वाराणसी: भोलेनाथ की नगरी काशी शिवरात्रि आते ही भोले बाबा के रंग में रंग जाती है। बम-बम भोले की गूंज के साथ भांग के रंग में सराबोर हर भक्त को इस पावन पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता है। सिर्फ भारतीय ही नहीं, बल्कि सात समुंदर पार से भी भोले भक्त शिवरात्रि के इस महोत्सव में काशी आकर भांग की ठंडई के सुरूर में मस्त हो जाते हैं।
भांग नशा नहीं प्रसाद है
-काशी में भोले के भक्त सतीश कहते हैं कि भांग नशा नहीं भोलेनाथ का प्रसाद है।
-शिवरात्रि आते ही काशी में ठंडई की दुकानों पर भीड़ उमड़ने लगती है।
-ठंडई को दूध, बादाम, पिस्ता और केसर से बनाया जाता है।
-शिवरात्रि में इस ठंडई का रंग हरा हो जाता है, क्योंकि इसमें मस्ती और आनंद के लिये भांग मिलाया जाता है।
-भांग की ठंडई का सुरूर ऐसा कि पूरी काशी बम-बम भोले के जयकारे से गुंजायमान हो जाती है।
विदेशी भी भांग को प्रसाद मानते हैं
-विश्वनाथ मंदिर के अर्चक पं. श्रीकांत मिश्रा बताते हैं कि शिवरात्रि साल का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता हैं।
-इस दिन भगवान शिव की कामना करने से सभी मनोरथ पूरे होते हैं।
-पुराणों की माने तो भगवान शिव भांग से प्रसन्न होते हैं।
-शास्त्रों में मान्यता है कि भांग को ‘विजया’ भी कहते हैं जो लक्ष्मी का स्वरुप है।
-भगवान शिव को विजया से प्रेम हैं और वह हमेशा समाधी भाव में रहते हैं।
-भांग समाधी भाव को उत्पन्न करता हैं, इसलिए भोलेनाथ को भांग का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
काशी में सात वार और तेरह त्यौहार मनाने की परंपरा
-शिव की बसाई काशी नगरी की पहचान अल्हड़पन और मस्ती के लिये पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
-काशी में सात वार और तेरह त्यौहार मनाने की परंपरा है।
-भोले शंकर को भांग बहुत प्रिय है, हर भक्त भोले भंडारी को भांग का भोग लगाता है।
-शिवरात्रि के दिन पूरी काशी भोले के रस में घुलकर मस्त हो जाती है।
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