बाहुबलियों का क्षेत्र रहा है चिल्लूपार, संघर्ष कर रहे हैं सत्ता के समीकरण तय करने वाले

फिर एक समय वह भी आया जब श्मशान बाबा पं राजेश त्रिपाठी ने उन्हें चिल्लूपार में ही हरा दिया। 2007 के चुनाव में हरि शंकर तिवारी ने पहली बार बसपा के राजेश त्रिपाठी से हार का स्वाद चखा और 2012 में वह राजेश त्रिपाठी से फिर हार गए।

Update:2017-01-19 14:36 IST

गोरखपुर: जिले के दक्षिणांचल की बहुचर्चित सीट है चिल्लूपार। कभी यह सीट धुरियापार विधानसभा क्षेत्र के नाम से जानी जाती थी। यह क्षेत्र कभी यूपी की राजनीति में अहम भूमिका निभाता था। तब यहां से चुनाव जीतने वाले बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी सत्ता के बेहद करीबी माने जाते थे। लोग तो कहते थे कि यूपी की सत्ता के समीकरण इसी चौखट पर बनते थे।

बाहुबलियों का क्षेत्र

-एक समय था जब चिल्लूपार क्षेत्र को माफियाओं का गढ़ माना जाता था।

-शेरे ए पूर्वांचल के नाम से प्रसिद्ध वीरेंद्र प्रताप शाही और मोस्ट वांटेड श्री प्रकाश शुक्ल जैसे नाम इसी क्षेत्र से आते थे।

-लेकिन पंडित हरिशंकर तिवारी बाहुबलियों के गुरु कहे जाते थे। बल्कि उन्हें अपराध के राजनीतिकरण का श्रेय भी दिया जाता है।

-पूर्वांचल में 80 के दशक में चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से हरिशंकर तिवारी और लक्ष्मीपुर से दिवंगत वीरेन्द्र शाही ने अपने बाहुबल के भरोसे निर्दल प्रत्याशी के रूप में राजनीति में कदम रखा।

-अप्रत्यक्ष तौर पर हरिशंकर तिवारी को कांग्रेस और वीरेन्द्र शाही को जनता पार्टी ने शरण दी।

-माना जाता है कि पूर्वाचल में बाहुबलियों के राजनीति में कदम रखने की शुरुआत यहीं से हुई।

-फिर तो क्षेत्रीय दलों में मुलायम सिंह यादव हों या मायावती, कोई भी राजनीतिक रूप से बाहुबलियों को गले लगाने से पीछे नहीं रहा।

तिवारी का दबदबा

-जानकारी के मुताबिक बाहुबली हरिशंकर तिवारी के खिलाफ 26 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए।

-इनमें हत्या, हत्या की कोशिश, वसूली, सरकारी काम में बाधा, बलवे जैसे गंभीर मामले शामिल थे।

-आरोप है कि रेलवे साइकिल स्टैंड से लेकर सिविल ठेकेदारी तक उन्होंने पैसा और दबंगई कमाई।

-कहा जाता था कि सरकार भले ही किसी की हो, पर हरिशंकर का रुतबा कभी कम नहीं हुआ।

-हरि शंकर तिवारी चिल्लूपार विधासभा क्षेत्र से लागातार 6 बार विधायक रहे।

-सत्तर के दशक में हथियार उठाने वाले हरिशंकर तिवारी पहले ऐसे नेता थे जिसने जेल के सीखचों के पीछे कैद होने के बावजूद चुनाव जीता।

-लेकिन उनकी सफलता का राज यह था कि बाहुबली होते हुए भी वह अपने क्षेत्र के लिए एक सामान्य व्यक्ति बने रहे।

-क्षेत्रवासियों के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे और वह खुद क्षेत्र में समय बिताते थे।

-उन्होंने इस सीट पर लगातार 27 वर्षों तक निर्बाध राज किया और अपने समय के मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह और मुलायम सिंह की सरकारों में कैबिनेट मिनिस्टर रहे।

-लेकिन व्यस्तता और समय के साथ क्षेत्र में उनकी पकड़ कमजोर हो गई।

फिसलता रसूख

-फिर एक समय वह भी आया जब श्मशान बाबा पं राजेश त्रिपाठी ने उन्हें चिल्लूपार में ही हरा दिया।

-2007 के चुनाव में हरि शंकर तिवारी ने पहली बार बसपा के राजेश त्रिपाठी से हार का स्वाद चखा। यह चुनाव वह समाजवादी पार्टी के समर्थन से लड़े थे।

-2012 के विधानसभा चुनाव में वह एक हार फिर राजेश त्रिपाठी से हार गए। इसके बाद से तो हरि शंकर तिवारी ने जीत का स्वाद ही नहीं चखा।

-राजनीती की महीन परख और पाला बदलने में माहिर हरिशंकर तिवारी पहले कांग्रेस, फिर बीजेपी और उसके बाद एसपी में पाला बदलते रहे

-फिलहाल, हरि शंकर तिवारी का पूरा कुनबा बीएसपी में है।

-उनकी खोई राजनीतिक विरासत को उनके छोटे पुत्र विनय शंकर तिवारी फिर से सहेजने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली है।

वापसी का संघर्ष

-2012 के विधानसभा चुनाव में राजेश त्रिपाठी से दोबारा हारने के बाद भी वह संघर्ष करते रहे।

-आखिर 2017 के विधानसभा के चुनाव में हरिशंकर तिवारी ने अपने राजनैतिक रसूख के बल पर राजेश त्रिपाठी का टिकट कटवा दिया।

-इस बार वह अपने पुत्र विनय शंकर तिवारी को बसपा से टिकट दिलवाने में सफल रहे।

-उधर राजेश त्रिपाठी पार्टी से निकलने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए हैं और टिकट के लिए उनका नाम सबसे आगे है।

-इस तरह लड़ाई का समीकरण अब एक बार फिर बीजेपी के संभावित प्रत्याशी राजेश त्रिपाठी और हरि शंकर तिवारी के बीच ही दिखाई दे रहा है।

-अब देखना है कि राजेश त्रिपाठी की हैट्रिक होती है या हरिशंकर तिवारी अपने पुत्र को चिल्लूपार से राजनीति में पैठ दिला पाते हैं।

-इस बीच राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर के परिवार पर जानलेवा हमले का आरोप लगाते हुए अपनी हत्या की आशंका जताई है।

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