गंगा मेला पर महिलाओं ने फोड़ी दही हांडी तो लोगों ने खेला गुलाल, आजादी से जुड़ा है इसका इतिहास

Update:2017-03-18 16:24 IST

कानपुर: वैसे पूरे देश में होली सिर्फ एक ही दिन मनाई जाती है पर कानपुर में होली के बाद गंगामेला के दिन भी जमकर होली खेली जाती है। शहर के हटिया और पुराने मोहल्ले सहित पूरे शहर में होली की बयार गंगामेला के दिन भी जमकर बहती है। हटिया बाजार के कई इलाकों में लगातार 7 दिनों तक जमकर होली खेली जाती थी। इसके पीछे का इतिहास देश की आजादी के पहले का है और आज भी यहां के बुजुर्ग अपने पुराने दिनों की यादों को ताजा कर रोमांचित हो जाते हैं।

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होली मनाने के पीछे की कहानी

यहां की होली का इतिहास देश की आजादी की लड़ाई से जुड़ा इतिहास हुआ है। बताया जाता है कि साल 1942 में होली के दिन यहां के नौजवानों ने रज्जन बाबू के पार्क में लगे बिहारी भवन से भी ऊंचे लोहे की रॉड पर तिरंगा फहरा दिया था। इसके बाद वे गुलाल उड़ाते हुए नाच-गा रहे थे। इसकी जानकारी मिलते ही अंग्रेज सिपाही घोड़े पर सवार होकर वहां पहुंचे और झंडा उतारने का आदेश दिया। इसी के बाद सिपाहियों और अंग्रेजों में जंग छिड़ गई। तिरंगा फहराने और होली मनाने के विरोध में हमीद खान, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा,गुलाब चंद्र सेठ, विश्वनाथ टंडन, गिरिधर शर्मा सहित एक दर्जन से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया । पर अंग्रेजों के इस कृत्य के बाद उनका जमकर विरोध शुरू हो गया। गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर का पूरा बाजार बंद हो गया। विरोध दर्शाते हुए लोगों ने अपने चेहरे के रंग तक नहीं साफ किए। शहर की दुकाने और प्रतिष्ठानों में बंदी कर ताले लगा दिए गये lयहाँ तक कि इसके विरोध में मीलो और फैक्ट्रियो के मजदूर तक हड़ताल पर चले गए और कानपुर पूर्ण रूप से बंद हो गया। पुराने लोगों के अनुसार इस बंदी और विरोध और कानपुर आंदोलन की गूंज सात समंदर पार तक पहुंच गई। जिससे उस आंदोलन ने तीसरे दिन तक और तेजी पकड़ ली और तब अंग्रेजों की जड़ें तक हिल गयी । हड़ताल के चौथे दिन अंग्रेजों के एक बड़े अफसर ने यहां आकर लोगों से बात की। इसके बाद होली के पांचवे दिन पकड़े गए सभी युवकों को छोड़ने का एलान किया गया उस दिन अनुराधा नक्षत्र' की तिथि थी । इस दौरान पूरे शहर के लोग जेल के बाहर इकट्ठा हो गए थे। जेल में बंद युवकों ने भी अपने चेहरों से रंग नहीं छुड़ाया था ।

जेल से रिहा होने के बाद जुलुस निकाल कर इन सबको सरसैया घाट स्नान के लिए ले जाया गया और जो होली, होलिका दहन के बाद नहीं खेली जा सकी थी, वह उस दिन सरसैया घाट के तट पर गुलाल लगाकर खेली गयी। तभी से होलिका दहन से लेकर किसी भी दिन पड़ने वाले 'अनुराधा नक्षत्र' की तिथि तक कानपुर में होली खेली जाती है।

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स्थानीय लोगों ने बताया कि सालों से चली आ रही इस परंपरा को हर साल निभाया जाता आ रहा है। हालांकि, अब केवल दो दिन ही होली खेली जाती है। गंगा मेला के दिन यहां खूब होली खेली जाती है। साथ ही ठेले पर रंग का जुलूस निकाला जाता है। शासन, प्रशासन, व्यापारी और प्रबुद्ध वर्ग के साथ सामाजिक संगठन एवं आम शहरी भी मेले में अपनी भागीदारी निभाते हैं। यह एक ऐसा लोकोत्सव है जिसमें सही मायने में पूरा शहर शामिल होकर एक हो जाता है।

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इधर यहां महिलाओं ने भी दही हांडी फोड़ कर जश्न मनाया। होली से ज्यादा यहां गंगा मेला का महत्व है। महिलाओ ने दही हांड़ी फोड़ कर इस अवसर को बड़ी ही ख़ुशी के के साथ मनाया। कानपुर का गंगा मेला इतिहास आजादी की क्रांति से जुड़ा हुआ है। इस मौके पर कानपुर की महिलाओं ने दही हांड़ी फोड़ कर बड़े ही उत्साह के साथ अबीर और गुलाल उड़ा कर मनाया l इस मौके पर सभी समुदाय के लोग मौजूद रहे। जिसने यह साबित कर दिया कि यह गंगा यमुना तहजीब का पर्व है l

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