Riba Haram Kyun Hai: रिबा क्या है, जिसे कुरान में मना किया गया है, इस्लाम में इसे कहा गया है बड़ा गुनाह

Riba Haram Kyun Mana Jata Hai: शरिया कानून के अंतर्गत, रिबा को प्रतिबंधित किया गया है। लेकिन ऐसा क्यों है। जानते हैं रिबा क्या है और इसके प्रतिबंधित होने की वजह।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-04-05 13:00 IST
Riba Kya Hai: रिबा क्या है, जिसे कुरान में मना किया गया है, इस्लाम में इसे कहा गया है बड़ा गुनाह

Riba Kya Hai (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

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Riba Kya Hai: ‘रिबा’ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘बढ़ाना’ या ‘अधिक लेना’। इस्लामी वित्त में इसका आशय उस ब्याज से है, जो ऋण पर वसूला जाता है। किसी ऋण पर ब्याज लेना रिबा (Riba) माना जाता है, जो इस्लामी कानून (शरिया) के अनुसार अन्यायपूर्ण, शोषणकारी लाभ है। इसे हराम (निषिद्ध) घोषित किया गया है।

रिबा की समझ (Riba In Islam)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

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इस्लामी बैंकिंग में रिबा एक ऐसा विचार है जो ब्याज वसूली से संबंधित है। इसे कभी-कभी सूदी प्रथा (Usury) के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें अत्यधिक ब्याज दरें ली जाती हैं।

शरिया कानून के अंतर्गत, रिबा को प्रतिबंधित किया गया है। ताकि वाणिज्यिक लेन-देन में न्याय और समता सुनिश्चित हो सके। एक अन्य प्रकार की रिबा उस स्थिति को दर्शाती है जब किसी वस्तु का लेन-देन असमान मात्रा या गुणवत्ता में किया जाता है। यह भी निषिद्ध है।

रिबा बनाम मुराबहा (Riba vs Murabaha)

मुराबहा एक इस्लामी वित्तीय संरचना है, जिसमें विक्रेता और खरीदार किसी संपत्ति की लागत और लाभांश (मार्कअप) पर सहमत होते हैं। यह लाभांश ब्याज की जगह लेता है, इसलिए इसे इस्लामी कानून में मान्य माना गया है।

मुराबहा को ‘कॉस्ट-प्लस फाइनेंसिंग’ (Cost-plus Financing) भी कहा जाता है।

यह ब्याज पर आधारित ऋण (Qardh Ribawi) नहीं होता।

खरीदार को जब तक पूरी कीमत न चुका दी जाए, तब तक वह वास्तविक स्वामी नहीं बनता, बिल्कुल ‘किराए पर लेकर ख़रीदने’ ( Rent-to-own) वाली व्यवस्था की तरह।

इस्लामी दृष्टिकोण (Islamic Perspective)

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इस्लाम धर्म में दया, परोपकार और सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है। स्वार्थ और लालच को सामाजिक शत्रुता, अविश्वास और विद्वेष का कारण माना जाता है। इसी कारण से ब्याज या रिबा को निषिद्ध घोषित किया गया है।

रिबा की व्याख्याएँ (Interpretations of Riba)

हालाँकि सभी मुस्लिम विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि रिबा हराम है, लेकिन इसमें मतभेद है कि क्या:

हर प्रकार का ब्याज निषिद्ध है? या केवल अत्यधिक ब्याज ही वर्जित है?

कुछ आधुनिक इस्लामी विद्वानों का मानना है कि मुद्रास्फीति (inflation) के मूल्य की पूर्ति के लिए न्यूनतम ब्याज स्वीकार्य हो सकता है, ताकि पैसे के समय मूल्य की भरपाई हो सके बिना अत्यधिक लाभ के।

फिर भी, अधिकतर मुस्लिम देशों और इस्लामी वित्तीय संस्थाओं में रिबा को पूर्णतः निषिद्ध माना गया है।

इतिहास में रिबा से संघर्ष

20वीं सदी के मध्य तक, मुस्लिम विश्व ने धार्मिक, नैतिक और कानूनी रूप से रिबा के खिलाफ संघर्ष किया।

