Secrete Of Animal’s Eyes: जानवरों की आँखों में चमक क्यों दिखाई देती है? क्या है इसके पीछे का विज्ञान? आइये जानते है!

Secrete Of Animal’s Eyes: जानवरों की आँखों में चमक टैपटम लूसिडम के कारण होती है, जो उनकी रात में देखने की क्षमता को बेहतर बनाता है।;

Update:2025-04-01 14:11 IST

Secrete Of Animals Eyes Glow in Night (Photo - Social Media)

Secrete Of Animals Eyes Glow in Night: क्या आपने कभी अंधेरे में किसी जानवर की आँखों को चमकते हुए देखा है? चाहे वह जंगल में किसी जंगली जानवर की हो, रात में सड़क पर चलते कुत्ते या बिल्ली की, या फिर आपके अपने पालतू जानवर की जब उन पर रोशनी पड़ती है, तो उनकी आँखें किसी चमकते हुए रत्न की तरह दिखाई देती हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?

यह कोई जादू नहीं, बल्कि विज्ञान का एक अनोखा चमत्कार है! यह रहस्य जानवरों की आँखों की विशेष संरचना में छिपा है, जिसे टेपेटम ल्यूसीडम (Tapetum Lucidum) कहा जाता है। यह परत उनकी आँखों को रात में बेहतर देखने में मदद करती है और यही कारण है कि उनकी आँखें रोशनी पड़ने पर चमक उठती हैं।

इस लेख में, हम इस अद्भुत प्राकृतिक घटना को विस्तार से समझेंगे, कैसे यह काम करता है, किन जानवरों में यह पाया जाता है, और इसका उनके जीवन में क्या महत्व है। तो चलिए, इस रोचक और रहस्यमयी विज्ञान की गहराई में उतरते हैं!

जानवरों की आँखों में चमकने की प्रक्रिया

रात के अंधेरे में जानवरों की आँखों में चमकने की यह अद्भुत क्षमता उनके नेत्र संरचना में विशेष तत्वों की उपस्थिति के कारण होती है। मुख्य रूप से यह चमकने की क्रिया टेपेटम ल्यूसीडम (Tapetum Lucidum) नामक परावर्तक परत की उपस्थिति के कारण होती है। यह परत आँखों के पीछे स्थित होती है और प्रकाश को परावर्तित कर पुनः रेटिना तक पहुँचाने का कार्य करती है। इस कारण से अंधेरे में जानवरों की आँखें चमकती हुई दिखाई देती हैं।

टैपटम लूसिडम की संरचना और कार्यप्रणाली

टैपटम लूसिडम (Tapetum Lucidum) एक विशेष परावर्तक परत होती है, जो कई जानवरों(Animals) की आँखों(Eyes)में पाई जाती है। यह परत मुख्य रूप से कोशिकीय क्रिस्टल (cellular crystals) या फाइब्रोस्ट्रक्चरल प्रोटीन से बनी होती है, जो प्रकाश को परावर्तित करने में सक्षम होती है। यह आँख के रेटिना और कोरॉइड (Choroid) के बीच स्थित होती है और इसकी संरचना जानवरों को कम रोशनी में भी देखने में मदद करती है। जब प्रकाश जानवर की आँखों में प्रवेश करता है, तो उसका कुछ हिस्सा रेटिना द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जबकि शेष प्रकाश टैपटम लूसिडम से टकराकर वापस रेटिना पर लौट जाता है। इस परावर्तन की प्रक्रिया के कारण प्रकाश की तीव्रता बढ़ जाती है, जिससे जानवर अंधेरे में भी अधिक स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। यही कारण है कि रात्रि में शिकार करने वाले जानवरों की आँखें रोशनी पड़ने पर चमकती हैं। यह प्रक्रिया न केवल उनकी नाइट विजन (रात्रि दृष्टि) को बेहतर बनाती है, बल्कि उन्हें शिकार करने और शिकारियों से बचने में भी सहायता प्रदान करती है।

टेपेटम ल्यूसीडम क्या है?

टेपेटम ल्यूसीडम एक विशेष प्रकार की परावर्तक परत होती है, जो आँख के रेटिना (Retina) के पीछे स्थित होती है। यह परत आँखों में प्रवेश करने वाले प्रकाश को अवशोषित करने की बजाय उसे परावर्तित कर पुनः रेटिना तक पहुँचाती है, जिससे आँखें कम रोशनी में भी देखने में सक्षम हो जाती हैं। इसी वजह से जब किसी प्रकाश स्रोत (जैसे टॉर्च, कार की हेडलाइट्स या कैमरे की फ्लैश) से प्रकाश जानवरों की आँखों पर पड़ता है, तो वह टेपेटम ल्यूसीडम से टकराकर वापस आ जाता है और आँखें चमकने लगती हैं।

यह परत किसे लाभ पहुँचाती है?

टेपेटम ल्यूसीडम विशेष रूप से उन जानवरों में पाई जाती है, जिन्हें रात में देखने की अधिक आवश्यकता होती है। यह परत अंधेरे में उनके देखने की क्षमता को बढ़ाती है। ये विशेष रूप से रात में सक्रिय (Nocturnal) जानवरों में पाई जाती है। इनमें बिल्लियाँ, कुत्ते, हिरण, उल्लू, बाघ, भेड़िये और कई अन्य जीव शामिल हैं।

आँखों की चमक का रंग अलग-अलग क्यों होता है?

