Mathura Radha Raman Temple: यहां अलग अलग रूपों में दर्शन देते हैं श्रीकृष्ण, 500 साल से यहां नहीं हुआ माचिस का इस्तेमाल

Mathura Radha Raman Temple History: मथुरा, वृंदावन, बरसाना, गोकुल ये ऐसी जगह है, जो भगवान श्री कृष्ण के चमत्कारों के लिए पहचानी जाती है। आज हम आपके यहां के राधा रमण मंदिर के बारे में बताते हैं

Update: 2024-03-31 08:49 GMT

Radha Raman Temple (Photos - Social Media) 

Mathura Radha Raman Temple History: भारत का ऐसा देश है जहां पर अलग-अलग धर्म, मान्यताओं परंपराओं और संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हैं। यहां पर कई सारे ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल मौजूद है। जिनका अपना महत्व है और इन्हें किसी न किसी वजह से पहचाना जाता है। बात अगर धार्मिक स्थान के कारण तो यहां एक नहीं बल्कि अनेक मंदिर है जो अपने चमत्कारों के चलते पहचाने जाते हैं। अब जब आपको किसी मंदिर के बारे में बताया जाएगा तो आपके दिमाग में पूजन पाठ, दीपक, बत्ती, अगरबत्ती, धूप पट्टी यह सब कुछ आने लगेगा। लेकिन आज हम आपको जी मंत्र के बारे में बताने जा रहे हैं वहां पिछले 500 सालों से एक भी बार माचिस का उपयोग नहीं किया गया है लेकिन फिर भी यहां भगवान की पूजा नित्य नियमों के साथ की जाती है। चलिए आज आपको इस मंदिर के बारे में बताते हैं और यहां जो प्रथा चली आ रही है इसके बारे में भी जानेंगे।

कैसा है राधा रमण मंदिर (Mathura Radha Raman Mandir Ka Itihas)

वृन्दावन रेलवे स्टेशन से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, राधा रमण मंदिर, वृन्दावन के सबसे प्रतिष्ठित प्रारंभिक आधुनिक हिंदू मंदिरों में से एक है। यह भगवान कृष्ण को समर्पित है, जिन्हें राधा रमण माना जाता है, जिसका अर्थ है राधा को आनंद देने वाला। यह मंदिर राधारानी के साथ कृष्ण के मूल शालिग्राम देवता के लिए जाना जाता है, जो शालिग्राम शिला से स्वयं प्रकट देवता हैं और उनके चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कान है। राधा रमण मंदिर परिसर में गोपाल भट्ट की समाधि भी है, जो राधा रमण के प्राकट्य स्थल के ठीक बगल में स्थित है।

राधा रमण मंदिर को वृन्दावन के ठाकुर के 7 मंदिरों में से सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विशेष रूप से गौड़ीय वैष्णववाद के अनुयायियों के बीच महत्व रखता है। जब यह मंदिर 1542 में स्थापित किया गया था तब इसे खूबसूरती से तैयार किया गया था, लेकिन बाद में 1826 में शाह बिहारी लालजी द्वारा इसका जीर्णोद्धार किया गया। इस मंदिर के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि भले ही यह मंदिर राधा को समर्पित है और उनके नाम पर है, लेकिन मंदिर में राधा रानी की कोई मूर्ति नहीं है। कृष्ण के बगल में उनकी उपस्थिति दर्शाने के लिए केवल एक मुकुट रखा हुआ है।

Radha Raman Temple 

राधा रमण मंदिर की पौराणिक कथा (Mathura Radha Raman Mandir Ki Kahani)

यह मंदिर 500 साल पहले का है जब इसकी स्थापना गोपाल भट्ट स्वामी ने की थी। वे 30 वर्ष की आयु में वृन्दावन आये। चैतन्य महाप्रभु के गायब होने के बाद भगवान से अलग महसूस करने के बाद, उन्होंने सपने में देखा कि भगवान उन्हें उनके दर्शन प्राप्त करने के लिए नेपाल जाने का निर्देश दे रहे हैं। गोपाल भट्ट स्वामी नेपाल गए और कुख्यात काली गंडकी नदी में स्नान किया, जहां उन्होंने अपने पानी के बर्तन को नदी में डुबोया, लेकिन पाया कि कई शालिग्राम उनके बर्तन में घुस गए थे। उसने उन्हें वापस नदी में गिराने की कोशिश की, लेकिन वे फिर से बर्तन में घुस गए। उन्हें कुल 12 शालिग्राम शिलाएँ मिलीं और वे उन्हें अपने साथ ले गये।

पूर्णिमा के दिन उसने उनकी पूजा करके उन्हें एक विकर की टोकरी में रखा और कुछ देर आराम करने चला गया। अगली सुबह, उन्हें खोलने पर, उन्होंने केवल 11 शिलाएँ और बांसुरी बजाते हुए भगवान कृष्ण की एक मूर्ति देखी। मूल रूप से, यह उन शिलाओं में से एक थी जो स्वयं एक देवता के रूप में प्रकट हुई थी जिसे राधा रमण के नाम से जाना जाता है। यह है राधा रमण के प्रकट होने और इस मंदिर में मूल शिला स्थापित होने की कहानी।

Radha Raman Temple 

500 सालों से नहीं जली माचिस 

राधा रमण जी के मंदिर में 500 सालों से अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित है। पौराणिक कथा के अनुसार, चैतन्य महाप्रभु के शिष्य गोपाल भट्ट गोस्वामी ने अपनी भक्ति के बल पर राधा रमण जी के विग्रह रूप को प्रकट किया था। मान्यता है कि जब भगवान प्रकट हुए तब गोपाल भट्ट जी ने उनका भोग बनाने के लिए हवन की लकड़ियों को रख कर मात्र मंत्रोच्चार से अग्नि प्रज्वलित की थी। तब से अब तक वह अग्नि प्रज्वलित ही है। कैसी भी परिस्थिति हो उस अग्नि को न प्रकृति और न ही कोई मनुष्य भुजा पाया है। आज भी राधा रमण मंदिर में ठाकुर जी का भोग उसी अग्नि पर पकाया जाता है।

Radha Raman Temple 


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