फ्रांसीसी इस्लाम विशेषज्ञ गिल्स केपेल ने अपनी पुस्तक ‘Jihad: The Trail of Political Islam’ में लिखा:“चूँकि आधुनिक अर्थव्यवस्था ब्याज दरों और बीमा पर आधारित होती है, इसलिए कई इस्लामी न्यायविदों ने ऐसे रास्ते खोजने की कोशिश की जिससे इन तत्वों का उपयोग किया जा सके, लेकिन ऐसा करते हुए इस्लामिक नियमों का उल्लंघन न हो।” लेकिन 1970 के दशक तक, ब्याज पर पूरी तरह से प्रतिबंध को फिर से लागू कर दिया गया।

इस्लामी बैंकिंग और रिबा से बचाव (Islamic banking and avoidance of Riba)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

शरिया-समर्पित बैंक लाभ-साझेदारी के मॉडल पर कार्य करते हैं। बैंक उधारकर्ता से ब्याज की जगह लाभ का हिस्सा लेते हैं। इस तरीके से रिबा से बचा जाता है और फिर भी बैंकिंग प्रणाली सफल रहती है। दुनियाभर में लगभग 560 बैंक ऐसे हैं जो इस्लामी सिद्धांतों पर कार्य करते हैं।

रिबा का अर्थ और रूप

रिबा का शाब्दिक अर्थ: ‘बढ़ना’ या ‘अधिक होना’।

रिबा के दो मुख्य प्रकार:

रिबा अल-नसीया: ऋण अनुबंध में ब्याज का समावेश (loan interest)

रिबा अल-फदल: व्यापार या विनिमय अनुबंध में असमान वस्तुओं या मात्रा का आदान-प्रदान

दोनों ही स्थितियों में लेन-देन का न्यायसंगत होना अनिवार्य है।

रिबा निषिद्ध क्यों है?

कुरान में ब्याज लेने या देने को पाप माना गया है क्योंकि यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देता है।

ब्याज गरीब और अमीर के बीच अंतर को बढ़ाता है।

जो लोग ब्याज से लाभ कमाते हैं, उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे इसे दान करें।

रिबा इस्लामी वित्त का एक केंद्रीय सिद्धांत है, जो आर्थिक लेन-देन को नैतिक मूल्यों के अनुरूप बनाता है।

कुरान ब्याज को शोषणकारी मानता है और यह नियम केवल मुसलमानों तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी और कई अन्य लोग भी इस नैतिक सिद्धांत का सम्मान करते हैं।

इस्लाम रिबा (ब्याज) को क्यों मना करता है?

इस्लाम में रिबा को केवल एक वित्तीय प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक नैतिक पतन, सामाजिक अन्याय और धार्मिक विद्रोह के रूप में देखा गया है। इसके निषेध के पीछे कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-

1. धन का केंद्रीकरण रोकना:

रिबा से धनी लोग और अधिक धनी होते हैं और गरीब लोग कर्ज के बोझ में दबते चले जाते हैं। इससे समाज में असमानता और अन्याय बढ़ता है।

2. सहानुभूति और मानवता की भावना:

इस्लाम जरूरतमंद को उधार देने को एक सदका (दान) या भलाई का कार्य मानता है। लेकिन जब इसी पर ब्याज लिया जाता है, तो यह परोपकार को शोषण में बदल देता है।

3. अर्थव्यवस्था में नैतिकता का समावेश:

इस्लाम केवल आर्थिक गतिविधियों के लाभ को नहीं देखता, बल्कि यह भी देखता है कि वह लाभ कैसे अर्जित किया गया। रिबा को अनैतिक माना गया है, क्योंकि इसमें बिना परिश्रम के धन अर्जन होता है।

4. मानव गरिमा की रक्षा:

ब्याज से पीड़ित व्यक्ति अक्सर सामाजिक रूप से अपमानित होता है। इस्लाम इस अपमानजनक शोषण को रोककर व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करता है।

5. ईश्वर की आज्ञा के विरुद्ध जाना:

