Lepakshi Temple: समृद्ध इतिहास, जटिल वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्व का संगम

Lepakshi Temple: मंदिर की दीवारों पर शिव और पार्वती के विवाह, रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाना और समुद्र मंथन जैसे पौराणिक कथाओं को दर्शाती जटिल नक्काशी देखने को मिलती है।

Update:2024-06-21 11:30 IST

Lepakshi Temple

Lepakshi Temple: भारत देश के आंध्र प्रदेश राज्य के अनंतपुर जिले में भगवान शिव के अवतार वीरभद्र को समर्पित यह मंदिर लेपाक्षी में स्थित है। विजयनगर साम्राज्य की भव्यता और शिल्प कला का मिसाल देने वाला यह मंदिर अपने समृद्ध इतिहास, जटिल वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्व के लिए मशहूर है। ऐसा माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के शासक राजा अच्युतराय के शासनकाल में गवर्नर दो भाइयों- विरुपन्ना नायक और विरन्ना ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती ने अपने पिता के घर शिव जी के अपमान के बाद यज्ञ में आत्मदाह कर लिया, तो दुखी होकर क्रोध में आकर शिव जी ने वीरभद्र को उत्पन्न किया।

इस मंदिर की वास्तुकला में विजयनगर और चालुक्य शैलियों का मिश्रण देखने को मिलता है। यहां मंदिर परिसर में तीन मुख्य मंदिर हैं - वीरभद्र मंदिर, पापनाथेश्वर मंदिर और दुर्गा मंदिर। मुख्य मंदिर में तीन भाग हैं : असेंबली हॉल, एंटीचैम्बर और आंतरिक गर्भगृह। इसके अलावा परिसर में कई स्तंभों वाले मंडप और प्रांगण हैं जो मंदिर का मुख्य आकर्षण केंद्र है। इस मंदिर में वीरभद्र की एक विशाल अखंड मूर्ति है। मंदिर की दीवारों पर शिव और पार्वती के विवाह, रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाना और समुद्र मंथन जैसे पौराणिक कथाओं को दर्शाती जटिल नक्काशी देखने को मिलती है। प्रांगण के मुख्य हॉल के छत पर चोल चित्रकला को चित्रित करता एक दिव्य नृत्य की सुंदर पेंटिंग भी है।


ऐसी मान्यता है कि अगर मंदिर के खंबे के नीचे से कुछ निकाल लें तो घर में सुख समृद्धि आती है।कुछ लोगों का मानना है की इसी गांव में रामायण महाकाव्य वर्णित पक्षी जटायु, सीता माता को रावण द्वारा ले जाते समय बचाने की कोशिश में घायल होकर गिर गए थे। जब भगवान राम ने जटायु पक्षी को देखा, तो उन्होंने जटायु को 'ले पाक्षी' नाम से संबोधित किया । तेलुगु भाषा में लेपाक्षी का अर्थ होता है 'उदय पक्षी'। और इस तरह इस गांव का नाम लेपाक्षी पड़ा।


रहस्मय मंदिर :

हमारे देश में ऐसे कई रहस्यमय मंदिर हैं जो पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इन मंदिरों को देखने और इनका इतिहास जानने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले का लेपाक्षी मंदिर भी अपने झूलते खंबे के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहाँ आने वाले हर व्यक्ति की तमन्ना खासकर इसी झूलते खंभे को देखने की होती है। इस रहस्य की गुत्थी वैज्ञानिक भी नहीं समझ पाएं हैं।'हैंगिंग पिलर टेंपल' के नाम से यह मंदिर दुनिया भर में मशहूर है। इस मंदिर में कुल 70 खंबे हैं, जिसमें से एक खंबा ऐसा है जो जमीन से नहीं जुड़ा है, वह हवा में झूलता नज़र आता है। इसका प्रमाण लेने के लिए यहां आने वाला हर पर्यटक खंबे के नीचे कपड़ा डालकर इसका परीक्षण करता है। खंबा जमीन से आधा इंच ऊपर उठे हुए इस खंभे को आकाश स्तंभ के नाम से भी जाना जाता है।ऐसा कहा जाता है कि एक बार सन् 1924 में हैमिल्टन नामक ब्रिटिश इंजीनियर ने इस खंभे को हिलाने का प्रयत्न किया, लेकिन ऐसा करने में साथ में और कई खंभे हिलने लगे। ऐसा करने से पूरी संरचना गिरने के डर से उसने अपना प्रयास रोक दिया।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने एक सर्वे में पाया है कि इस स्तंभ का निर्माण उस समय के कारीगरों की प्रतिभा का प्रमाण देने के लिए जानबूझकर बनाया गया था।


इस मंदिर के अलावा और भी कई दर्शनीय स्थल है जिसे आप घूम सकते हैं :

इस मंदिर से करीब 200 मी की दूरी पर एक खंड में पत्थर की बनी एक विशाल नंदी की प्रतिमा है। यह विशाल नंदी की प्रतिमा करीब 27 फीट लंबी और 15 फीट ऊंची है। इस नंदी प्रतिमा के ऊपर दुनिया का सबसे खूबसूरत नक्काशी बनाया गया जो लगता है मशीन से बनाया गया है। आज भी वास्तुविद इस डिजाइन को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं।इस मंदिर परिसर में एक अधूरा मंडप है जिसे 'कल्याणमंडपम' कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंडप को शिव और पार्वती के विवाह के लिए बनाया गया था। लेकिन इस अधूरे मंडप का रहस्य हर कोई जानना चाहता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माता विरुपन्ना का पुत्र अंधा था।


जब विरुपन्ना ने इस मंदिर का निर्माण शुरू किया, तो उसका पुत्र चमत्कारिक रूप से ठीक हो गया। राजा के कुछ दरबारियों ने ईर्ष्यावश राजा से शिकायत की कि विरुपन्ना राज्य के खजाने से अपने बेटे का इलाज कर रहा है।इससे क्रोधित होकर, राजा ने विरुपन्ना को अंधा करने का आदेश दे दिया। इस घटना के बाद यह मंडप अधूरा ही रह गया। इस मंदिर की दीवारों पर लाल धब्बे विरुपन्ना की आंखों का प्रतीक माना जाता है।इस मंदिर में एक स्थान पर एक विशाल नक्काशीदार पैर देखने को मिलेगा। यह पैर किसी व्यक्ति के असल पैर के माप से मिलता जुलता दिखाई देगा। इस पैर को इतनी सटीकता से बनाया गया है कि देखने वाला हैरान रह जाता है। यह पैर किसी 20 से 25 फीट लंबे इंसान की है, इसे लोग आज भी नहीं समझ पाए कि यह किस दैत्य का है। यह भी रहस्य पर्यटकों को आश्चर्यचकित करता है।


कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से लेपाक्षी पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा बैंगलोर और हैदराबाद है। बैंगलोर हवाई अड्डे से यह मंदिर लगभग 130 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से सड़क मार्ग द्वारा बस या टैक्सी से इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।रेल मार्ग से आने के लिए सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन आंध्र प्रदेश का हिंदूपुर है। यहां से आप टैक्सी या स्थानीय बस के जरिए मंदिर तक पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग से यह जगह देश के प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा हुआ है, बैंगलोर या हैदराबाद के रास्ते यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।लेपाक्षी घूमने का सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च तक है। गर्मियों का मौसम गर्म होने से सैलानी घूमने का आनंद नहीं ले सकते।

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