कांग्रेस नेता ने केशव मौर्य की डिग्री पर उठाए सवाल, कहा- दिया था गलत हलफनामा
इलाहाबाद: कांग्रेस के एक नेता ने यूपी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य की डिग्रियों पर उंगली उठाकर उनकी मुश्किलें बढ़ा दी है। आरोप लगते हुए कांग्रेस नेता ने कहा है कि केशव मौर्य ने साल 2007 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनावों में गलत शैक्षिक हलफनामा दाखिल किया था।
ये आरोप इलाहाबाद में कांग्रेस नेता हसीब अहमद ने लगाए हैं। हसीब ने प्रमाण के रूप में कुछ कागजात भी पेश किए हैं। यूपी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले ये खुलासा बीजेपी और केशव मौर्य की मुसीबतें बढ़ा सकता है।
क्या है आरोप?
यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य पर आरोप है कि उन्होंने जब 2007 में इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था तो उस समय आयोग में जो हलफनामा दिया था वह गलत था। हलफनामे में उनकी शैक्षिक योग्यता के रूप में 1998 में उत्तमा दर्शायी गई थी। जबकि कांग्रेस नेता के मुताबिक उत्तमा प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से दी जाने वाला प्रमाण पत्र है जिसे संस्थान बीए प्रथम वर्ष के समकक्ष बताता है।
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2014 चुनाव में बदल गई शैक्षणिक योग्यता
लेकिन केशव मौर्य ने जब 2014 में फूलपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा तो उस दौरान उन्होंने आयोग में जो हलफनामा जमा कराया उसमें शैक्षिक योग्यता अलग थी। इस हलफनामे में दी गई शैक्षणिक योग्यता के रूप में प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन से बीए उत्तीर्ण बताया गया और वह भी 1997 में। इस संबंध में हसीब अहमद ने प्रमाण के रूप में जो कागजात दिए हैं वो आरोपों की पुष्टि करता है।
...इसलिए आरोपों को मिला बल
अब सवाल उठता है कि साल 2007 में जब 1998 में उत्तमा दिखाई गई है तो 2014 में एक वर्ष पहले ही यानि 1997 में बीए उत्तीर्ण की योग्यता कैसे दिखाई जा सकती है। इसी आधार पर दोनों में से कोई एक या दोनों प्रमाण पत्रों के फर्जी होने का दावा किया गया है।
कोर्ट ने ऐसी डिग्री को फर्जी बताया था
हसीब अहमद ने अपने आरोप और दावे के समर्थन में जो प्रमाण पत्र दिए हैं उनमें सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णय की कॉपियां भी शामिल हैं। इनके आधार पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने ही प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन की डिग्री को फर्जी करार दिया है। हसीब ने प्रमाण के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कॉपी दी है। उनका दावा है कि ये कॉपी उन्होंने आरटीआई के जरिए हासिल किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में ये कहा था
हसीब के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की बीएस चैहान और स्वतंत्र कुमार की दो जजों की खंडपीठ ने एक जून 2010 को एक फैसला दिया था। इसमें साफ कहा गया था कि प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन को मौलिक रूप से डिग्री बांटने का अधिकार नहीं है। यह सिर्फ एक सामाजिक संस्था के अंतर्गत रजिस्टर्ड है। इनकी बांटी गई तमाम डिग्रियां अवैध घाषित की जाती हैं। यह न कोई स्कूल है और न कॉलेज और न ही केन्द्र या प्रदेश सरकार से मान्यता प्राप्त है। ऐसे में डिग्री देने का इसे कोई अधिकार नहीं।
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