अक्सर हम देखते हैं कि अलग-अलग जानवरों की आँखों में चमकने वाला रंग भिन्न होता है। इसके पीछे कुछ मुख्य कारण होते हैं:

टेपेटम ल्यूसीडम की संरचना: अलग-अलग प्रजातियों के टेपेटम ल्यूसीडम में मौजूद कोशिकाएँ और पदार्थ भिन्न होते हैं, जिससे उनकी चमक का रंग भी अलग होता है।

प्रकाश का कोण और तीव्रता: प्रकाश किस दिशा और किस तीव्रता से आँखों पर पड़ रहा है, यह भी चमक के रंग को प्रभावित करता है।

जानवर की उम्र: छोटे और बड़े जानवरों में टेपेटम ल्यूसीडम की परावर्तक क्षमता बदल सकती है, जिससे चमक के रंग में अंतर आता है।

अनुवांशिक और जैविक अंतर: विभिन्न प्रजातियों में जेनेटिक अंतर के कारण भी उनकी आँखों की चमक का रंग अलग-अलग हो सकता है।

विभिन्न जानवरों में दिखने वाले चमक के रंग

बिल्लियाँ और बाघ: हरा या पीला

कुत्ते: नीला, हरा या पीला

हिरण और घोड़े: लाल या नारंगी

उल्लू: लाल या पीला

कौन-कौन से जानवरों की आँखें अँधेरे में चमकती हैं?

यह परिघटना विशेष रूप से निम्नलिखित जानवरों में देखी जाती है:

बिल्लियाँ - यह सबसे आम उदाहरण है, जहाँ घरेलू बिल्लियों की आँखें अँधेरे में हरे रंग में चमकती हैं।

कुत्ते - कई कुत्तों की आँखें हरी, नीली या पीली चमकती हैं।

हिरण - हिरणों की आँखें अक्सर लाल या नारंगी चमकती हैं।

भेड़िये और लोमड़ी - इनकी आँखें हरे या पीले रंग में चमक सकती हैं।

बाघ और तेंदुए - इनकी आँखों की चमक आमतौर पर पीली होती है।

गाय और घोड़े - इनकी आँखों में नीली या लाल चमक देखी जाती है।

उल्लू - उल्लू की आँखें चमकने के लिए मशहूर होती हैं और अक्सर लाल या पीली दिखाई देती हैं।

क्या सभी जानवरों की आँखें चमकती हैं?

सभी जानवरों की आँखें अंधेरे में नहीं चमकतीं। टेपेटम ल्यूसीडम केवल उन्हीं जानवरों में पाया जाता है, जिन्हें कम रोशनी में देखने की जरूरत होती है। मनुष्यों, गिलहरियों, सूअरों और कुछ अन्य जानवरों में यह परत नहीं पाई जाती, इसलिए उनकी आँखें अंधेरे में नहीं चमकतीं।

कैमरा फ्लैश में आँखों की चमक का कारण

जब हम किसी जानवर की तस्वीर फ्लैश के साथ खींचते हैं, तो उसकी आँखें चमकती हुई दिखाई देती हैं। इसका कारण वही टेपेटम ल्यूसीडम परत है, जो फ्लैश के प्रकाश को परावर्तित कर देती है। हालाँकि, इंसानों में यह परत नहीं होती, लेकिन उनकी आँखों की रेटिना में रक्त वाहिकाएँ होती हैं, जो कैमरा फ्लैश के प्रकाश को परावर्तित कर लाल रंग की चमक उत्पन्न करती हैं। इसे "रेड आई इफेक्ट" कहा जाता है।

मानव की आँखें क्यों नहीं चमकतीं?

मनुष्यों की आँखों में टैपटम लूसिडम नहीं होता, इसलिए उनकी आँखें अंधेरे में नहीं चमकतीं। इंसानों की रेटिना प्रकाश को पूरी तरह अवशोषित कर लेती है, जिससे कोई प्रकाश वापस नहीं लौटता। यही कारण है कि हम अंधेरे में अधिक देखने में सक्षम नहीं होते, जबकि कुछ जानवरों की नाइट विजन बेहतर होती है।

जानवरों और मनुष्यों की आँखों में अंतर

मनुष्यों और जानवरों की आँखों की संरचना में कई महत्वपूर्ण अंतर होते हैं, जो उनकी देखने की क्षमता और रोशनी के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं। जानवरों की आँखों में टेपेटम ल्यूसीडम नामक परावर्तक परत पाई जाती है, जो कम रोशनी में देखने की क्षमता को बढ़ाती है, जबकि मनुष्यों में यह परत नहीं होती। इसके अलावा, जानवरों की आँखों में रॉड कोशिकाएँ (Rod Cells) अधिक होती हैं, जिससे वे अंधेरे में बेहतर देख सकते हैं, जबकि मनुष्यों की आँखों में कोन कोशिकाएँ (Cone Cells) अधिक होती हैं, जो उन्हें रंगों की पहचान में मदद करती हैं। रात्रिचर जानवरों की आँखें विशेष रूप से अंधेरे में देखने के लिए विकसित होती हैं, जबकि मनुष्य दिन की रोशनी में देखने के लिए अनुकूलित होते हैं।

इसके अतिरिक्त, जानवरों की आँखों की चमक कैमरा फ्लैश में भी देखी जा सकती है, क्योंकि टेपेटम ल्यूसीडम परत प्रकाश को परावर्तित करती है, जबकि मनुष्यों की आँखों में यह परत न होने के कारण कैमरा फ्लैश में उनकी आँखें लाल दिखाई देती हैं, जिसे "रेड आई इफेक्ट" कहा जाता है। यह अंतर प्रकृति के अनुकूलन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो प्रत्येक जीव को उसकी आवश्यकताओं के अनुसार विकसित करता है।

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