लखनऊ: हर साल 5 जून को हम विश्व पर्यावरण दिवस के दिन पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए हम हजार कसम खाते है, लेकिन उसके बाद भूल जाते है कि पर्यावरण के लिए भी हमें कुछ करना है। पर्यावरण के प्रति सरकार और लोगों की बढ़ती लापरवाही के कारण हम संतुलन नहीं बन पा रहे है। गाड़ियों की हर रोज बढ़ती संख्या और लोगों द्वारा पॉलीथीन के बढ़ते इस्तेमाल के कारण पर्यावरण असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है।
पर्यावरण का मतलब केवल पेड़-पौधे लगाना ही नहीं है बल्कि, भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण को भी रोकना है। पर्यावरण असंतुलन से व्यक्ति का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है और कई प्रकार की बीमारियां होने लगती हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस
5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित ये दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। पर्यावरण असंतुलन के कारण ही सुनामी और भयंकर आंधी तूफान आते हैं। धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है जिसके कारण पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्त हो गई हैं।
ऐसे रोकना पड़ेगा
पर्यावरण संतुलन के लिए भूमि प्रदूषण को रोकना बहुत जरूरी है। वनों का कटाव, खदानों, रसायनिक खादों का ज्यादा प्रयोग और कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण भूमि प्रदूषण फैलता है। इसके कारण हम जो खाद्य-पदार्थ खाते हैं वो शुद्ध नहीं होता है। इसके कारण पेट से जुड़ी हुई कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं।
पूरी पृथ्वी का तीन-चौथाई हिस्से में पानी है, लेकिन केवल 0.3 प्रतिशत हिस्सा ही पीने के योग्य है। फैक्ट्रियों और घरों से निकलने वाले कूड़े का पानी सीधे नदियों में छोड़ा जाता है। जिसके कारण कई नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं। जल प्रदूषण के कारण कई बीमारियां पैदा होती हैं।
आदमी की जिंदगी के लिए ऑक्सीजन बेहद आवश्यक है। पेड़ों की कटाई और बढ़ रहे वायु प्रदूषण के कारण हवा से ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है। घरेलू ईंधन, वाहनों से निकलते धुएं और वाहनों के बढ़ते प्रयोग इसके लिए जिम्मेदार हैं।
ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। आए दिन मशीनों, लाउडस्पीकरों और गाड़ियों के हॉर्न ने ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाया है। पारिवारिक और धार्मिक कार्यक्रमों में लोग लाउडस्पीकर बहुत तेजी से बजाते हैं। जिसके कारण कई लोगों की नींद उड़ जाती है। ध्वनि प्रदूषण के कारण कान से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा होता है।
बचाव के तरीके
पर्यावरण को बचाने के लिए बचे हुए प्राकृतिक जंगलों को , उनकी सरहदों पर कंटीले तारों की बागड़ से घेरा जा सकता है। पेड़ों के छोटे से छोटे झुरमुट को भी इसी तरह बचाया जा सकता है। क्योंकि प्राकृतिक जंगलों का कोई विकल्प नहीं होता। वृक्ष गणना अभियान चलाया जा सकता है। वृक्षों के तनों पर फ्लोरसेंट रंगों में अंकों की पट्टियां लगाई जा सकती हैं ताकि पता चल सके कि कहां कितने और किस प्रजाति के वृक्ष मौजूद हैं। इस गणना कार्य हेतु रिमोट सेंसिंग की अत्याधुनिक तकनीक से धरती के चप्पे-चप्पे का 'हरित मेप' बनाया जा सकता है।