कभी ना-कभी हां, प्रत्याशियों के लिये प्रचार को लेकर मुलायम के फैसले से गठबंधन में भ्रम
मुलायम सपा-कांग्रेस के गठबंधन का विरोध करते हुए कभी कहते हैं कि ये उनसे बिना पूछे किया गया। मेरी पूरी राजनीति कांग्रेस विरोध की रही है इसलिए वो अखिलेश के पक्ष में प्रचार नहीं करेंगे।
लखनऊ: बेटे अखिलेश से पार्टी पर कब्जे और चुनाव चिन्ह की जंग हारने के बाद समाजवादी पार्टी के अब संरक्षक मुलायम सिंह यादव का बेटे के लिए प्रचार करने या ना करने का ढुलमुल रवैया सपा काय्रकर्ताओं को पेसोपेश में डाले है।
प्रचार पर भ्रम
मुलायम सपा-कांग्रेस के गठबंधन का विरोध करते हुए कभी कहते हैं कि ये उनसे बिना पूछे किया गया। मेरी पूरी राजनीति कांग्रेस विरोध की रही है इसलिए वो अखिलेश के पक्ष में प्रचार नहीं करेंगे। उन्होंनें अपने कार्यकर्ताओं को तो यहां तक कह दिया कि उन सीटों पर नामांकन करें जहां से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। अब बयान ये आ रहा कि वो अखिलेश के लिए प्रचार करेंगे। उनकी हां और ना से अन्य दलों के नेता भी चकित हैं।
यादव और मुस्लिम सपा का सॉलिड वोट बैंक है। मुस्लिम वोट बैंक तो उन्होंने कांग्रेस से ही छीना था। अयोध्या में 6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद तो मुस्लिम कांग्रेस से पूरी तरह नाराज हो गए थे। मुलायम ने उनके जख्मों पर मरहम लगाया तो वो उनके साथ हो लिए। दरअसल मुसलमानों की कांग्रेस से नाराजगी तो अयोध्या आंदोलन के शुरूआत में ही हो गई थी।
करेंगे प्रचार
मुलायम ने बुधवार 1 फरवरी को अपना विचार बदला और कहा कि अब वो अखिलेश के लिए प्रचार करेंगे। सिर्फ अखिलेश ही नहीं बल्कि गठबंधन के प्रत्याशियों के लिए भी प्रचार करेंगे। आखिर वो मेरा बेटा है। मुलायम के प्रचार की तैयारी हो रही है। संभवत: 9 फरवरी से वो प्रचार की शुरूआत करेंगे। वो 77 साल के हो चुके हैं।