Leh Ladakh Famous Place: लेह लद्दाख में घूमने की खूबसूरत जगह, आइये जाने कैसे पहुँचे

Leh Ladakh Famous Place: प्राकृतिक सुंदरता के साथ प्राचीन बौद्ध मठों के लिए प्रसिद्ध है। अक्सर लद्दाख को लिटिल तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है।

Written By :  Sarojini Sriharsha
Update: 2023-10-26 05:12 GMT

Leh Ladakh Famous Place (photo: social media )

Leh Ladakh Famous Place: समुद्र तल से लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई पर बसा लद्दाख भारत के सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ प्राचीन बौद्ध मठों के लिए प्रसिद्ध है। अक्सर लद्दाख को लिटिल तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है , क्योंकि यह अपना एक अंतरराष्ट्रीय सीमा तिब्बत के साथ साझा करता है।

यहां की ज्यादातर भूमि बंजर है और उच्च वायुमंडलों पर कम वायुमंडलीय दबाव के कारण ऑक्सीजन का स्तर कम होता है।

लद्दाख दो भागों में बटा है लेह और कारगिल। लद्दाख की राजधानी लेह है और यहां से 30 किलोमीटर की दूरी पर चुम्बकीय पहाड़ है, जिसे मैग्नेटिक हिल भी कहा जाता है , पर्यटकों की यह पसंदीदा जगह है। रिवर राफ्टिंग, माउंटेन बाइकिंग, ट्रैकिंग, रॉक क्लाइंबिंग और कई एडवेंचरस गतिविधियों का आंनद लेने के लिए दूर दूर से पर्यटक यहां आते हैं।यहां घूमने के लिए कई आकर्षक जगह हैं जिनमें प्रमुख है-

त्सो मोरीरी झील :

यह झील समुद्र तल से 15000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर उबड़ खाबड़ घाटी के बीच 29 किमी लंबे और 8 किमी चौड़े भाग में स्थित है। यह झील बर्फ से ढके पहाड़ों और सुंदर प्राकृतिक वातावरण से घिरी हुई है। यहां का साफ नीला पानी पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र रहता है।


पैंगोंग झील :

यह दुनिया की सबसे ऊँचे खारे पानी की मशहूर झील है और समुद्र तल से लगभग 4350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अपनी खूबसूरत नीले पानी के आकर्षण से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस झील में खास बात यह है की इसका पानी अलग अलग समय पर नीला, हरा और लाल रंग का दिखाई देता है। तिब्बती शब्द पैंगोंग त्सो जिसका अर्थ है उच्च घास की झील से इसका नाम पैंगोंग पड़ा। सर्दियों में इस झील का पानी पूरी तरह से जम जाने के कारण बर्फ की एक मोटी परत के रूप में बदल जाती है। इससे झील चलती हुई प्रतीत होती है। असल में इस झील की सुंदरता का एहसास इसके समीप जाकर ही हो सकता है।


लेह :

चारों ओर बर्फ से ढंकी पर्वत श्रृंखलाओं और समुद्र तल से लगभग 3524 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ का यह रेगिस्तान लद्दाख की प्राथमिक राजधानी के रूप में जाना जाता है। प्राचीन काल में तिब्बत और मध्य एशिया का व्यापार इसी मार्ग से होता था। आज के समय में यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों की आस्था का केंद्र है। आज के समय में यह तिब्बती शरणार्थियों के रहने की खास जगह है।


ज़ांस्कर घाटी :

बर्फ से ढंकी पहाड़ों की चोटियों से घिरी हुई यह घाटी अपनी प्राकृतिक सुंदरता से पर्यटकों को खींच लाती है। अक्सर गर्मियों में यह घाटी पर्यटकों से भरी रहती है और कई साहसिक गतिविधियां जैसे पैराग्लाइडिंग, ट्रैकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, कैंपिंग आदि के साथ ज़ांस्कर नदी की रिवर राफ्टिंग का सैलानी आनंद लेने से नहीं चूकते। एक तरह से यह स्थान प्रकृति और साहसिक खेल प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान प्रतीत होता है।


लेह पैलेस :

16वीं शताब्दी में बना यह भव्य संरचना राजा सेंगगे नामग्याल का एक शाही महल था। यह पैलेस अपने समय की सबसे ऊँची इमारतों में से एक है, जहां से पूरे शहर के साथ वहां के आसपास के मनोरम दृश्यों को भी सैलानी कैद कर सकते हैं। हालांकि अब यह महल खंडहर में तब्दील हो चुका है।लेकिन पर्यटक इस स्मारक को देखने के लिए यहां जरूर आते हैं।


मैग्नेटिक हिल :

