कठिन है पूर्वांचल की डगर, टिकट बंटवारे में योगी की भूमिका तय करेगी बीजेपी का भाग्य
इस बार यह तय है, कि दोनों मंडलों में हिन्दुत्व, राममंदिर, गाय, गंगा, भारत माता का मुद्दा हावी नहीं रहा है। क्योंकि फर्टिलाइजर प्लांट के शिलान्यास में पहुंचे पीएम मोदी ने विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात कही थी।
गोरखपुर: विधानसभा चुनाव के लिए पूर्वांचल बेहद अहम क्षेत्र है। यहां गोरखपुर-बस्ती मंडल में 7 जिले है और 41 विधानसभा क्षेत्र हैं। यहां अब तक बीजेपी और योगी आदित्यनाथ का उतना जादू नहीं चला, जितना दावा किया जाता है। फिर भी कहा जा सकता है, कि पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की सीटें नरेन्द्र मोदी की सुनामी में बह कर बीजेपी के थैली में जा गिरी थीं।
अहम है योगी का मूड
-पिछले विधानसभा चुनाव 2012 में सिद्धार्थनगर की 5 सीटों में- बांसी, देवरिया की 7 सीटों में- देवरिया सदर, गोरखपुर की 9 सीटों में- गोरखपुर शहर, ग्रामीण, खजनी, महराजगंज की 5 सीटों में- फरेंदा और कुशीनगर की 7 सीटों में- फाजिलनगर में ही खाता खुला।
-वहीं बस्ती की 5 और संतकबीरनगर की 3 सीटों पर बीजेपी का कोई प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर सका।
-बात करे प्रत्याशियों के चयन की, तो पिछले चुनाव में टिकट वितरण को लेकर योगी आदित्यनाथ और पार्टी के बीच तनातनी हो गई थी।
-योगी आदित्यनाथ बांसगांव, डुमरियागंज, बस्ती, खलीलाबाद, कपिलवस्तु सीटों पर हिंदू युवा वाहिनी के लोगों को चुनाव लड़वाना चाहते थे लेकिन पार्टी नहीं मानी।
-नतीजा यह रहा कि पार्टी के कद्दावर नेता सूर्य प्रताप शाही और रमापति राम त्रिपाठी भी चुनाव हार गए।
भीतरी बनाम बाहरी
-बीजेपी जानती है कि विधानसभा के लिए 265 प्लस सीटें पानी हैं, तो इस क्षेत्र से भी ठीक-ठाक संख्या में सीटें निकालनी पड़ेंगी।
-बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने क्षेत्र में प्रभावी योगी आदित्यनाथ को सीटें निकालने की जिम्मेदारी दी है।
-लेकिन, दूसरी तरफ पार्टी ने बीएसपी से बगावत करके आए स्वामी प्रसाद मौर्य, राजेश त्रिपाठी, रामभुआल निषाद को भी महत्व दिया है।
-टिकट को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच ठन जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
-अगर पिछले चुनाव की तरह इस बार भी टिकटों पर तनातनी रही तो इन दोनों मंडलों से बीजेपी को सीट निकालने में काफी दिक्कतें आएंगी।
-गोरखपुर ग्रामीण से विधायक विजय बहादुर यादव ने बीजेपी से किनारा कर सपा से टिकट हासिल कर लिया है।
-बीजेपी में टिकटों का ऐलान होने वाला है और इसके बंटवारे को लेकर घमासान से इनकार नहीं किया जा सकता।
विकास है मुद्दा
-लेकिन इस बार यह तय है, कि दोनों मंडलों में हिन्दुत्व, राममंदिर, गाय, गंगा, भारत माता का मुद्दा हावी नहीं रहा है।
-क्योंकि फर्टिलाइजर प्लांट के शिलान्यास में पहुंचे पीएम मोदी ने विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात कही थी।
-पीएम नरेन्द्र मोदी की छवि, एम्स की स्थापना और खाद कारखाना ही बीजेपी को 7 सीटों से आगे का सफर तय करवाने में मददगार साबित हो सकते हैं।
उलटे न पड़ जाएं दांव
-अभी के हालात देखें तो बीजेपी दूसरे दलों जैसे बीएसपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बागियों को दल में शामिल करने में जुटी है।
-लेकिन बीजेपी का यह दांव उल्टा पड़ने की भी पूरी गुंजाइश है।
-इसकी वजह यह है कि खुद पार्टी के भीतर टिकट के इतने दावेदार हैं कि बाहर वालों के लिए गुंजाइश ही नहीं है।
-दूसरी तरफ जो टिकट के लिए बीजेपी में शामिल हुए हैं, अगर उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे बागी हो सकते हैं।
-पार्टी के लिए एक खतरा यह भी है कि बाहर वालों को तवज्जो ज्यादा दे दी तो भाजपा के अंदर वाले नाराज हो सकते हैं।
-यानी, पार्टी उप्र विधानसभा चुनाव का सफर दोधारी तलवार पर तय कर रही है।
-हां, दल बदल कर आए लोगों के लिए भी एक संकट है कि वे दूसरे दलों से बगावत करके टिकट के लिए आए हैं, अब अगर उन्हें बीजेपी से टिकट नहीं मिला, तो वे न इधर के रहेंगे, न उधर के।
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