एक दूसरे से करते हैं प्यार हम,एक दूसरे के लिए बेकरार हम! कुछ ऐसी है यहां हिंदू-मुस्लिम एकता

Update: 2017-03-30 11:07 GMT

आगरा: एक तरफ जहां पूरे देश में एक बार फिर से राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद को लेकर चर्चा ज़ोरों पर है, वहीं सुलहकुल की नगरी आगरा के पास एक गांव ऐसा भी है, जहां मुस्लिमों के नाम 'किशोर' और 'अशोक' मिलेंगे, तो हिंदू 'मलूक' और 'अब्दुल' के नाम से पुकारे जाते हैं।

ये ऐसा गांव है, जहां मुस्लिम संस्कृत में श्लोक पढ़ ही नहीं लेते बल्कि उनका अर्थ भी बता देते हैं। हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल ये गांव पूरे देश को मानवता का संदेश देना चाहता है। चाहे देश में कहीं भी कभी दंगे हुए हों, लेकिन इस गांव में आज तक एक भी बार झगड़ा नहीं हुआ।

जानिए क्या है एकता के मिसाल बने इस गांव का नाम

⁠⁠⁠भारत में एक जगह ऐसी है, जहां के लोगों को आप अगर सांप्रदायिकता या लव जिहाद का मतलब समझाने की कोशिश भी करेंगे, तो विफल हो जाएंगे। यह है आगरा का खेड़ा साधन। इस जगह का इतिहास ऐसा है कि लव जिहाद जैसे शब्दों के लिए जगह ही नहीं है। 1658 से 1707 के बीच जब मुल्क पर मुगल बादशाह औरंगजेब का राज था, तो गांव वालों को कहा गया कि या तो आप इस्लाम कबूल कर लें या फिर गांव खाली कर दें।

उस वक्त सभी ने अपना धर्म बदल दिया। आजादी के बाद कुछ लोगों ने यहां के लोगों को वापस हिंदू बनाने की कोशिश की। कुछ हिंदू हुए, कुछ मुसलमान ही रह गए। लेकिन इसके बाद इन लोगों के लिए धर्म के मायने ही खत्म हो गए।

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एक ही परिवार में हैं हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग

आगरा से 50 किलोमीटर दूर इस गांव की आबादी है करीब 7 हजार है, जिसमें से लगभग ढाई हजार सदस्य मुस्लिम हैं। खेड़ा साधन में एक परिवार में अगर चार भाई हैं, तो उनमें से दो हिंदू हैं और दो मुसलमान। पति अगर हिंदू है तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी पत्नी मुसलमान है। उसके बच्चों के नाम हिंदू परंपरा से रखे गए हैं या इस्लामिक। यहां मुसलमान मंदिरों में जाते हैं और हिंदू दरगाहों पर।

ईद और दीवाली पर आप किसी घर को देखकर नहीं बता सकते कि कहां कौन से धर्म के लोग रहते हैं? जहां अतर सिंह के पिता का नाम रिजवान और मलूक के दादा का नाम सुलेमान है, वहीं अरमान के पिता का नाम राजपाल है। चाहे हिंदू धर्म से अतर सिंह हो या मलूक सिंह, उदय सिंह या फिर मुस्लिम धर्म से अरमान अशोक या बंटू, सबका एक ही मत है कि भाईचारे से रहना चाहिए। जाति-धर्म से कुछ नहीं होता है।

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गीता और कुरान एक साथ रखे रियाज अहमद कहते हैं कि जब हम सांप्रदायकि दंगों की बात सुनते हैं, तो बहुत हैरत होती है। वह बताते हैं कि गांव के बाकी लोगों की तरह वह होली और दीवाली भी खूब धूमधाम से मनाते हैं। यहां इस्लाम की सिर्फ तीन मान्यताएं हैं, खतना, हलाल मीट और अंतिम संस्कार। बाकी किसी लिहाज से मुसलमान हिंदू से जुदा नहीं हैं। उनका कहना है कि सबको मिलजुल कर रहना चाहिए। स्लाटर हाउस बंद होने पर उन्होंने कहा कि मांसाहार से नफरत करने वालों को मांस नहीं खाना चाहिए।

यह कहना है वहां के लोगों का

वहीं नवरात्रों से कुछ दिन पूर्व करोली जाकर देवी माता के दर्शन करके आए स्थानीय निवासी असरार ने बताया कि इस गांव में सब मिलजुलकर रहते हैं, पूजा करते हैं। त्यौहार मनाते हैं। अगर हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे के धर्म ग्रंथों का अध्ययन कर लें, तो हकीकत में झगड़ा ही ख़तम हो जाए क्योंकि भ्रांतियां धर्म के ठेकेदारों ने पैदा कर दी हैं।

देश में चाहे कुछ भी चल रहा हो, इस गांव के लोग आपसी भाईचारे और सौहार्द से पूरे देश को अमन-चैन का पैगाम देते हैं। न यहां मुस्लिम कट्टरवाद हावी है, न हिंदू कट्टरवाद। अगर कुछ है, तो वह है सिर्फ प्रेमवाद।

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