Sultan Mahmud Begada History: गुजरात के इस सुल्तान का खून पीकर मच्छर भी मर जाता था, जानते हैं इसके बारे में
Sultan Mahmud Begada Ki Kahani: महमूद बेगड़ा का पूरा नाम अबुल फत नासिर-उद-दीन महमूद शाह प्रथम था। उनका जन्म 1458 में हुआ और उनका नाम शुरू में फतह खान रखा गया।
Sultan Mahmud Begada History: महमूद बेगड़ा गुजरात का छठाँ सुल्तान था। वह तेरह वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठा और 52 वर्ष (1459-1511 ई.) तक सफलतापूर्वक राज्य करता रहा। महमूद बेगड़ा, गुजरात के छठवें सुल्तान, का नाम इतिहास में उनकी असाधारण विशेषताओं और विचित्र किस्सों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि उनका शरीर इतना जहरीला था कि अगर उन्हें मच्छर काटता, तो वह तुरंत मर जाता। उनके जीवन की यह अनूठी कहानी उनके दुश्मनों से बचने और अपने साम्राज्य को मजबूत बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा थी।महमूद बेगड़ा के शासनकाल में गुजरात सबसे शक्तिशाली और सुशासित राज्यों में से एक बन गया। उनका प्रभाव इतना बड़ा था कि उनकी मृत्यु के बाद भी गुजरात मुग़ल शहंशाह हुमायूँ के लिए खतरा बना रहा।
महमूद को ‘बेगड़ा’ की उपाधि 'गिरनार' जूनागढ़ तथा चम्पानेर के क़िलों को जीतने के बाद मिली थी। वह अपने वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक था। उसने गिरिनार के समीप ‘मुस्तफ़ाबाद’ की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया। चम्पानेर के समीप बेगड़ा ने 'महमूदबाद' की भी स्थापना की थी।
प्रारंभिक जीवन और सत्ता संभालना
महमूद बेगड़ा का पूरा नाम अबुल फत नासिर-उद-दीन महमूद शाह प्रथम था। उनका जन्म 1458 में हुआ और उनका नाम शुरू में फतह खान रखा गया। वह महज 12 वर्ष की उम्र में सुल्तान बने। 25 मई,1458 को उन्होंने गद्दी संभाली और 53 साल तक शासन किया।
उनके शासनकाल में गुजरात सल्तनत ने अपने राजनीतिक, सैन्य और सांस्कृतिक विस्तार में अभूतपूर्व प्रगति की। उनकी दो बड़ी विजय-गिरनार और चंपानेर के किले-के कारण उन्हें ‘बेगड़ा’ की उपाधि दी गई। चंपानेर पर विजय के बाद उन्होंने इसे अपनी राजधानी बनाया।
जहर से सुरक्षा के लिए बनी अद्भुत कहानी
महमूद बेगड़ा पैदाइशी जहरीले नहीं थे। कहा जाता है कि बचपन में उन्हें जहर देने की कोशिश की गई थी। लेकिन वह जीवित बच गए। इसके बाद, उनके शुभचिंतकों ने उन्हें नियमित रूप से जहर देना शुरू कर दिया। ताकि उनका शरीर जहर का आदी हो जाए और कोई भी उन्हें जहर देकर न मार सके।
इस प्रक्रिया ने उन्हें इतना जहरीला बना दिया कि उनके खून में भी विष फैल गया। उनके बारे में कहा जाता है कि अगर उनके शरीर पर मच्छर या मक्खी बैठती, तो वह तुरंत मर जाती थी। इटैलियन यात्री लुडोविको डि वर्थेमा ने अपनी किताब ‘इटिनेरारियो डी लुडोइको डी वर्थेमा बोलोग्नीज’ में लिखा है कि महमूद बेगड़ा अगर पान खाकर किसी पर थूक देते, तो वह व्यक्ति 30 मिनट में मर जाता था।
सुल्तान की भयानक छवि
महमूद बेगड़ा का व्यक्तित्व उनके दुश्मनों को डराने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया था। उनकी दाढ़ी और मूंछें अत्यधिक लंबी थीं और वह अपनी मूंछों को साफे की तरह सिर पर बांधते थे। उनका पहनावा और रहन-सहन ऐसा था कि वह बेहद खतरनाक नजर आते थे।
उनके दरबार में भी उन्हीं जैसे लंबे दाढ़ी-मूंछ रखने वाले दरबारियों को महत्व दिया जाता था। उनकी मूंछें बैल के सींग की तरह मुड़ी हुई होती थीं, जो उनके डरावने व्यक्तित्व को और भी बढ़ाती थीं।
महमूद बेगड़ा की असाधारण भूख
सुल्तान की भूख के किस्से भी बहुत मशहूर हैं। कहा जाता है कि वह एक दिन में 35 किलो खाना खा सकते थे।
वह एक बार में 12 दर्जन केले और भारी मात्रा में मांस और अन्य व्यंजन खा लेते थे।
गिरनार और चंपानेर की विजय