यह स्थान लेह और कारगिल राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है और पर्यटकों के लिए आज भी एक रहस्य बना हुआ है। लोगों का मानना है कि यहां की पहाड़ियों में चुंबकीय गुण हैं। वाहनों के इंजन बंद होने पर भी कोई भी वाहन ऊपर की ओर बढ़ सकता है। इस जादुई अनुभव को महसूस करने की उत्सुकता के कारण अधिकतर पर्यटक इस जगह घूमना पसंद करते हैं।


शांति स्तूप :

समुद्र तल से लगभग 4267 मीटर की ऊंचाई पर बसा , बर्फ से ढकी पहाड़ों से घिरा हुआ यह शांति स्तूप एक सफ़ेद गुंबददार स्तूप है, जो लेह से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । इस स्तूप में एक स्वर्ण बुद्ध की मूर्ति के साथ भगवान बुद्ध के जन्म और मृत्यु के चित्र हैं, जिसमें जापानी बौद्ध कला का मिश्रण है। इस स्तूप का उद्घाटन दलाई लामा ने किया था, जो आज पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस स्तूप तक जाने के लिए सीढ़ियों पर जैसे जैसे आप आगे बढ़ेंगे सामने का एक मनोरम दृश्य आपको लुभाता रहेगा। यह स्तूप आपको वास्तविक शांति का अनुभव कराएगा।


अल्ची मॉनेस्ट्री :

अलची गांव में सिंधु नदी के तट पर स्थित 900 साल पुराना यह एक प्राचीन बौद्ध मठ है। इस मठ में तीन अलग अलग मंदिर हैं, जिसे दुखंग, सुमस्टेक और मंजुश्री मंदिर के नाम से जानते हैं। तिब्बती और हिंदू धर्म के मिश्रण के साथ इस मॉनेस्ट्री को एक विशिष्ट कश्मीरी शैली में बनाया गया है।


ठिकसे मॉनेस्ट्री :

समुद्र तल से लगभग 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मठ को ठिकसे गोम्पा के नाम से भी जाना जाता है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह मॉनेस्ट्री लेह लद्दाख के सबसे खूबसूरत बौद्ध मॉनेस्ट्री में से एक है । इस मॉनेस्ट्री की वास्तुकला के विशिष्ट शैली और धार्मिक महत्व के कारण दुनिया के कोने कोने से लोग यहां आते हैं । 12 मंजिला वाले इस मॉनेस्ट्री में कई स्तूप, मूर्तियाँ और अन्य बौद्ध कलाकृतियों सहित भगवान बुद्ध की 15 मीटर प्रतिमा भी है , जिसे लद्दाख में सबसे बड़ी मूर्ति माना जाता है।


शे मॉनेस्ट्री :

17 वीं शताब्दी में निर्मित यह मॉनेस्ट्री लेह से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी इस मठ में भगवान बुद्ध की तांबे की बनी दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा को देखने आते हैं। इस मठ की दीवार पर हाथ के विभिन्न भावों को चित्रित किया गया है और कई शानदार चित्र, पेंटिंग और सुंदर कलाकृतियां बनी हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।


नुब्रा घाटी :

समुद्र तल से करीब 3048 मीटर की ऊंचाई पर बसा और लेह से लगभग 150 किमी की दूरी पर स्थित नुब्रा घाटी लेह लद्दाख का एक मशहूर पर्यटक स्थल है। इस जगह आप शुष्क पहाड़ों, बहती नदियों, रेत के टीलों और लद्दाख की ऊबड़ खाबड़ विशालता के शानदार दृश्य एक जगह देख सकते हैं । काराकोरम पर्वत श्रृंखला के अद्भुत दृश्यों के अलावा, सियाचिन और श्याक नदियों का सुंदर दृश्य भी पर्यटकों को एक अलग एहसास कराता है। नुब्रा घाटी में कई सुंदर गॉंव और मॉनेस्ट्री हैं, जहां आप घूम सकते हैं। यहां लोगों के आकर्षण का केंद्र दोहरे कूब वाले मंगोल नस्ल के ऊंट होते हैं, जो भारत में केवल लद्दाख की नुब्रा घाटी में ही देखने को मिलते हैं, अन्यंत्र कहीं नहीं। इन ऊंटों को देखे बगैर नुबरा घाटी की यात्रा पर्यटकों के लिए अधूरी सी ही रहती है । इन्हें देखकर सैलानी रोमांचित एहसास करते हैं और एक बार उसपर बैठ कर फोटो लेना नहीं भूलते ।


दिस्कित मॉनेस्ट्री :

यह मोनेस्ट्री नुब्रा घाटी में स्थित है और लद्दाख के सबसे खूबसूरत और सबसे पुराने बौद्ध मठों में से एक है। यह मॉनेस्ट्री एक पहाड़ की ढलान के साथ बसा हुआ है ।14वीं शताब्दी में चांगज़ेम त्सेरा ज़ंगपो द्वारा स्थापित इस मठ में मैत्रेय बुद्ध की प्रतिमा और कई बुद्ध प्रतिमाओं के साथ अन्य संरक्षक देवताओं की छवियां हैं। पर्यटक इस मठ में बौद्ध धर्म के विभिन्न देवताओं के खूबसूरत चित्र और वास्तुकला देखने के लिए जाते हैं।


