La Martiniere Girls College History: बेगम के नाम पर तैयार की गई इमारत, आज दुनिया में बेहतरीन गर्ल्स कॉलेज के नाम पर है मशहूर
Lucknow La Martiniere Girls College History: आज हम आपको लखनऊ की एक ऐसी ईमारत के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका नाम एक बेगम के नाम पर रखा गया था वहीँ आज के यहाँ के टॉप गर्ल्स कॉलेज है।;
La Martiniere Girls College History: लखनऊ का गौरवशाली अतीत पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक स्थलों से समृद्ध है। जो एक लंबे समय से विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले आगंतुकों एवं पर्यटकों को आकर्षित करने का सबब बनते हैं। शहर के स्थापत्य परिदृश्य में शानदार इमारतें हैं जो नवाबों के ठाठ बाठ का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। इस कड़ी में नादिर शाह द्वारा दिल्ली की लूटपाट, सिखों, मराठों और रोहिल्लाओं के आक्रमण और 1803 में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा दिल्ली पर कब्जे के कारण मुगल सत्ता का पतन हुआ, जिसके कारण प्रांतीय गवर्नरों का उदय हुआ। इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि अवध के शासकों, विशेष रूप से नवाबों ने वास्तुकला के प्रयासों के लिए काफी संसाधन और ऊर्जा समर्पित की है। इन नवाबों ने अपने शाही खजाने से राजधानी लखनऊ को राजसी संरचनाओं से अलंकृत किया, जो समय की कसौटी पर खरी उतरीं और जिनमें से आज भी कई इमारतें मौजूद हैं। एक सदी के अंतराल में, शहर वास्तुकला की भव्यता के खजाने में तब्दील हो गया, जिसमें कई महल, स्मारक प्रवेश द्वार, मस्जिदें, इमामबाड़े, कर्बला और अन्य प्रभावशाली स्मारक सम्मिलित हैं। जिसके पीछे नवाब आसफ-उद-दौला (1775-1797) और नवाब सआदत अली खान (1798-1814) का नाम विपुल निर्माता के तौर पर आता है, जिन्होंने धार्मिक वास्तुकला के संरक्षण में अपने पूर्ववर्तियों को पीछे छोड़ दिया, जिसके परिणामस्वरूप शहर के भीतर सौ से अधिक स्मारकों का निर्माण हुआ, जिनमें से अधिकांश अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में हैं। आसफ-उद-दौला के शासनकाल ने लखनऊ और अवध की कलात्मक भव्यता के शिखर को चिह्नित किया।अवध के नवाबों ने लखनऊ शहर को उत्कृष्ट वास्तुकला से समृद्ध कर दिया। शहर का शायद ही कोई ऐसा स्थान शेष बचा हो जो नवाबी वास्तुकला और कलात्मकता के प्रतीक चिन्हों से वंचित हो। उनके द्वारा विशिष्ट रूप से निर्मित अनेक स्मारकों और इमारतों में,खुर्शीद मंजिल का भी नाम शामिल है। जो आज लामार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज के नाम से जानी जाती है। आइए जानते हैं लखनऊ में मौजूद खुर्शीद मंजिल से जुड़े इतिहास के बारे में -
मुगल और यूरोपीय फैशन का अनोखा मिश्रण शैली
अवध के नवाबों ने लखनऊ शहर को उत्कृष्ट वास्तुकला से समृद्ध कर दिया। शहर के चप्पे चप्पे में नवाबी वास्तुकला और कलात्मकता के उदाहरण नज़र आते हैं। उनके द्वारा विशिष्ट रूप से निर्मित अनेक स्मारकों और इमारतों में,खुर्शीद मंजिल को चूना , लखौरी और बेल से बनाया गया है। इस शहर में अनगिनत प्राचीन इमारतें इसी सामग्री से बनाई गई थीं, ताकि सभी एक समान बनावट के साथ नजर आएं। यहां कुछ इमारतों को मुगल शैली में इंडो-सरसेनिक शैली में डिजाइन किया गया है, वहीं कुछ यूरोपीय शैली में ढली हुई हैं। उस समय यह दोनों ही शैलियां बेहद लोकप्रिय मानी जाती थीं।
खुर्शीद मंजिल की आंतरिक संरचना
खुर्शीद मंजिल एक दो मंजिला इमारत है जिसमें एक बड़ा केंद्रीय गुंबद और आठ बहुत ही विशिष्ट अष्टकोणीय टावर हैं, जो इमारत की ऊंचाई के बारबर बने हैं। खुर्शीद मंजिल का डिजाइन और निर्माण 1911 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम कर रहे कैप्टन डंकन मैक लेओड द्वारा किया गया था। उनकी सेवाओं को नवाब ने अपने भवनों की मरम्मत और निर्माण की देखरेख के लिए नियोजित किया था। इस इमारत की डिजाइन तैयार करने में हेक्सागोनल टावर्स, बैटलमेंट, खंदक और ड्रॉब्रिज जैसी कुछ विशेषताएं फ्रांसीसी उद्यमी, मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन की इमारतों से ली गई थीं।
अवध प्रांत के छठे शासक ने अपनी पत्नी खुर्शीद के लिए डाली थी इस इमारत की बुनियाद
लखनऊ में मौजूद खुर्शीद मंजिल के निर्माण के पीछे एक बड़ी रोचक कहानी छिपी हुई है। इस इमारत का निर्माण नवाब सआदत अली खान, जो अवध प्रांत के छठे शासक थे, अपनी खूबसूरत बेगम खुर्शीद ज़ादी के लिए करवाया गया था। जिसे नवाब एक सुंदर महल बनाना चाहते थे। लेकिन नवाब का यह ख्वाब अधूरा ही रह गया। नवाब की बेगम खुर्शीद और नवाब सआदत अली खान दोनों की मृत्यु खुर्शीद मंजिल के पूरा होने से पहले ही हो गई थी। यह सआदत अली खान के जीवनकाल में पूरा नहीं हो सका और 1818 में उनके बेटे गाजी-उद-दीन हैदर ने इसे पूरा किया।अवध के नवाब की पत्नी खुर्शीद ज़ादी के नाम पर दो इमारतें हैं। एक महल है और दूसरा समाधि है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दोनों को अलग-अलग शैलियों में बनाया गया है। जबकि नवाब सआदत अली खान के बेटे द्वारा उनकी मृत्यु के बाद बने उनके मकबरे का निर्माण मुगल शैली में किया गया है। वहीं जो खुर्शीद मंजिल उनके पिता द्वारा उनके जीवनकाल में बनाया गया था, उसे यूरोपीय शैली की तर्ज पर बनाया गया। महल का नाम बेगम के नाम पर खुर्शीद मंजिल रखा गया है।