पश्चिम बंगाल: असम में रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) का दूसरा और आखिरी ड्राफ्ट पेश कर दिया गया है। इसके तहत 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक मान लिया गया है। इस तरह से करीब 40 लाख लोग अवैध पाए गए हैं। ड्राफ्ट के आते ही सियासत तेज हो गई है। टीएमसी ने जहां असम में NRC ड्राफ्ट के मुद्दे पर लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया। वहीं टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि NRC के नाम पर बंगाली लोगों को टारगेट किया जा रहा है।
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ममता ने उठाये ये सवाल
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने असम में एनआरसी के ड्राफ्ट पर कहा कि कई लोगों के पास आधार कार्ड और पासपोर्ट होने के बावजूद उनका नाम ड्राफ्ट में नहीं है। सही दस्तावेजों के बावजूद लोगों को ड्राफ्ट में शामिल नहीं किया गया। उन्हें सरनेम की वजह से बाहर किया गया है। क्या बीजेपी सरकार जबरदस्ती लोगों को बाहर निकालना चाहती है?ममता बनर्जी ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार बंगाली लोगों को निशाना बना रही है और वोट बैंक की राजनीति कर रही है। ममता ने चिंता जताते हुए कहा कि 40 लाख लोग जिन्हें ड्राफ्ट से बाहर किया गया है, वो कहां जाएंगे? अगर बांग्लादेश भी उन्हें वापस नहीं लेता तो उनका क्या होगा?
बंगाल में मिलेगी शरण
ममता ने चेतावनी देते हुए कहा कि याद रखें कि वे रोहिंग्या नहीं हैं। NRC के आज जारी ड्राफ्ट में जिन लोगों के नाम नहीं हैं, हम उन्हें वापस जाने नहीं देंगे। बंगाल उन्हें शरण देगा।
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अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान के लिए NRC
बता दें कि असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को निकालने के लिए सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) अभियान चलाया है. दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में गिने जाने वाला यह कार्यक्रम डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट आधार पर है। यानी कि अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहले पहचान की जाएगी फिर उन्हें वापस उनके देश भेजा जाएगा। असम में घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए यह अभियान करीब 37 सालों से चल रहा है. 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वहां से पलायन कर लोग भारत भाग आए और यहीं बस गए। इस कारण स्थानीय लोगों और घुसपैठियों के बीच कई बार हिंसक झड़पें हुईं। 1980 के दशक से ही यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए आंदोलन हो रहे हैं।
जनवरी में आया था पहला ड्राफ्ट
बीते जनवरी माह में असम में सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) का पहला ड्राफ़्ट जारी किया था। इसमें 3.29 करोड़ लोगों में से केवल 1.9 करोड़ को ही भारत का वैध नागरिक माना गया है।