हेमिस राष्ट्रीय उद्यान:

लद्दाख की सुंदर घाटियों में बसा यह उद्यान 4400 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान भी है। हेमिस नेशनल पार्क भारत में हिम तेंदुओं के लिए मशहूर है, इसके अलावा इस उद्यान में एशियाई आइबेक्स, तिब्बती भेड़िया, यूरेशियन भूरा भालू और लाल लोमड़ी भी पर्यटक देख सकते हैं।


हेमिस मॉनेस्ट्री :

इस मठ का निर्माण 1672 ई. में लद्दाखी राजा सिंगगे नामग्याल के शासन काल में हुआ था। यह लेह से करीब 40 किमी की दूरी पर स्थित है। इस मॉनेस्ट्री के चारों ओर आप हवा में लहराते प्रार्थना झंडे, सुंदर वास्तुकला, महात्मा बुद्ध के चित्र, भित्ति चित्र देख सकते हैं। लद्दाख का यह सबसे बड़ा और लोकप्रिय मॉनेस्ट्री है।हर साल यहां जुलाई के महीने में हेमिस उत्सव मनाया जाता है, जिसमें पर्यटक यहां के संगीत और नृत्य का आनंद ले सकते हैं । साथ ही यहां के स्थानीय व्यंजनों का लुत्फ भी उठा सकते हैं।


गुरुद्वारा पत्थर साहिब :

यह गुरुद्वारा लेह से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर लेह श्रीनगर मार्ग पर स्थित है। इसका निर्माण 1517 में गुरु नानक देव की लद्दाख यात्रा के दौरान किया गया था।इसका मुख्य आकर्षण यहां बने गुरु नानक देव की छवि और चट्टान पर एक राक्षस के पदचिह्न हैं। ऐसी कहावत है की एक राक्षस यहां के लोगों को बहुत परेशान किया करता था। जब गुरु नानक जी इस जगह की यात्रा पर थे तब उस राक्षस ने उनके ऊपर पत्थरों से हमला किया था, लेकिन जब गुरु नानक जी ने उस पत्थर को छुआ तो वह पत्थर पिघल गया। यह गुरुद्वारा हिमालय की चोटियों के बीच स्थित है और सबसे ऊंचे सिख तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।

कारगिल :

लेह के बाद सुरू नदी के किनारे बसा कारगिल लद्दाख का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह जगह लेह से करीब 220 किमी और श्रीनगर से 210 किमी दूर लेह श्रीनगर मार्ग पर स्थित है। दुनिया में इसकी पहचान 1999 में भारत और पाक युद्ध के बाद बनी। कारगिल युद्ध स्मारक है जिसे द्रास युद्ध स्मारक के रूप में भी जाना जाता है, पर्यटकों के लिए यहां का खास आकर्षण केंद्र है। यह स्मारक उन वीर सेना के जवानों को समर्पित है जो अपने देशवासियों की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर शहीद हो गए। इसके अलावा यहां सैलानी ट्रेकिंग और पर्वतारोहण का भी आनंद ले सकते हैं।

खारदुंगला दर्रा :

समुद्र तल से लगभग 18000 फीट की ऊंचाई और लेह से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित, काराकोरम श्रेणी का यह सबसे ऊंचा पर्वतीय दर्रा है। यह दर्रा नुब्रा घाटी के प्रवेश द्वार की तरह है। यहां बनी सड़क दुनिया की कुछ सबसे ऊंची सड़कों और भारत की सबसे ऊंची सड़कों में से एक है।

कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से लेह पहुंचने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा लेह में स्थित है। यह हवाई अड्डा देश के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, जम्मू, श्रीनगर , चंडीगढ़ आदि से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहाँ पहंच कर टैक्सी के जरिए आप शहर घूमने का प्लान बना सकते हैं।

रेल मार्ग द्वारा लद्दाख पहुंचने के लिए यहां से करीब 668 किमी दूर निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू तबी है। यह रेलवे स्टेशन दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और देश के कुछ प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यहाँ पहंचने के बाद टैक्सी या बस से लद्दाख पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग से लद्दाख पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं। एक करीब 494 किमी , हिमाचल प्रदेश में मनाली के रास्ते तो दूसरा करीब 434 किमी दूर श्रीनगर से । लद्दाख पहुंचने के लिए टैक्सी या जम्मू की बसों की सहायता ले सकते हैं।

लेह लद्दाख के अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण पर्यटकों को ऑक्सीजन की कमी का एहसास हो सकता है, इसलिए कुछ आवश्यक दवाएं अपने साथ अवश्य ले जाएं। यहां खुद से गाड़ी चलाने में थोड़ी सावधानी बरतें।

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)

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