जयपुर: आज भारत का स्वतंत्रता दिवस है, जिसे दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने डूडल बनाकर सेलेब्रटी किया है। भारत कितनी मुश्किलों से आजाद हुआ, यह हम सभी जानते हैं। लाखों लोगों ने कुर्बानियां दीं, आवाम ने लंबे समय तक कठिन संघर्ष किया, हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को जेल की यातनाएं भुगतनी पड़ीं। बलिदानों की राह चल कर करीब 90 वर्ष के रक्तिल संघर्ष के बाद भारत को स्वतंत्रता हासिल हुई। आज जब हम अपनी आजादी के 71 साल पूरे कर लिए हैं तो यह सवाल लाजिमी है कि क्या हमारे वीर सपूतों ने जिस सपने, जिस लक्ष्य के लिए आजादी पाई, क्या वे पूरे हुए। भारत को एक स्वतंत्र, खुशहाल व संप्रभु राष्ट्र बनाने के जिस मकसद को लेकर हम चले थे, क्या हम वहां पहुंच पाए।
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15 अगस्त 1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली और इन 71 सालों में हमारा देश लगातार प्रगति पर है। यह ठीक है कि हमने अनेक क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की, हमारा मंगल मिशन, हमारी विज्ञान व तकनीक की उपलब्धियां, हमारा साफटवेयर, औद्योगिक उत्पादन, अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता, चेचक पर काबू, सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक, विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था आदि इसके गवाह हैं, लेकिन हम स्वतंत्रता के असली मकसद को अभी तक प्राप्त नहीं कर सके हैं। 26 जनवरी 1950 को हमने अपने जिस संविधान को अंगीकृत किया, उसका लक्ष्य भारत को समता, स्वतंत्रता, बंधुता व एकता पर आधारित गणराज्य बनाना है, लेकिन आज हम अपनी स्वतंत्रता का इस्तेमाल किसलिए कर रहे हैं- झूठ फैलाने के लिए कर रहे हैं, अफवाह फैलाने के लिए कर रहे हैं, जाति के नाम पर विभाजन के लिए कर रहे हैं, धर्म के नाम पर नफरत फैलाने के लिए कर रहे हैं। क्या हमने इन्हीं कुविचारों के लिए स्वतंत्रता हासिल की थी।
यह हमें सुखद एहसास नहीं देता है। हाल के वर्षां में वोट की राजनीति जिस तेजी से सामाजिक विभाजन पैदा कर रही है व धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दे रही है और आर्थिक विषमताएं बढ़ रही हैं, वह डराने वाली है। निरा राष्ट्रवाद के नाम पर हर असहमति को देशद्रोह का जामा पहनाने की कोशिश हमारी स्वतंत्रता पर ही कुठाराघात है। हमें जल्द से जल्द भटकाव से विलग होगा पड़ेगा। राष्ट्र निर्माण के अधूरे सपनों को साकार करने का संकल्प ही स्वतंत्रता दिवस की सार्थकता है।