबकी लगाने से मिलता है रोगों से निजात
Khatu Shyam Ji Kund: खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि निकट ही स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है। लेकिन आपको पता है कि सीकर में स्थापित होने से पहले खाटू श्याम जी का शीश कहा था.?
Khatu Shyam Ji Kahani: खाटूश्यामजी जयपुर से करीब 80 किमी दूर सीकर जिले में स्थित खाटूश्यामजी का बहुत ही प्राचीन मंदिर स्थित है। यहाँ भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की पूजा श्याम के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि कलयुग में उसकी पूजा श्याम (कृष्ण स्वरूप) के नाम से होगी। खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि निकट ही स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है। लेकिन आपको पता है कि सीकर में स्थापित होने से पहले खाटू श्याम जी का शीश कहा था.?
यहां पर छिपा था खाटू श्याम का शीश
इस आर्टिकल में हम आपको खाटू श्याम जी के शीश के विलुप्त होने की कहानी बताते है। खाटू श्याम जी के मंदिर के निकट भगवान के शीश जहां मिले थे वो कुंड भी स्थित है। ऐसा माना जाता है कि कुरूक्षेत्र की लड़ाई के कुछ साल बाद सिर को इसी पवित्र कुंड से बरामद किया गया था। बर्बरीक के शीश को महाभारत के युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने रूपवती नदी में बहा दिया था। बाद में शीश बहकर श्यामकुंड में आया था। कई शास्त्रों में शीश को रूपवती नदी में प्रवाहित करने की बात लिखी है। वह नदी तो अब नहीं बची लेकिन स्थानीय लोगों ने यहां पर एक कुंड बन दिया, जो वर्तमान खाटू श्यामजी मंदिर के पास स्थित है। इस तालाब में डुबकी लगाने से व्यक्ति सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है। अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करता है। इस प्रकार, फाल्गुन के महीने में आयोजित मेले के दौरान, तीर्थयात्री विभिन्न स्थानों से तालाब में आते हैं। अपने सांसारिक पापों को धोने के लिए डुबकी लगाते है।
खाटू श्याम के है कई नाम
बर्बरीक को आज हम खाटू के श्याम, कलयुग के अवतार, श्याम सरकार, तीन बाणधारी, शीश के दानी, खाटू नरेश व अन्य अनगिनत नामों से जानते व मानते हैं। कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है। खाटूनगर तुम्हारा धाम बनेगा और उनका शीश खाटूनगर में दफ़नाया गया।
ऐसे दिया था बर्बरीक ने अपने शीश का दान
एक ब्राह्मण ने बालक बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि, अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा। कृष्ण ने उनसे शीश का दान माँगा। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तविक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और कृष्ण के बारे में सुन कर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, कृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया। उन्होंने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिये एक वीर्यवीर क्षत्रिय के शीश के दान की आवश्यकता होती है, उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतैव उनका शीश दान में माँगा। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्री कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींच कर सबसे ऊँची जगह पर रख दिया, ताकि वह महाभारत युद्ध देख सके। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया, जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। उसके पश्चात उनका सिर एक कुंड में समाहित हो गया था वह कुंड श्याम कुंड था।