गिरनार और सौराष्ट्र पर अधिकार करना महमूद बेगड़ा की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक था। सौराष्ट्र की भूमि उपजाऊ थी और इसके बंदरगाह व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे। हालांकि, इस क्षेत्र में लुटेरे और समुद्री डाकू सक्रिय थे, जो व्यापारियों और जहाजों को लूटते थे।
गिरनार के किले को जीतने के लिए महमूद ने विशाल सेना भेजी। यद्यपि किले के राजा ने वीरता से मुकाबला किया। लेकिन अंततः राजद्रोह के कारण हार गए। किले पर अधिकार करने के बाद राजा ने इस्लाम स्वीकार किया और सुल्तान की सेना में शामिल हो गए। गिरनार की पहाड़ी के नीचे महमूद ने 'मुस्तफ़ाबाद' नामक नया शहर बसाया और इसे गुजरात की दूसरी राजधानी बनाया।
चंपानेर की विजय और राजधानी का स्थानांतरण
चंपानेर का किला सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था। यह क्षेत्र मालवा और गुजरात के संबंधों का केंद्र था। 1454 में महमूद ने इस किले को जीतकर उसके निकट 'मोहम्मदाबाद' नामक नया शहर बसाया। इसे उन्होंने अपनी राजधानी बनाया और यहाँ सुंदर बाग़ और इमारतें बनवाईं।
द्वारका पर विजय
महमूद बेगड़ा ने द्वारका पर भी विजय प्राप्त की। मुख्य कारण समुद्री डाकुओं को नियंत्रित करना था, जो मक्का जाने वाले हज यात्रियों को लूटते थे।
हालांकि, इस अभियान के दौरान कई हिंदू मंदिरों को भी तोड़ा गया, जिसमें द्वारकाधीश मंदिर प्रमुख था।
पुर्तगालियों से संघर्ष
महमूद बेगड़ा के शासनकाल में भारत में पुर्तगालियों की गतिविधियां बढ़ने लगी थीं। उन्होंने अपनी नौसेना तैयार कर पुर्तगालियों को हराने का प्रयास किया। 1507 में कालीकट के हिंदू राजा के साथ मिलकर उन्होंने चौल बंदरगाह के पास पुर्तगालियों को पराजित किया। हालांकि, 1509 में दीव और ड्यू के पास पुर्तगालियों ने गुजरात की संयुक्त सेना को हरा दिया।
धार्मिक नीति और हिंदू मंदिरों का विनाश
सुल्तान ने अपने शासनकाल में कई राज्यों पर विजय प्राप्त की। उन्होंने पराजित राजाओं से इस्लाम धर्म अपनाने का आग्रह किया। जो राजा इस्लाम अपनाने से इनकार करते, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता था।
1472 में, महमूद बेगड़ा ने प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर को ध्वस्त कर दिया। उन्होंने कई हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया। लेकिन उनके शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता का भी एक पहलू था।
व्यापार और सांस्कृतिक विकास
महमूद बेगड़ा के शासनकाल में गुजरात व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। उन्होंने यात्रियों और व्यापारियों के लिए कारवां-सरायों और यात्री-सरायों का निर्माण करवाया। सड़कें सुरक्षित होने के कारण व्यापारी संतुष्ट थे।
शिक्षा के मामले में महमूद औपचारिक रूप से शिक्षित नहीं थे। लेकिन विद्वानों की संगति में उन्होंने व्यापक ज्ञान प्राप्त किया। उनके शासनकाल में अरबी ग्रंथों का फारसी में अनुवाद हुआ। उनके दरबार में संस्कृत के प्रसिद्ध कवि उदयराज जैसे विद्वान भी थे।
उत्तराधिकार और विरासत
23 नवंबर, 1511 को महमूद बेगड़ा का निधन हो गया। उनके पुत्र खलील ख़ाँ, जिन्हें 'मुजफ्फर शाह द्वितीय' की उपाधि दी गई, ने गद्दी संभाली। महमूद बेगड़ा का शासनकाल न केवल उनके प्रशासनिक कौशल का प्रतीक था, बल्कि गुजरात के गौरव और शक्ति का युग भी था। उनकी विजयगाथाएं और व्यक्तित्व आज भी इतिहास में जीवित हैं।
महमूद बेगड़ा न केवल एक कुशल शासक थे, बल्कि उनके व्यक्तित्व से जुड़ी कहानियां उन्हें इतिहास में एक अनोखी पहचान देती हैं। उनकी जहरीली छवि, उनकी विजयगाथाएं और उनकी रणनीतिक कुशलता उन्हें इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर बनाती हैं। उनके जीवन के किस्से आज भी हमें उनके समय की जटिलताओं और चुनौतियों की याद दिलाते हैं।