आसिया बीबी के वकील पाक लौटे, ईशनिंदा पर सुप्रीम कोर्ट में रखेंगे पक्ष
पाकिस्तान में ईशनिंदा की आरोपी ईसाई महिला आसिया बीबी के वकील सैफुल मलूक स्वदेश लौट आए हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मलूक सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को होने वाली सुनवाई में पेश होंगे।
इस्लामाबाद: पाकिस्तान में ईशनिंदा की आरोपी ईसाई महिला आसिया बीबी के वकील सैफुल मलूक स्वदेश लौट आए हैं। कोर्ट में आसिया का बचाव करने के लिए मौत की धमकियां मिलने के बाद मलूक पाकिस्तान छोड़कर नीदरलैंड्स चले गए थे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मलूक सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को होने वाली सुनवाई में पेश होंगे। आइए इस मौके पर हम जानते हैं कि क्या है ईशनिंदा कानून, कब बना और इसके क्या प्रावधान हैं...
जिया-उल-हक के शासनकाल में लागू हुआ था ईशनिंदा कानून
जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून को लागू किया गया। पाकिस्तान पीनल कोड में सेक्शन 295-बी और 295-सी जोड़कर ईशनिंदा कानून बनाया गया। दरअसल पाकिस्तान को ईशनिंदा कानून ब्रिटिश शासन से विरासत में मिला है। 1860 में ब्रिटिश शासन ने धर्म से जुड़े अपराधों के लिए कानून बनाया था जिसका विस्तारित रूप आज का पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून है।
धार्मिक हिंसा रोकना था मकसद
ब्रिटिश सरकार के ईशनिंदा कानून का मकसद धार्मिक हिंसा को रोकना था। धार्मिक सभा में बाधा पैदा करना, कब्रगाह या श्मशान में अतिक्रमण, धार्मिक आस्थाओं का अपमान और पूजा के स्थल या सामग्री को इरादतन नुकसान पहुंचाना आदि गतिविधियों को इस कानून के तहत अपराध मानने का प्रावधान था। 1927 में ब्रिटिश शासकों ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने को भी अपराध की श्रेणी में रखा। एक खास बात यह थी कि इस कानून में धर्मों के बीच भेदभादव नहीं किया गया था।
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पैगंबर के अपमान में मौत की सजा
पाकिस्तान के सैन्य शासक जिया-उल-हक ने ईशनिंदा कानून में कई प्रावधान जोड़े। उसने 1982 में ईशनिंदा कानून में सेक्शन 295-बी जोड़ा और इसके तहत मुस्लिमों के धर्मग्रंथ कुरान के अपमान को अपराध की श्रेणी में रखा गया। इस कानून के मुताबिक, कुरान का अपमान करने पर आजीवन कारावास या मौत की सजा हो सकती है। 1986 में ईश निंदा कानून में धारा 295-सी जोड़ी गई और पैगंबर मोहम्मद के अपमान को अपराध की श्रेणी में रखा गया जिसके लिए आजीवन कारावास की सजा या मौत की सजा का प्रावधान था।
1991 में संशोधन
1991 में पाकिस्तान के एक फेडरल शरिया कोर्ट ने 295-सी के तहत आजीवन कारावास की सजा को निरस्त कर दिया। मोहम्मद इस्माइल कुरैशी की याचिका पर सुनवाई करते हुए शरीया कोर्ट ने फैसला दिया कि पाकिस्तान पीनल कोड के सेक्शन 295-सी के तहत आजीवन कारावास की सजा का विकल्प इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है। शरीया कोर्ट ने इस कानून को और सख्त बना दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पैगंबर मोहम्मद के साथ-साथ अन्य पैगंबरों के अपमान को भी अपराध की श्रेणी में रखा जाए और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ मौत की सजा का प्रावधान हो।
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मामले
1986 के पहले तक ईशनिंदा के मामले बहुत कम आते थे। 1927 से 1985 तक सिर्फ 58 मामले कोर्ट में पहुंचे थे लेकिन उसके बाद से 4,000 से ज्यादा मामले कोर्ट पहुंचे। वैसे अब तक किसी को भी ईशनिंदा के मामले में फांसी की सजा नहीं हुई है। ज्यादातर आरोपियों की मौत की सजा को या तो पलट दिया गया उनको रिहा कर दिया गया। ट्रायल कोर्ट में पहुंचे ज्यादातर मामले झूठे थे। इन आरोपों और शिकायतों की वजह निजी या राजनीतिक दुश्मनी थी।
गैर मुस्लिमों के खिलाफ ज्यादातर मामले
अल्पसंख्यकों के खिलाफ कम से कम 702 मामले दर्ज किए गए यानी 52 फीसदी मामले उनके खिलाफ दर्ज किए गए। कई बार तो लोग निजी रंजिश की वजह से भी फंसाते है और उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता है।
ईशनिंदा कानून के खिलाफ बोलने पर दो हाई प्रोफाइल मर्डर
पाकिस्तान के दो बड़े राजनीतिज्ञों को ईश निंदा कानून के खिलाफ बोलने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। 2011 में सलमान तासीर की उनके बॉडीगार्ड ने हत्या कर दी थी। सलमान तासीर ईश निंदा का पुरजोर विरोध कर रहे थे और आसिया बीबी की रिहाई की वकालत कर रहे थे। सलमान तासीर की हत्या के एक महीने बाद धार्मिक अल्पसंख्यक मंत्री शाहबाज भट्टी की भी हत्या कर दी गई थी। शाहबाज भट्टी का संबंध ईसाई धर्म से था। उन्होंने कानून के खिलाफ बोला था। इस्लामाबाद में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी।
आसिया बीबी का मामला
आसिया बीबी पाकिस्तान की एक ईसाई महिला है। उनका मामला जून 2009 का है। आसिया और कुछ मुस्लिम महिलाएं काम कर रही थीं। उनको जब तेज प्यास लगी तो कुएं के पास रखे गिलास से पानी पी लिया। इस पर मुस्लिम महिलाएं भड़क गईं। उनका कहना था कि उनके लिए रखे गए गिलास में आसिया ने पानी पी लिया।
पानी को लेकर मुस्लिम महिलाओं और आसिया के बीच झगड़ा हो गया। झगड़े के दौरान आसिया ने पैगंबर मोहम्मद और ईसा मसीह की तुलना कर दी। इसके बाद उनके खिलाफ ईशनिंदा के तहत पैगंबर मोहम्मद के अपमान का मामला दर्ज करा दिया गया। 2010 में एक निचली अदालत ने उनको मौत की सजा सुनाई थी जिसे पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया।
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