यूपी की ये छोरियां नहीं हैं छोरों से कम, परिवार को है बेटियों पर नाज

अभी हाल में आई आमिर खान की फिल्म दंगल का एक डायलॉग सभी की जुबान पर खूब चढ़ा हुआ हैं "म्हारी छोरिया छोरों से कम हैं के" जो रहमतनगर की रिटायर्ड अध्यापिका नूरुस्सबा खान की आठ बेटियों पर सटीक बैठता हैं। सभी बेटियां परास्नातक तो हैं ही साथ ऊंचे ओहदों पर मां-बाप का नाम रोशन कर रही हैं।

Update:2017-01-21 18:06 IST

गोरखपुर: अभी हाल में आई आमिर खान की फिल्म दंगल का एक डायलॉग सभी की जुबान पर खूब चढ़ा हुआ हैं "म्हारी छोरिया छोरों से कम हैं के" जो रहमतनगर की रिटायर्ड अध्यापिका नूरुस्सबा खान की आठ बेटियों पर सटीक बैठता हैं। सभी बेटियां परास्नातक तो हैं ही साथ ऊंचे ओहदों पर मां-बाप का नाम रोशन कर रही हैं।

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अलीम आलमी और नूरुस्सबा को कोई बेटा नहीं हैं लेकिन आठों बेटियां बेटों से कम बिल्कुल भी नहीं हैं। आठों बेटियां अपने मां-बाप पर जान छिड़कती हैं। सभी के अच्छे घरों में रिश्ते भी हो गए हैं। पांच तो गोरखपुर में और तीन दिल्ली, अहमदाबाद व गोंडा में हैं।

आज कल महंगाई के जमाने में तीन-चार लड़के-लड़कियों की परवरिश करनी मुश्किल होती हैं।वहीं आठ लड़कियों की परवरिश, तालीम और संस्कार देना कोई मामूली काम नहीं हैं।

क्या करती हैं आलमी दंपत्ति की बेटियां

-आलमी दंपत्ति की बड़ी लड़की रखशां अालमी इमामबाड़ा गलर्स इंटर कालेज में वरिष्ठ अध्यापिका हैं।

-दूसरे नम्बर की निशात अलमी जाने माले कॉर्मल स्कूल सिविल लाइन में वरिष्ठ अध्यापिका के पद पर हैं ।

-तीसरे व चौथे नम्बर की सुआद अंदलिब सीनियर मैनेजर व रेशमा आलमी सहारा इंडिया में मैनेजर हैं परिवार में।

-पांचवे नम्बर की हिजाब अालमी गोंडा जिला में सरकारी अध्यापिका हैं।

-छठें नम्बर की जुफिशां आलमी इलाहीबाग स्थित महफिल मैरेज हॉल का संचालन करती हैं।

-सातवें नम्बर की असफिया अालमी दिल्ली में फिजियो थेरेपिस्ट हैं।

-सबसे छोटी संदल अालमी अहमदाबाद में इंजीनियर हैं (एमटेक )।

कुल मिलाकर रहमतनगर की बेटियां पूरे समाज पर रहमत बनी हुई हैं। खास कर मुस्लिम समाज तालीम में काफी पीछे हैं वहीं इन लड़कियों का कारनामा समाज को फख्र महसूस करने का मौका इनायत करा रहा हैं और एक नयी सोच का संचार भी पैदा कर रहा हैं।

सोचने का मकाम यह हैं कि अलीम आलमी रेलवे में जॉब करते थे और नूरुस्सबा खान अध्यापिका थी। कितनी बिजी जिंदगी में अपनी आठों लड़कियों की तालीम के लिए वक्त निकाला। बेटियों की परवरिश वर्तमान परिवेश और बेहतर तरीके से करना आसान काम न था। लेकिन इनका हौसला और बेहतर संस्कार बच्चों को सफल शहरी और कुशल गृहणी बना दिया।

क्या कहते हैं आलमी ?

आलमी साहब ने बताया कि उनकी बेटियों ने इस बात का एहसास ही नहीं करने दिया कि उनके पास एक बेटा भी होता। उन्होंने कहा कि हर लड़की के जन्म पर हमनें खुदा का शुक्र अदा किया और एक जिम्मेदारी का एहसास करते हुए अपने आप को गौरवान्वित महसूस किया। बेटियां खुदा की रहमत हैं।

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