Siwana Fort Rajasthan: वीरता और शौर्य का गवाह सिवाना किला, जानें सिवाना दुर्ग का दिलचस्प इतिहास

Siwana Fort Rajasthan: सिवाना किला राजस्थान के प्राचीन किलों में से एक है। राजस्थान के करीब 10 मील दूरी पर कोई न कोई किला या दुर्ग जरूर मिल जाएगा ।

Update: 2022-07-12 14:47 GMT

Siwana Fort Rajasthan: सिवाना किला राजस्थान के प्राचीन किलों में से एक है। राजस्थान के करीब 10 मील दूरी पर कोई न कोई किला या दुर्ग जरूर मिल जाएगा । इन्हीं दुर्गों या किलों के कारण राजस्थान का इतिहास (history of Rajasthan) बहुत प्राचीन रहा है। इन्हीं में से एक सिवाना दुर्ग का इतिहास (History of Sivana Fort) बहुत प्राचीन है। यह दुर्ग भी एक पहाड़ी पर है ।

सिवाना, राजस्थान में बाड़मेर जिले की एक तहसील है, जो बाड़मेर (barmer) से 151 किमी दूर स्थित है। यह स्थान अपने किले के लिए जाना जाता है, जिसे स्थानीय रूप से गढ़ सिवाना के रूप में जाना जाता है। यह किला जोधपुर से लगभग 60 मील दक्षिण में पर्वत शिखरों के मध्य स्थित है | इतिहास के अनुसार इस प्राचीन दुर्ग का निर्माण वीर नारायण पंवार ने दसवीं शताब्दी ईस्वी में करवाया था ।

सिवाना किला राजस्थान: Photo - Social Media

पंवार बहुत शक्तिशाली थे

वह प्रतापी पंवार शासक राजा भोज का पुत्र था। उस समय पंवार बहुत शक्तिशाली थे। उनका एक विशाल क्षेत्र पर आधिपत्य था, जिसमें मालवा, चन्द्रावती, जालौर, किराडू, आबू सहित अनेक प्रदेश शामिल थे । बाद में सिवाना जालौर के सोनगरा चौहानों के अधिकार में आ गया। ये सोनगरे बहुत वीर और प्रतापी हुए तथा इन्होंने ऐबक और इल्तुतमिश जैसे शक्तिशाली मुगलवंशीय सुलतानों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया।

सुल्तान अलाउद्दीन के आक्रमण के समय सिवाना का अधिपति सातलदेव था । सिवाणा पर अलाउद्दीन की सेना का पहला आक्रमण 1305 ई.में हुआ। वीर सातल और सोम ने कान्हड़देव कि सहायता से खिलजी सेना का डटकर मुकाबला किया । राजपूतों की इस प्रारंभिक सफलता और अपनी पराजय से क्षुब्ध होकर अलाउद्दीन खिलजी ने 1310 ई. के लगभग स्वयं एक विशाल सेना लेकर सिवाणा पर चढ़ाई की और दुर्ग को जा घेरा ।

अलाउद्दीन सिवाना पर कब्ज़ा करने के लिए दृढ़ था

सातल देव ने बड़ी वीरता के साथ उसका मुकाबला किया तथा शत्रु सेना के हौसले पस्त कर दिये । लेकिन इस बार अलाउद्दीन सिवाना पर अधिकार करने के लिए दृढ़ था, अत: उसने हर संभव उपाय का आश्रय लिया। उसने एक विशाल और ऊँची पाशीब ( चबूतरा ) बनवाया। जिसके द्वारा खिलजी सेना दुर्ग तक पहुंचने में सफल हो गयी। अलाउद्दीन ने वहां के प्रमुख पेयजल स्रोत भांडेलाव तालाब को गौमाँस से दूषित करवा दिया । कहा जाता है कि इसमें भांयल पंवार नामक व्यक्ति ने विश्वासघात किया। अब दुर्ग की रक्षा का कोई उपाय न देख वीर सातल-सोम सहित अन्य क्षत्रिय योद्धा केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु सेना पर टूट पड़े तथा वीर गति को प्राप्त हुए ।

सिवाना किला राजस्थान: Photo - Social Media

राजपूतों की अप्रतिम वीरता और शौर्य से प्रभावित हो अलाउद्दीन का आश्रित लेखक अमीर खुसरो ने लिखा है -

"वे राजपूत गजब के बहादुर और साहसी थे उनके सिर के टुकड़े टुकड़े हो गए फिर भी वे युद्ध स्थल पर अड़े रहे।" खिलजी सैनिकों ने सातल देव का शव क्षत-विक्षत शव अलाउद्दीन के सामने प्रस्तुत किया, जिसने दुर्ग को खैराबाद का नाम दिया । लेकिन अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के साथ ही सिवाणा पर उसके वंश का अधिपत्य समाप्त हो गया ।

तत्पश्चात सिवाणा पर राव मल्लीनाथ राठौर के भाई जैतमाल ओर उसके वंशजो का अधिपत्य रहा ।1538 ई. ने राव मालदेव ने सिवाणा तत्कालीन अधिपति राठौर डूगरसी को पराजित कर इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया, मालदेव के आधिपत्य का सूचक एक शिलालेख वहाँ किले के भीतर आज भी विद्यमान है, राव मालदेव ने सिवाणा कि रक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया और वहाँ परकोटे का निर्माण करवाया।

सिवाना किला राजस्थान: Photo - Social Media

मुग़ल आधिपत्य में आने के बाद अकबर ने राव मालदेव के पुत्र रायमल को सिवाना दिया। लेकिन कुछ अरसे बाद ही रायमल की मृत्यु हो गई और सिवाना उसके पुत्र कल्याणदास के अधिकार में आ गया । मोटा राजा उदय सिंह ने शहज़ादे सलीम के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था। कला इस विवाह संबंध को अनुचित और अपमान जनक मानता था। उदय सिंह से झगड़ा करता था।

वीरता और शौर्य की रोमांचक घटनाओं का साक्षी सिवाना

वास्तविक कारण चाहे जो भी रहा हो मोटा राजा उदयसिंह ने शाही सेना की सहायता से सिवाना पर आक्रमण किया । कला राठौड़ ने स्वाभिमान और वीरता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मोटा राजा उदय सिंह की सेना के साथ भीषण युद्ध किया और लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की। कला की पत्नी हाड़ी रानी बूँदी के राव सुर्जन हाडा की पुत्री ने दुर्ग की ललनाओं के साथ जौहर का अनुष्ठान किया।

वीरता और शौर्य की रोमांचक घटनाओं का साक्षी सिवाना का किला काल के क्रूर की गवाही देता आज भी शान से खड़ा है ।इस किले में पानी का एक तालाब भी है ।ऐसा कहा जाता है इसका पानी कभी भी खत्म नहीं हुआ चाहे कितने भी अकाल पड़े हो। शायद यही वजह रही आज तक कोई भी इस तालाब की गहराई का अंदाजा नहीं लगा पाया।

Tags:    

Similar News