कुरआन और हदीस दोनों में बार-बार रिबा को हराम (निषिद्ध) करार दिया गया है। इसका पालन न करना सीधे-सीधे अल्लाह के आदेश की अवहेलना करना है, जिसकी सजा प्रलय के दिन घोर होगी।

आधुनिक युग में इस्लामी दृष्टिकोण:

आज के समय में, जब अधिकतर बैंक और वित्तीय संस्थाएं ब्याज आधारित काम करती हैं, तब इस्लामिक फाइनेंस का एक वैकल्पिक मॉडल सामने आया है:

✔️ मुरबाहा – लाभ-आधारित व्यापार मॉडल।

✔️ मुदारबा – साझेदारी पर आधारित निवेश।

✔️ मुशरका – संयुक्त उद्यम मॉडल।

✔️ इजारा – किराए पर आधारित लेनदेन।

इन मॉडलों में रिबा से परहेज़ करते हुए इन्साफ, जोखिम-साझेदारी और नैतिक लाभ पर बल दिया जाता है।

कुरान और सुन्नत में रिबा को कैसे निषिद्ध किया गया है

कुरान की कई आयतों में रिबा के निषेध का उल्लेख किया गया है।रिबा को निषिद्ध करने की अवधारणा इस विचार से उपजी है कि धन का उपयोग दूसरों का फायदा उठाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सभी वित्तीय लेन-देन न्यायपूर्ण और निष्पक्ष होने चाहिए। इसे गरीबों और कमजोर लोगों को वित्तीय शोषण से बचाने के तरीके के रूप में भी देखा जाता है।

कुरान और सुन्नत में सूद पर स्पष्ट और स्पष्ट प्रतिबंध है। इस मामले में व्याख्या या बहस की कोई गुंजाइश नहीं है। मुसलमानों को सूद के निषेध का पालन करना चाहिए और ब्याज से जुड़े सभी प्रकार के वित्तीय लेन-देन से बचना चाहिए।

मुसलमान रिबा (सूद) से कैसे बच सकते हैं?

आज की दुनिया में जहाँ सूद (रिबा) आम हो चुका है, वहाँ इससे पूरी तरह बचना काफी मुश्किल हो गया है। अधिकतर बैंक, होम लोन और फाइनेंस सिस्टम किसी न किसी रूप में सूध से जुड़े होते हैं।

कुछ इस्लामी विद्वानों की राय में ऐसे हालात में जहाँ कोई दूसरा रास्ता न हो, रिबा को कुछ हद तक बर्दाश्त किया जा सकता है। लेकिन इस बारे में सही मार्गदर्शन पाने के लिए अपने नजदीकी इमाम से सलाह लेना ज़रूरी है।

रिबा से बचने के कुछ आसान उपाय (Easy Ways to Avoid Riba)

कोशिश करें कि क्रेडिट कार्ड न लें। सिर्फ इंटरेस्ट-फ्री डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करें। क्रेडिट कार्ड में खरीदारी तो तुरंत हो जाती है। लेकिन चुकाने में देर करने पर भारी सूद देना पड़ता है।

अगर क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल जरूरी हो, तो कोशिश करें कि उधारी जल्द से जल्द चुका दें ताकि उस पर सूद न लगे।

घर खरीदने के लिए अगर मुमकिन हो, तो लोन लेने की बजाय किराए पर घर लें, या फिर परिवार और दोस्तों से बिना सूद के उधार लेकर घर खरीदने की कोशिश करें।

इस्लामी फाइनेंस विकल्पों की तलाश करें। इस वक्त दुनिया के करीब 23 देशों में 50 से ज्यादा इस्लामी बैंक काम कर रहे हैं। कुछ गैर-इस्लामी बैंक भी ‘इस्लामिक विंडो’ के ज़रिए इस्लामी बैंकिंग सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे बैंक इस्लामी तरीके से होम लोन भी देते हैं, जिनमें सूद नहीं होता।

रिबा से बचना आज के समय में कठिन ज़रूर है। लेकिन नामुमकिन नहीं। सही जानकारी, योजना और नीयत से हम अपने जीवन को इस्लामी उसूलों के अनुसार ढाल सकते हैं।

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