पीएम मोदी ने 'मन की बात' में की इस लड़के की तारीफ, वजह कर देगी दंग

Update: 2018-07-29 08:42 GMT

लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 46वीं बार 'मन की बात' कार्यक्रम में अपना संबोधन दिया। इस कार्यक्रम में पीएम ने आठ खास छात्रों की तारीफ भी की। इनमें से एक आशाराम चौधरी भी है। वह एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है। उसने अपने पहले ही प्रयास में एम्स में दाखिले के लिए आयोजित 'नीट' प्रवेश परीक्षा को पास किया है। वहीं एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने एम्स की फ़ीस माफ़ करने और घर में शौचालय बनवाने की भी बात कही है।

newstrack.com आगे आपको आशाराम चौधरी की अनटोल्ड स्टोरी के बारे में बताने जा रहा है।

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पिता बीनते है कूड़ा

आशाराम (18) का जन्म एमपी के देवास जिले के एक छोटे से गांव विजयगंज मंडी में हुआ था। उसके पिता रंजीत कूड़ा बीनकर अपने परिवार के लिए दो वक्‍त की रोटी जुटा पाते हैं। उसका पूरा परिवार एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहता है। बरसात में उसके घर में पानी भर जाता है। पढ़ने के लिए बिजली की कोई व्यवस्था भी नहीं है। उसने स्ट्रीट लाईट की रोशनी में पढ़कर हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। फ़ीस जमा करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। जिला प्रशासन की मदद से उसे बीपीएल कार्ड मिला। इससे उसे अपनी पढ़ाई में काफी मदद मिली। घर में राशन भी बीपीएल कार्ड से ही आता है।

ऐसे किया एम्स इंट्रेस क्वालीफाई

आशाराम को पुणे की दक्षिणा फाउंडेशन ने स्‍कॉलरशिप के लिए चुना था। इसके तहत उसे पुणे में ही परीक्षा की तैयारी करवाई जा रही थी। उसने इसी साल जोधपुर-एम्‍स म एडमिशन के लिए इंट्रेंस एग्जाम दिया था। उसकी ऑल इंडिया रैंक में 707वां स्‍थान है और ओबीसी कैटिगरी में उसे 141 वीं जगह मिली है। आशाराम ने बताया, मेरी सफलता में दक्षिणा फाउंडेशन का बराबर बहुत बड़ा योगदान है। उसने अपनी सफलता का श्रेय अपने पैरेंट्स और टीचर्स को भी दिया है।

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पिता को नहीं है 'नीट' के बारे में जानकारी

आशाराम ने बताया मेरे पिता अशिक्षित है। उन्हें 'नीट exam के बारे में कोई जानकारी नहीं है। गांव के कुछ लोगों ने नीट इन्ट्रेस एग्जाम पास करने पर मेरे पिता को बधाई देनी चाही लेकिन वे पहले तो हंस कर उनकी बातों को टाल गये। जैसे ये कोई समान्य बात हो। लेकिन वक्त बीतने के साथ ही लोगों से मिल रही तारीफ के बाद अब वह भी काफी खुश है।

मेस की फ़ीस जमा करने के नहीं है पैसे

आशाराम अब एम्‍स के मेस की फीस जुटाने के लिए प्रयासरत है। उसने बताया, ‘मुझे 36 हजार रुपये मैस की फीस और 8 हजार रुपये किताबों के देने हैं। हालांकि मैंने किताबों के लिए पैसों का इंतजाम कर लिया है लेकिन मैस की फीस अभी नहीं हो पाई है। मैं चाहता हूं कि एमबीबीएस की पढ़ाई में हर साल मुझे गोल्‍ड मेडल मिले। मेरे गांव ने जो मुझे इतना कुछ दिया है मुझे वह लौटाना भी है। यहां एक भी अच्‍छा डॉक्‍टर नहीं है।

 

 

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